पशुपालन, पेयजल संकट एवं जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण है
चेन्नई शहर में पेयजल संकट चिंता का विषय है, जिसके मद्देनजर PETA इंडिया ने पानी के संरक्षण में मदद करने के लिए शहर में बड़ी बड़ी होर्डिंग लगाकर लोगों से वीगन बनने का आह्वान किया. ये होर्डिंग “अमेरिकन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज” की ओर से छपी उस रिपोर्ट ने निष्कर्षों पर आधारित है जिसमे कहा गया था कि मांस, अंडे और डेयरी उत्पादों के लिए पशुओं के पालन पोषण में दुनिया का एक तिहाई साफ पानी (पीने के पानी) खर्च होता है.
PETA इंडिया ने बेंगलुरु, दिल्ली और नागपुर शहर और हैदराबाद की बसों पर भी होर्डिंग लगाए हैं. ये सभी शहर उन 21 शहरों की सूची में शामिल हैं 2020 तक भूजल के खत्म होने का खतरे मंडरा रहा हैं.
एक आंकलन के अनुसार भारत में 16.3 करोड़ लोगों के पास पीने योग्य साफ पनि नहीं है जबकि 19 करोड़ से अधिक लोग भूखे रहने के लिए मजबूर हैं. बावजूद इसके, मांस, अंडा और डेयरी उद्योग पशु पालन के लिए भारी मात्रा में पानी, अनाज, भूमि और अन्य संसाधनों को बर्बाद कर रहे हैं .
पशु पालन की वजह से पानी की कमी, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और अन्य पर्यावरणीय समस्याएं खड़ी होती हैं. इन पांच तथ्यों पर विचार कीजिए:
1. पशु पालन में दुनिया का अधिकांश पानी इस्तेमाल हो जाता है :- जानवरों के चारे लिए बोई जाने वाली फसलों की सिंचाई में खूब पानी खर्च होता है. इसी तरह, हर साल अरबों जानवरों के लिए पीने के पानी और उनके बाड़ों, परिवहन और बूचड़खानों, मांस, अंडा और डेयरी उद्योगों से गंदगी को साफ करने के लिए भारी मात्रा में पानी की खपत होती है, जिससे विश्व की जल आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ता है. “वाटर फुटप्रिंट नेटवर्क” के अनुसार, 1 किलोग्राम सब्जियों के उत्पादन में सिर्फ 322 लीटर पानी लगता है, लेकिन 1 लीटर गाय के दूध के उत्पादन में 1,020 लीटर पानी लगता है. इतना ही नहीं, 1 किलोग्राम अंडे के उत्पादन में 3,265 लीटर पानी और 1 किलोग्राम पशुमांस (बीफ) के उत्पादन में 15,415 लीटर पानी खर्च होता है.
2. पशु पालन हमारे जलस्रोतों को प्रदूषित करता है: भारत में मवेशी, भैंसें, भेड़, बकरियां, सूअर, मुर्गियां और अन्य जानवर पाले जाते हैं और माँस के लिए मार दिए जाते हैं. इन पशुओं के पालन पोषण से निकलने वाला कचरा साफ सफाई के दौरान राष्ट्र के पानी में मिल जाता है और उसे दूषित करता है. “जम्मू और कश्मीर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड” की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पशुओं से उत्पादित यह कचरा रसायनिक रूप से घरों से निकलने वाले कचरे के समान ही होता है, लेकिन बहुत अधिक संगठित होने के कारण यह नदी, नालों एव, जलस्रोतों को प्रदूषित करता है. इसी तरह, पब्लिक पॉलिसी ग्रुप “ब्राइटर ग्रीन” की एक रिपोर्ट चेतावनी देती है कि पशुओं का मलमूत्र, उनका चारा उगाने वाली फसलों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों और उर्वरकों से निकलने वाला रसायन भारत के जलस्रोतों में घुलकर उनको प्रदूषित करते हैं. अधिकांश बूचड़खाने बिना किसी कचरा उपचार संयंत्र (वेस्ट ट्रीटमेंट) के काम करते हैं, इस वजह से सारा अनुपचारित कचरा देश के जलस्रोतों में घुलकर हमारे घटते भूजल को प्रदूषित करता है.
3. पशु पालन से भूमि/जमीन अधिग्रहण होता है: मांस, अंडा और डेयरी उद्योग दुनिया की कृषि योग्य भूमि के एक तिहाई हिस्से का उपयोग कर रहे हैं जबकि इस जमीन पर अनाज की पैदावार करके भूखे रहने वाले इन्सानों की भूख मिठाई जा सकती है। यदि इंसान सीधे रूप से अनाज का सेवन करने लगे तो यह अधिक किफ़ायती एवं प्रभावी होगा तथा पशुपालन हेतु जल संसाधनों को बढ़ाने की भी जरूरत नहीं होगी।
4. पशु पालन मनुष्यों को बीमार करता है: पशुओं से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थ हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और अन्य समस्याओं को जन्म देते हैं. इतना ही नहीं पशुपालन से वायु प्रदूषित होती है और बूचड़खानों के पास रहने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बर्बाद कर देती है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने लोगों से बूचड़खानों के पास रहने के उनके तजुर्बों के बारे में बातचीत की. बातचीत में लगभग 58% लोगों ने पीने के पानी के दूषित होने की शिकायतें की, 78% लोगों ने खून और कचरे से भरी नालियों के बंद होने के बारे में बताया और 74% ने संक्रमण फैलाने वाले कीड़ों के बारे में जिक्र किया. इसी तरह 79% लोगों ने चर्बी और हड्डियों के जलने की तीखी गंध के बारे में शिकायत की और 98% लोग दम घोट देने वाली दुर्गंध से परेशान थे.
5. दुनिया भर में, परिवहन क्षेत्र से अधिक ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन के लिए पशु पालन जिम्मेदार है: भारत ” अत्यधिक जोखिम” वाले उन देशों में से एक है, जहां जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों को तेजी से महसूस किए जाएगा। जिसके चलते संभवतः गर्म हवाओं, चक्रवात और बाढ़ में वृद्धि देखने को मिलेगीं. फसल उत्पादन में गिरावट आएगी, कई वेक्टर और जलजनित रोगों के प्रकोप का दोबारा बढ़ेगा और भोजन, ऊर्जा और जल संसाधनों के लिए खतरों की बढ़ोतरी होगी. विश्व बैंक ने चिंता जाहिर की है कि यदि भारत ने समय रहते उचित कार्रवाही नहीं की तो जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप उसे अपनी जीडीपी में 2.8% का नुक्सान उठाना पड़ सकता है जिसके चलते सन 2050 तक लगभग आधे देशवासियों का जीवन स्तर प्रभावित हो जाएगा. जलवायु परिवर्तन के कारण सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर भी युद्ध हो सकते हैं.
सौभाग्य से, आशा की किरण हमेशा होती है. हम सभी वीगन भोजन अपनाकर संसाधनों को संरक्षित करने, प्रदूषण को रोकने और जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने में मदद कर सकते हैं. लगातार हुए अनेकों अध्ययनों से पता चला है कि पशुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थ खाने के बजाय वीगन भोजन खाने से पर्यावरण की रक्षा करने और भूखमरी को कम करने में मदद मिलेगी और साथ ही पशुओं की पीड़ा में भी कमी आएगी।. इसलिए यदि आप अभी तक वीगन नहीं बन पाएँ हैं तो कृपया आज ही मुफ़्त वीगन स्टार्टर किट ऑर्डर करें.