PETA इंडिया ने नए ‘गो वीगन’ बिलबोर्ड के द्वारा ‘हलाल और झटका माँस’ पर चल रही बहस का जवाब दिया

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23 April 2022

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Hiraj Laljani; HirajL@petaindia.org

Radhika Suryavanshi; RadhikaS@petaindia.org

कर्नाटक में हलाल मांस पर प्रतिबंध लगाने के आह्वान के बीच, PETA इंडिया ने एक संदेश जारी कर इस पूरी बहस पर एक नया नजरिया पेश कर दिया है जिसमे वीगन बनने और उसहाय जानवर का जीवन बक्ष देने की बात की है जो हर पल अपनी मौत के दर्द और भय के साय में जीवन जीता है।

आर्टवर्क की कॉपी मांगे जाने पर उपलब्ध करवाई जाएगी। 

वीगन भोजन से पशुओं को मिलने वाली अपार पीड़ा से निजात मिलती है। आज के मांस, अंडा और डेयरी उद्योगों में भारी संख्या में पशुओं को बड़े गोदामों में कैद करके पाला जाता है। सचेत अवस्था में होने के बावजूद मुर्गियों का गला काट दिया जाता है, गायों और भैंसों को उनके प्यारे बछड़ों से जबरन अलग किया जाता है, सूअरों को दर्द निवारक दवाओं के बिना काट दिया जाता है, और मछलियों को तब तक जिंदा ही तड़फाया और काट दिया जाता है। जो लोग वीगन जीवनशैली जीते हैं वे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर के खतरे से काम प्रभावित होते हैं और भविष्य की महामारियों को रोकने में मदद करते हैं। विशेषज्ञों ने माना है कि सार्स, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला और एचआईवी जैसी सभी बीमारियां मांस के लिए पाले जाने वाले जानवरों को कैद करने या मारने से पनपी हैं और COVID-19 के पीछे भी जानवरों की मांस मंडियों से पनपा संक्रमण ही मुख्य कारण था।

PETA इंडिया जो इस सिद्धांत में विश्वास रखता है कि “जानवर हमारा भोजन बनने के लिए नहीं हैं” प्रजातिवाद का विरोध करता है क्योंकि यह ऐसी विचारधार है जिसमे इंसान स्वयं को इस दुनिया में सर्वोपरि मानकर अपने फायदे के लिए अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। आप हमारी “PETA स्वीकृत वीगन” सूची की मदद से पशु-हितैसी विकल्पों का चुनाव कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com  पर जाएँ और TwitterFacebook, Instagram पर हमें फॉलो करें।

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