ऊन
मानव हस्तक्षेप के बिना, भेड़ खुद को तापमान के प्रभावों से बचाने लायक बाल/ऊन ही उगाती हैं. हालांकि, मनुष्य उन्हें प्राकृतिक रूप से अधिक ऊन उधेड़ने के लिए पालते हैं. इतना ही नहीं, उनके बाल काटने वाले श्रमिक अक्सर खूंखार रूप से हिंसक और क्रूर होते हैं.
दुनिया में हर जगह भेड़ हिंसा का शिकार हैं
ऑस्ट्रेलिया से अर्जेंटीना तक, PETA-इंडिया के अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों ने चार महाद्वीपों पर भेड़ों पर 99 खोज अभियान चलाकर 11 रिपोर्टें जारी की हैं, जो इस उद्योग की प्रणालीगत हिंसक संस्कृति और परेशान करने वाली पशु क्रूरता को उजागर करती हैं. PETA-एशिया ने इंग्लिश और स्कॉटिश ऊन उद्योगों की जांच-पड़ताल में पाया कि बाल काटने वाले भेड़ों को पीटते हैं, लात मारते हैं और बर्बरता से ऊन काटकर उन्हें फेंक देते हैं. नीचे दबोचे जाने से आतंकित भेड़ें, शिकार किए गए जानवरों की तरह घबराई हुई थीं, लेकिन बाल काटने वाले उनकी गर्दन और पेट पर घुटने टेककर उनके सिर को फर्श पर पटक देते थे. बाल काटने के दौरान कुछ भेड़ें लंगड़ी हो गईं और श्रमिकों ने संवेदनहीनता से उन्हें ट्रेलरों से घसीटकर बाहर फेंक दिया और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया.
PETA-यूएस ने अमेरिका के 14 और दुनिया की 25% ऊन का उत्पादन करने वाले ऑस्ट्रेलिया के 19 ऊन फार्मों का पर्दाफाश किया है, जिसमें पाया कि बाल काटने वाले भेड़ों के चेहरों पर मुक्के मार रहे थे, उनके सिर और गर्दन पर खड़े होकर उनको पीट रहे थे और उनको बिजली से चलने वाली कैंचियों और हथौड़ों से मार रहे थे. इन क्रूर प्रहारों से अक्सर भेड़ की आंखों, मुंह और नाक से खून बहने लगता था और कुछ भेड़ें क्रूरता के कारण मर जाती थीं, जिनमें से एक की गर्दन को बार-बार तब तक मरोड़ा गया, जब तक वह मर नहीं गई.
ऑस्ट्रेलियाई झुंडों में आमतौर पर हजारों भेड़ें होती हैं, जिसके कारण प्रत्येक जानवर की जरूरतों को पूरा करना असंभव हो जाता है. लगभग 80 मिलियन भेड़ों वाली ऑस्ट्रेलियाई ऊन इंडस्ट्री हर वसंत खराब पोषण से होने वाली कम से कम 4% भेड़ों के बच्चों की मौत को और हर साल खराब मौसम से होने वाली लाखों भेड़ों की मौत को सामान्य बात मानती है.
एक हिंसक उद्योग
आमतौर पर बाल काटने वालों को भुगतान घंटों की बजाय, भेड़ों की संख्या के हिसाब से किया जाता है, जो श्रमिकों को तेजी व हिंसक रूप से काम करने के लिए मजबूर करता है और जिसकी वजह से भेड़ों के शरीर पर गंभीर घाव हो सकते हैं. मज़दूर भेड़ों के खून बहते घाव सिलने से पहले कभी भी उनको दर्द निवारक दवा देते हुए नहीं देखे गए. इतना ही नहीं, वे बाल काटने से पहले भेड़ों का दाना-पानी बंद कर देते हैं, ताकि भेड़ें कमजोर हो जाएं और बाल काटते वक्त कम से कम प्रतिरोध करें. PETA-यूएस के जांचकर्ताओं ने कभी भी एक पशु चिकित्सक को घायल भेड़ों की चिकित्सा देखभाल करते हुए नहीं देखा.
पर्यावरणीय विनाश
ऊन उद्योग पर्यावरण को भी हानि पहुँचाता है. बड़े पैमाने पर चराई ने जैव विविधता को कम कर दिया है और मिट्टी के कटाव व पालतु पशुओं से पैदा होने वाले कचरे से ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन में बढ़ोतरी हुई है. भेड़ों का मल-मूत्र और “शीप-डिप” कीटनाशक (भेड़ों को मक्खियों से छुटकारा दिलवाने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक जहरीला रसायन) स्थानीय जलस्त्रोतों को प्रदूषित करता है. अर्जेंटीना में जमीन की क्षमता से कहीं ज्यादा भेड़ों की संख्या में हुई खतरनाक वृद्धि से वहां की जमीन बंजर होना शुरू हो गई है, जोकि भरपाई न होने वाला नुकसान है. “पल्स ऑफ फैशन इंडस्ट्री” की रिपोर्ट के अनुसार, ऊन कपड़ों के लिए उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियों के प्रति किलोग्राम के हिसाब से पांचवां सबसे अधिक विनाशकारी पर्यावरणीय प्रभाव डालती है.
ऊन पहनना बंद करें
सोया आधारित “वनस्पति कैशमेर, ” बायोडिग्रेडेबल टैनसेल, और पॉलिएस्ट से बनी शाकाहारी ऊन जैसी इतनी सारी जानवर और ईको-फ्रेंडली सामग्री उपलब्ध होने के बाद भी बर्बर ऊन उद्योग को बढ़ावा देने का कोई तुक नहीं है. आसानी से क्रूरता मुक्त खरीदारी करने के लिए PETA-इंडिया का “PETA-स्वीकृत वीगन” लोगो वाली कंपनियों की सूची देखें!