PETA इंडिया के नए Tagtalk विज्ञापन उपभोगताओं से चमड़े, ऊन और जानवरों की खाल से बने उत्पादों का बहिष्कार करने का आग्रह करते हैं
नवम्बर (विश्व वीगन माह) के उपलक्ष्य में पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया और डिजिटल OOH नेटवर्क- TagTalk द्वारा दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई और पुणे के कई बार, रेस्तरां और कैफे में विज्ञापन लगवाकर उपभोगताओं से चमड़े, ऊन और जानवरों की खाल से बने उत्पादों का बहिष्कार करने का आग्रह करते हैं। ‘Tagtalk’ एक आधुनिक उपभोक्ता विस्तार मंच है जो विषय सामग्री (Content) को विशेष महत्व देता है। इन विज्ञापनों को सुप्रसिद्ध प्रतिष्ठानों में लगवाया गया हैं जहाँ इनकी पहुँच शहरी परिवेश के लाखों युवाओं तक है।
Eyetalk Media Ventures जो tagtalk नाम से अपना व्यवसाय संचालित करता है, के CEO गौतम भीरानी कहते हैं- “वर्तमान समय में उपभोक्ताओं का ध्यान संवेदनशील फ़ैशन विकल्पों की तरफ अधिक आकर्षित हुआ है। TagTalk समूह को PETA इंडिया द्वारा लोगों से चमड़े, ऊन और जानवरों की खाल से बने उत्पादों का बहिष्कार करने हेतु की गई इस नेक अपील में उसका साथ देने की बहुत खुशी है। हम आशा करते है, यह संदेश ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे जिससे जानवरों के लिए एक सुखद बदलाव लाया जा सके।”
PETA इंडिया और इसके अंतराष्ट्रीय साहियोगियों द्वारा दुनियाभर के 100 से ज़्यादा ऊन उद्योगों में भेड़ो के साथ होने वाले नियमित अत्याचार का पर्दाफ़ाश किया गया है। साल की शुरुआत में, भेड़ को मारने-पिटने वाली वीडियो सामने आने के बाद भेड़ों के शरीर से ऊन कतरन करने वाले व्यवसायी को जानवरों के खिलाफ क्रूरता करने हेतु दोषी ठहराया गया। इसी तरह के कई अन्य ऊन कतरन करने वाले व्यवसायियों को ऊन कतरन के दौरान डरी सहमी भेड़ों के साथ मार पीट करते, लात घूसे मारते, उन्हें घसीटते, उनके सिर और गर्दन पर खड़े होते और यहाँ तक कि उनके अनुसार काम की ना रह जाने वाली भेड़ों के जिंदा रहते उनका गला काटते भी वीडियो पर कैद किया गया था।
मगरमच्छ, घड़ियाल, सांप, शुतुरमुर्ग, और अन्य जंगली जानवरों को उनकी चमड़ी के लिए जिन क्रूर और तंग परिस्थितियों में रखा जाता है और जिन परिस्थितियों में उनकी हत्या की जाती है, उन्हें ‘कोरोना वायरस’ जैसी भयानक महामारी का कारण माना जाता है और भविष्य में ऐसी और महामारियों का ख़तरा भी बना रहता है।
इंडिया के चमड़ा उद्योग में प्रयोग होने वाली गायों, भैंसों और अन्य जानवरों को छोटे व तंग वाहनों में ठूस ठूस कर इस प्रकार से एक साथ भरा जाता है कि परिवहन के दौरान रास्ते में ही उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं। कत्लखानों तक पहुचनें वाली इस दर्दनाक यात्रा के दौरान जो जानवर जिंदा बच जाते हैं, बूचड़ख़ानों में सबके सामने उनका गला काट दिया जाता है और सचेत अवस्था में होने के बावजूद उनके शरीर से उनकी खाल उतार ली जाती है। चमड़े का प्रयोग मानव स्वास्थ के लिए भी हानिकारक है क्योंकि चमड़े के कारखानों से निकलने वाले दूषित रसायनों से “जल प्रदूषण” फैलता है जो इन्सानों में कैंसर, सांस की बीमारियों और अन्य शारीरिक रोगों का कारण है।
इन ब्राण्ड्स के क्रूरता मुक्त उत्पाद यहाँ देखें