दिल्ली उच्च न्यायालय ने नगर निगम एवं दिल्ली पुलिस को घोड़ा तांगा पर लगे प्रतिबंध पर स्टेटस रिपोर्ट जमा करने का आदेश जारी किया।
PETA इंडिया द्वारा दिल्ली में घोड़ा तांगा पर प्रतिबंध लगाने हेतु दायर की गयी याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूर्वी, उत्तरी, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम, कृषि उत्पादन एवं मार्केटिंग समिति तथा दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए नगर निगाम द्वारा वर्ष 2010 में दिल्ली राज्य में घोड़ा-गाड़ी पर लगाए गए प्रतिबंध पर वर्तमान स्टेटस की रिपोर्ट को 6 सप्ताह में कोर्ट में जमा करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने दिल्ली सरकार को भी इस मामले में एक पक्ष बनाया है। PETA इंडिया की ओर से वकील श्री वरुण गोस्वामी एवं अरुण जैन इस मामले की पैरवी कर रहे हैं।
PETA इंडिया द्वारा दाखिल की गयी याचिका दिल्ली नगर निगम द्वारा द्वारा वर्ष 2010 पारित किए गए उस प्रस्ताव पर आधारित है जिसमे उन्होने दिल्ली में दो-पहिया घोड़ा गाड़ियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। PETA इंडिया की इस याचिका यह भी मांग की गई है कि इन नगर निगमों को आदेश दिया जाए कि वह एक प्रवर्तन समिति बनाकर दिल्ली में घोड़ागाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले घोड़ों को अपने कब्जे में लेकर किसी ऐसे पशु पुनर्वास केंद्र में भेजें जो किसी पशु अधिकारों पर कार्य करने वाली संस्था द्वारा संचालित किए जा रहे हों। याचिका में यह मांग भी कि गयी है कि कृषि उपज विपणन समिति (जो आजादपुर और ओखला जैसी सब्जी व फल मंडियों में प्रबंधन का कम करती हैं) को अपने अधिकार क्षेत्र में इस तरह की घोडा गाड़ियों को काम करने व आवाजाही पर प्रतिबंध लगाए तथा दिल्ली पुलिस राज्य की सीमा से जुडने वाले राज्यों से जो घोड़ागाड़िया दिल्ली में प्रवेश करती हैं उनके प्रवेश पर रोक लगाए।
चूंकि दिल्ली MCD द्वारा वर्ष 2010 में लिए गए निर्णय को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है, PETA इंडिया ने एक सर्वेक्षण कर यह पाया कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम क्षेत्र में155 घोड़ागाडियाँ, पूर्वी दिल्ली नगर निगम क्षेत्रों में 58 और दक्षिण दिल्ली नगर निगम क्षेत्र में 40 घोड़ागाडियाँ अभी भी कार्यरत हैं। हम दिल्ली मशीनीकारण कार्यक्रम के माल ढुलाई तथा प्रताड़ना का शिकार हो रहे कामगार घोड़ों एवं गधों की रक्षा करते हैं। इन घोड़ागाड़ी मालिकों को बेहतर आजीविका के अवसर प्रदान करने हेतु PETA इंडिया ने अभी तक 9 लोगों को उनके पशु के बदले बैट्री चलित ई-रिक्शा प्रदान किया है। इन मालिकों से लिए गए घोड़े को पशु पुनर्वास केन्द्रों में भेजा गया है जहां उन्हें पर्याप्त पशु चिकित्सा एवं उचित देखभाल मिल रही है और अब इन पशुओं को जीवन भर कभी भी दिल्ली के प्रदूषित, शोर, भीड़भाड़ वाली सड़कों पर माल ढुलाई का काम नहीं करना पड़ेगा।
PETA इंडिया द्वारा वर्ष 2019 में दिल्ली की गयी जांच2010 में MCD द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव के दौरान MCD द्वारा दिल्ली में घोड़ागाड़ी के इस्तेमाल पर जताई गयी चिंताओं और कारणों की पुष्टि की है। उस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर पशु चालित वाहनों का कोई स्थान नहीं है, ऐसे धीमी गति से चलने वाले वाहनों की बहुत कम मांग है, और मालढुलाई के लिए इन वाहनों के इस्तेमाल के दौरान इन पशुओं पर क्रूरता भी की जाती है। इन जानवरों से तप्ति धूप, अत्यधिक प्रदूषित वातावरण और कडक ठंड में भी काम लिया जाता है। उनसे अक्सर कानूनन तय सीमा व अपनी सहन क्षमता से अधिक भार ढुलवाया जाता है, संख्या से अधिक यात्रियों को ढोते हैं तथा देर तक सड़कों पर काम करते हैं। अत्यधिक यातायात में चलने के कारण वह स्वयं तथा अन्य लोग गंभीर दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। यह जानवर खुलेआम सड़कों पर शौच करते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा होता है, क्योंकि उनके मल में टेटनस रोगजनक किटाणु होते हैं। वह ग्लेडर नामक जानलेवा ग्रंथि रोग (जो मनुष्यों मेन भी फ़ेल सकता है) से पीड़ित भी हो सकते हैं। इन जानवरों का नियमित रूप से रोग निवारक टीकाकरण भी नहीं किया जा रहा। इसके अलावा, काम ना करने के दौरान इनके मालिक अपने जानवरों को स्वस्थ, पौष्टिक और संतुलित आहार या उचित आश्रय प्रदान करने में असमर्थ हैं। कई बार मृत घोड़ों के अवशेष दिल्ली की सड़कों पर देखने को मिलते हैं क्योंकि उनका कोई वाणिज्यिक मूल्य नहीं है।
आप भी अपने हिस्से का योगदान दें। आप मनोरंजन एवं माल ढुलाई के लिए कभी भी पशु सवारी का इस्तेमाल न करें।