दिल्ली किड्स फैशन वीक एवं PETA इंडिया साथ मिलकर वीगन वस्त्रों को बढ़ावा देंगे
दिल्ली किड्स फेशन वीक का समय आ गया है और यह पहला साल है जब इस आयोजन में PETA इंडिया के सहयोग से दिनांक 8 सितंबर ओशियन पर्ल रीट्रीट में केवल गैर पशु प्रयुक्त, वीगन वस्त्रों को ही प्रदर्शित किया जाएगा। “गाय” के भेष में PETA इंडिया का एक सदस्य हाथ में “मेरी रक्षा करो- चमड़े का त्याग करो” नामक स्लोगन बोर्ड पकड़े रैम्प पर चलकर दर्शकों को चमड़ा मुक्त बनने का संदेश देगा तथा PETA इंडिया द्वारा कार्यक्रम में आए समस्त दर्शकों एवं प्रतिभागियों को पशु अधिकारों से संबन्धित पाठ्यसामग्री, स्टीकर, रिस्टबैंड एवं गुब्बारे भी वितरित किए जाएंगे।
चमड़े के लिए मार दी जाने वाली गाय एवं भैंसो को भारी तादात में ट्रक में ठूस-ठूस कर भरा जाता है, व गंतव्य तक पहुँचने से पहले ही अनेकों जानवर परिवहन के दौरान हड्डियाँ टूटने से मर जाते हैं। ऊन प्राप्त करने के लिए भेड़ों को मारा पीटा जाता है, उनके शरीर पर ब्रांडिंग की जाती है, व ऊन कतरन के दौरान शरीर छलनी कर दिया जाता है। चमड़े के लिए मार दिये जाने वाले सभी जानवर आजीवन पिंजरो एवं कैदखानों में जीवन बिताते हैं, पिंजरों में तार की जाली पर रहकर व बर्बर तरीकों से होने वाली देखभाल की वजह से तनावग्रस्त होकर स्वयं को चोंच मारकर घायल कर लेते हैं। फर के लिए मारे जाने वाले पक्षियों का गला काटकर उन्हे सचेत अवस्था में ही मरने के लिए ड्रम में फेंक दिया जाता है। सिल्क के लिए इस्तेमाल होने वाले रेशम के कीड़ों को ककून के अंदर जिंदा ही उबाल दिया जाता है, ताकि मुलायम हो जाने पर कर्मी आसानी से रेशम प्राप्त कर सकें।
शुक्र है की रचनात्मक एवं गैर पशु प्रयुक्त सामाग्री जैसे अनानास की पत्तियाँ, अंगूर, सेब, मशरूम, कॉर्क व अन्य अनगिनत उत्पाद काफी मशहूर हैं जिंहे रिसाईकल करके पशुओं की खाल से बने फ़र, ऊन, सिल्क व अन्य उत्पादों के विकल्प के रूप में वीगन वस्त्रों के निर्माण हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है।
PETA इंडिया जो इस सिधान्त के तहत काम करता है की पशु हमारे वस्त्र बनने के लिए नही हैं, इस बात का संज्ञान लेता है कि पशुओं की खाल से बने वस्त्र एवं अन्य सामाग्री का इस्तेमाल करना प्रजनवाद तथा मनुष्य के द्वारा अन्य प्रजातियों के साथ भेदभाव एवं उनके शोषण करने का प्रतीक है।
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