दिल्ली उच्च न्यायालय ने दवा निर्माता कंपनियों को PETA इंडिया द्वारा घोड़ों के इस्तेमाल से संबन्धित दायर याचिका पर जवाब देने की अंतिम तिथि निर्धारित की
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20 November 2019
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अदालत ने भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के किसी प्रतिनिधि को अगली सुनवाई में उपस्थित रहने के भी निर्देश जारी किए
नयी दिल्ली : कल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने PETA इंडिया द्वारा “एंटीटॉक्सिन दवाओं के निर्माण में से घोड़ों/खच्चरों के इस्तेमाल को समाप्त कर गैर पशु प्रयुक्त विधियों को अपनाए जाने संबंधी” दायर की गयी याचिका पर कार्यवाही करते हुए घोड़ों के इस्तेमाल से जैविक उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियों एवं भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड (AWBI) को याचिका पर जावाब देने के निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने इन कंपनियों को 4 सप्ताह के अंदर कोर्ट में अपना जवाब जमा कराने का समय दिया है, व साथ ही साथ भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड को दिनांक 19 फरवरी को इस मामले पर होने वाली अगली सुनवाई के दौरान अपने एक प्रतिनिधि को उपस्थित कराने के निर्देश भी दिये हैं।
2015 में, भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड ने, घोड़ों के इस्तेमाल से जैविक उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियों द्वारा रखे गए घोड़ों एवं खच्चरों वाले केन्द्रों पर पशुओं के स्वास्थ्य और कल्याण का निरीक्षण करने हेतु एक टीम नियुक्त की। इन केन्द्रों पर रखे गए पशुओं के खून से विषमारक दवाओं का उत्पादन किया जाता है जो डिप्थीरिया, रेबीज, साँप का काटना इत्यादि रोगों के इलाज के काम आता है। इस निरीक्षण में पाया गया कि इन केन्द्रों पर रखे गए पशु बेहद खराब स्थिति में थे, और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत विभिन्न प्रयोगों हेतु इस्तेमाल होने वाले जानवरों से संबन्धित नियमों एवं दिशानिर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन हो रहा था। जांचकर्ताओं ने बताया कि गंभीर रूप से बीमार पशुओं को पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल या इच्छामृत्यु देने की बजाय उन्हे धीमी एवं दर्दनाक मौत मरने के लिए छोड़ दिया गया था। एक केंद्र में एक घोड़े का खून निकालने के दौरान दर्द से कराहते हुए गिर कर बेहोश हो गया और अनेकों अन्य घोड़े एनीमिया, संक्रमण, संक्रमित घावों, रोगग्रस्त खुरों, कुपोषण, परजीवियों, सूजे हुए अंगों, लंगड़ापन, कॉर्नियल अल्सर, मोतियाबिंद तथा अंधापन जैसी बीमारियों से पीड़ित थे ।
‘कमेटी फॉर द पर्पस ऑफ कंट्रोल एंड सुपरविजन ऑफ एक्सपेरिमेंट ऑन एनिमल्स’ (CPCSEA) द्वारा वर्ष 2017 में अधिकृत की गयी एक टीम द्वारा जैविक उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियों के पशु पालन केन्द्रों के निरीक्षण में पाया गया कि इन केन्द्रों की स्थिति असंतोषजनक है व वहाँ दिशानिर्देशों का खुलेआम उलंघन हो रहा है। निरीक्षण दल ने इन केन्द्रों पर पशु पालन से संबन्धित अनेकों गंभीर अनियमितताएं देखी जैसे फिसलन भरा फर्श, दयनीय कल्याणकारी स्थितियाँ, पशुओं से खून निकालने की आव्रत्ति एवं एक बार में निर्धारित मात्रा से अधिक खून निकालना, देखभाल के अनुचित तौर-तरीके तथा ‘इंस्टीट्यूशनल एनिमल एथिक्स कमेटी’ द्वारा इन अवमाननाओं को नजरंदाज किया जाना। CPCSEA को रिपोर्ट करने वाली संस्था ‘इंस्टीट्यूशनल एनिमल एथिक्स कमेटी’ का दायित्व इन पशु पालन केन्द्रों की स्थितियों पर निगरानी रखना व उनकी कार्यप्रणाली को जाँचना है।
CPCSEA के दिशा निर्देशों में यह कहा गया है कि कमजोर जानवरों से लिए गए खून से बनी दवाएं खराब गुणवत्ता वाली होती हैं जो मनुष्यों के स्वास्थ को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। इसके अलावा, सामान्य पशुओं से लिए गए खून से बनाई गयी दवाओं के इस्तेमाल में भी बहुत से सुरक्षा संबन्धित मुद्दे हैं, क्योंकि पशुओं के खून से बनी एंटीटॉक्सिन मनुष्यों में अतिसंवेदनशीलता, सीरम कमजोरी व अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण हो सकती है ।
PETA इंडिया संबन्धित अधिकारियों से अनुरोध करता हैं कि एंटीटॉक्सिन उत्पादन के लिए पशुओं के इस्तेमाल की बजाय गैर-पशु विधियों को अपनाया जाए।
PETA इंडिया साइंस पॉलिसी एडवाइजर डॉ. दिप्ति कपूर कहती हैं, ”दवा निर्माताओं के लिए घोड़ों को जीवित ब्लड बैग की तरह इस्तेमाल करने के दिन अब समाप्त करने की जरूरत है। PETA इंडिया आशा करता है कि सरकार जल्द ही यह सुनिश्चित करेगी कि फार्मास्युटिकल उद्योग इस तरह की दवाओं के निर्माण हेतु आधुनिक, गैर-पशु प्रयुक्त तरीकों का इस्तेमाल करे ताकि कमजोर, डरे सहमे, अपाहिज एव कुपोषित घोड़ों को इन दर्दनाक केन्द्रों से मुक्ति मिले।“
PETA इंटरनेशनल साइंस कंसोर्टियम लिमिटेड, जिसके PETA इंडिया के वैज्ञानिक भी सदस्य हैं, ने डिप्थीरिया के इलाज़ हेतु गैर-पशु प्रयुक्त एंटीटॉक्सिन दवा बनाने की एक योजना को वित्तीय सहायता दी है। यह पशुओं के इस्तेमाल से निर्मित दवाओं के मुक़ाबले अधिक प्रभावी हैं, व इसको मनुष्यों पर इस्तेमाल करने से उनमे सीरम कमजोरी जैसी समस्याएँ भी नहीं आती।
PETA इंडिया जो इस सरल सिद्धांत के तहत काम करता है कि “जानवर हमारे प्रयोग करने के लिए नहीं है”, प्रजातिवाद का विरोध करता है जो कि मनुष्य की वर्चस्ववादी सोच का प्रतीक है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट पर PETAIndia.com जाएँ।
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