चिकित्सक एवं पोषण विशेषज्ञ देशभर के स्कूलों के “मिड डे मील” में बदलाव चाहते हैं
15 चिकित्सकों एवं पोषण विशेषज्ञों के एक दल की ओर से, PETA इंडिया ने देश के समस्त में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा मंत्रालयों को एक पत्र एवं ब्रोशयर भेजकर, मांस, अंडे व डेयरी उत्पादों के सेवन से स्वास्थ्य को होने वाले खतरों के बारे में सचेत किया है। हम सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए उनसे संपर्क कर रहे हैं कि स्कूलों में दिये जाने वाले “मिड डे मील” में स्वास्थवर्धक, मानवीय एवं पैधों पर आधारित खाद्यपदार्थों ही दिये जाने चाहिए। हेल्थ एडवोकेसी समूह “सेंकच्युरी फॉर हेल्थ एंड रिक्नेशन टू एनिमल्स एंड नेचर” ने भी इसी तरह की अपील भेजी है।
निचे दिए गए ब्रोशयर में आप देख सकते हैं कि चिकित्सक और पोषण विशेषज्ञों के दल ने उन कई आधुनिक बीमारियों का ज़िक्र किया है जो पशु व्युत्पन्न खाद्य पदार्थों के सेवन से होती हैं जैसे- मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग और कुछ प्रकार के कैंसर भी इनमें शामिल हैं। ब्रोशर यह भी बताता है कि बच्चों को सबसे अधिक एलर्जी अंडों व गायों के दूध से होती है, ऐसे खाद्य पदार्थों में एंटीबायोटिक के अवशेष पाए जा सकते हैं तथा मांस, अंडे व गाय का दूध खाद्य जनित बीमारियों के सामान्य कारण हैं। इसके विपरीत फल, सब्जियां, साबुत अनाज व दालें फाइबर से भरी होती हैं, साथ ही उनमें बहुत विटामिन्स और खनिज होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल मुक्त और कम वसा वाले होते हैं। ब्रोशयर में आसानी से उपलब्ध होने वाले किफ़ायती वीगन खाद्य पदार्थों की सूची भी शामिल की गयी है जो अंडे या गाय के दूध के मुक़ाबले अधिक प्रोटीन व कैल्शियम से भरपूर होते हैं।
ब्रोशयर “विश्व स्वास्थ्य संगठन” (WHO ) के कथन का भी हवाला देता है, जो कहता है कि कुपोषण के सभी मामले दस्त और आंतों के परजीवियों से जुड़े होते हैं, जो अक्सर विषम परिस्थितियों से उपजते हैं, कुपोषण से निपटने का सबसे बेहतरीन तरीका साफ सफाई एवं स्वच्छता में निहित है ना कि बच्चों को अंडे या गाय का दूध और उनसे बने पदार्थ देने में हैं, बल्कि यह उनको और भी बीमार बनाते हैं।
पोषण विशेषज्ञ एवं चिकित्सकों की टीम यह भी बताती है कि कई बच्चे और माता-पिता खाद्य उद्योग में बड़े पैमाने पर उत्पीड़न सहने व मारे जाने वाले जानवरों के इस्तेमाल पर आपत्ति जताते हैं। भोजन के लिए जानवरों को पालना, जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है जो आज की युवा पीढ़ी के लिए एक मुख्य चिंता का विषय बन गया है।
क्या आप उन माताओं से प्रभावित हैं जिन्होने अपने बच्चों को वीगन जीवनशैली के तहत पाला पोसा है।