PETA इंडिया की तीसरी जांच में कोलकाता के घोड़ों की आपातकालीन स्थिति का खुलासा
कोलकाता में सवारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों पर PETA इंडिया की तीसरी जांच में खुलासा हुआ है कि वे गंभीर संकट की स्थिति का सामना कर रहे हैं इसलिए PETA इंडिया और CAPE फाउंडेशन ने 25 मई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद पशु संरक्षण समूहों के सहयोग से पश्चिम बंगाल सरकार के पशु संसाधन विकास विभाग द्वारा आयोजित पशु चिकित्सा स्वास्थ्य शिविरों में घोड़ों के मालिकों द्वारा लगातार घोड़ो की जांच करवाने से इंकार करने के उपरांत यह याचिका दायर की गयी। PETA इंडिया की नई विस्फोटक मूल्यांकन रिपोर्ट में कोलकाता में पर्यटकों और सवारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले 100 से अधिक घोड़ों की निरंतर दयनीय स्थिति का विवरण दिया गया है।
कोलकाता के पीड़ित घोड़ों की सबसे तत्काल जरूरत पशु चिकित्सा देखभाल की है। PETA इंडिया ने राज्य सरकार से एक कानून प्रवर्तन समिति नियुक्त करने का आग्रह किया है जो अस्वस्थ घोड़ों और आवश्यक कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किए बिना इस्तेमाल किए जा रहे घोड़ों को जब्त करने और उन्हें सेंक्चुरी में भेजने के लिए है। PETA इंडिया घोडा-गाड़ियों को पतली बैटरी चालित गाड़ियों से बदलने की मांग कर रही है – जैसे कि मुंबई में इस्तेमाल की जा रही है।
कमजोर और थकावट से भरपूर
कोलकाता में सवारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कई घोड़े खून से भरे जख्मों, कुपोषण, लंगड़ाहट, दृष्टिबाधित बीमारियों और/या लंबे समय से भूखे हैं। फिर भी, उन्हें भारी ट्रैफिक के बीच धूल भरी सड़कों पर, धुएं में सांस लेते हुए, गर्मी और अन्य मौसम की स्थिति में पूरे दिन काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। घोड़ों के शरीर की स्थिति की जांच की गयी थी और उन सभी को “पतला” या “बहुत पतला” की श्रीन में पाया गया था। यह एक स्पष्ट संकेत है कि अधिकांश घोड़ों से बहुत लंबे समय से उचित पोषण के बिना कम करवाया जा रहा है।
गंभीर चोटों का इलाज नहीं किया जाता है
सवारी के लिए इस्तेमाल होने वाले घोड़ों और जनता दोनों के लिए खतरनाक हैं क्यूंकी चोटिल घोड़ो से इंसान एवं स्वयं घोड़े गंभीर रूप से घायल हुए हैं। चोटिल एवं घावों से भरे घोड़ों को यहाँ अक्सर बिना इलाज़ किए उन्हें टूटी हुई हड्डियों के साथ सड़कों पर भूके प्यासे रहने के लिए छोड़ दिया जाता है जिससे वह धीमी व दर्दनाक मौत का शिकार होते हैं।
बर्बाद खुर और चोटिल मुंह
घोड़ों को उचित देखभाल से वंचित कर दिया जाता है, जिससे उनके पैर खराब हो जाते हैं। कुछ को दर्द के द्वारा नियंत्रित करने के लिए, अवैध काँटेदार लगामें पहनायी जाती हैं जिससे उनका मुंह छलनी हो जाता है।
रोग फैलने के अवसर
जानवरों के मल शहर के चारों ओर बिखरे हुए हैं, जिससे टिटनेस और अन्य स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा हो रहे हैं।
घोडा मालिकों का इंकार
राज्य द्वारा इन घोड़ों के बेहतर स्वस्थ हेतु मुफ्त पशु उपचार स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया गया लेकिन इन घोड़ों के मालिकों ने इन शिविरों में आने से हर बार इंकार कर दिया।
परिवर्तन का अनुरोध
कोलकाता में घोड़ों के क्रूर इस्तेमाल पर रोक लगवाने के लिए इस याचिका पर हस्ताक्षर करें!
आप पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री को Tweet कर सकते हैं कि मुंबई की तरह यहाँ भी घोड़ों की जगह ई-गाड़ियों का इस्तेमाल किया जाए।