जन्म से पीड़ा की शुरुआत
हैचरियों में अंडों को आमतौर पर बिजली से चलने वाले इनक्यूबेटर में रखा जाता है, जिस कारण चूजों का जन्म अंग विकृति और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के साथ हो सकता है। चूजों के जन्म के समय कार्मिक संवेदनशील जननांगों पर ज़ोर से दबाकर उनके लिंग का निर्धारण करते हैं। अंडा उद्योग में नर चूजों को बेकार माना जाता है क्योंकि वे अंडे नहीं देते हैं इसलिए उन्हें पैदा होते ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। मांस और अंडा उद्योग में आकार या स्वास्थ्य के कारण कई चूजों का त्याग किया जाता है एवं उनकी हत्या कर दी जाती है। यहाँ कई चूजों को ड्रम, गड्ढों, कूड़ेदानों और तालाबों में फेंककर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। इन सजीव प्राणियों को जिंदा दफ़नाकर, डूबाकर, कुचलकर या गला दबाकर मौत के घाट उतारा जाता है और यहाँ तक कि मछलियों, कुत्तों या चीलों के सामने भोजन के रूप में लावारिस छोड़ दिया जाता है।
अनवांछित चूजों से छुटकारा पाने हेतु इस प्रकार के तरीके अपनाना न केवल क्रूर हैं; बल्कि वे पर्यावरण प्रदूषण का कारण भी बनते हैं। यह मक्खियों, कीड़ों, गंदगी ढोने वाले पक्षियों, कुत्तों और अन्य जानवरों को आकर्षित करता है। इस कारण पर्यावरण को अनेक प्रकार से क्षति पहुँचती है जिसमें अमोनिया और हाइड्रोजन सल्फाइड गैसों के कारण पैदा होने वाली हानिकारक गंध, इन फार्मों से उत्पादित धूल-मिट्टी, और मारे हुए पक्षियों सहित बड़ी मात्रा में कूड़ा।
यह हैचरियाँ पूरी तरह से असफल हुई हैं
हैचरी के कर्मियों द्वारा बचे हुए चूजों को “ग्रेड” किया जाता है, यहाँ छोटे, कमजोर, अस्वस्थ और विकृत पक्षियों की जाँच करते हैं। इनमें से कई अस्वीकृत चूजों को मार दिया जाता है, लेकिन कुछ बचे हुए चूजों को निजी ठेकेदारों द्वारा खरीदा जाता है। इन चूजों को भी शोषण का सामना करना पड़ता है क्योंकि इन्हें अक्सर भीड़-भाड़ से भरी तंग गाड़ियों में बिना भोजन-पानी के परिवाहित किया जाता है।
इन चूजों को कई बार मांस के लिए छोटे-छोटे पोल्ट्री फार्मों में, या निजी एजेंटों को बेचा जाता है जो उन्हें खरीदकर फेरी वालों को बेच देते हैं। इस तरह के फेरी वाले आमतौर पर उन्हें अलग-अलग रंगों में रंगते हैं और बच्चों को खिलौनों के रूप में बेचते हैं। ये रंग-बिरंगे, डरे हुए चूजे अक्सर एक दिन भी जीवित नहीं रह पाते हैं।
उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में, श्रीनिवास फार्म्स की अंडा-उत्पादन हैचरी में 17,000 नर चूजों को एक ट्रक पर लाद दिया गया था। PETA इंडिया के जांचकर्ता को बताया गया कि इन नर चूजों को ओडिशा राज्य ले जाया जा रहा है, जहां उन्हें रंगीन करके फिर से बेचा जाएगा।
मादा चूजों को भी इसी प्रकार के शोषण का सामना करना पड़ता है
अधिकांश मुर्गियाँ अपना जीवन बैटरी के पिंजरों में बंद रहकर बिताती हैं जो इतने छोटे होते हैं कि वे एक पंख भी नहीं खींच पाते हैं। जब वे कुछ ही दिन या सप्ताह के होते हैं, तो कार्मिकों द्वारा चूजों की संवेदनशील चोंच के एक हिस्से को बिना किसी दर्द निवारक के गर्म ब्लेड से काट दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे पिंजरें में मानसिक रूप से परेशान पशु एक दूसरे को चोंच मार-मारकर चोटिल न कर दें जिससे चूजों के मूल्य में कमी देखी जा सकती है। भारत में अंडे के लिए इस्तेमाल होने वाली ज्यादातर मुर्गियों को बैटरी चालित पिंजरों में पाला जाता है। तेलंगाना में हैदराबाद के पास स्काईलार्क हैचरी के एक तकनीशियन ने बताया कि यहाँ चूजों की चोंच घिसने के लिए एक मशीन का उपयोग किया जाता है। उन्हें यह कहते हुए फिल्माया गया कि, “यहां मशीन के साथ, चूजों की चोंच नहीं काटी जाती बल्कि उन्हें हीटिंग सिस्टम के माध्यम से पिघलाया जाता है। ऐसा नर चूजों के साथ नहीं नहीं किया जाता क्योंकि उन्हें कूड़े में फेंक दिया जाता है या फिश फार्मों में मछ्ली के भोजन के रूप में बेंच दिया जाता है।“ जिन भी चूजों की चोंच को घिसा जाता है उनमें दर्द के गंभीर लक्षण देखने को मिलते हैं।
पशुओं के साथ क्रूरता भारतीय संविधान के खिलाफ़ है
जानवरों की रक्षा करना इस देश के प्रत्येक नागरिक की मौलिक जिम्मेदारी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A(g) के अनुसार, “भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करें और सजीव प्राणियों के प्रति दया भाव रखें।“
चूजों को इतनी क्रूरता के साथ मौत के घाट उतारना अवैध है
पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 की धारा 3 के अनुसार, “किसी भी जानवर की देखभाल या प्रभार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे जानवर की भलाई सुनिश्चित करने के लिए सभी उचित उपाय करें और उन्हें अनावश्यक दर्द या पीड़ा से बचाने हेतु सभी ज़रूरी कदम उठाएँ।“
PCA अधिनियम, 1960 की धारा 11 (1) (l) के अनुसार, “किसी भी जानवर (जिसमें लावारिस कुत्ते शामिल हैं) को अनावश्यक और क्रूरतापूर्ण ढंग से काटना या मारता” एक दंडनीय अपराध है।
मौजूदा कानूनों के तहत, मुर्गियों की हत्या की अनुमति केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में दी जा सकती है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- किसी भी मौजूदा कानूनी अधिकार के तहत (जैसे “पशुओं में संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम, 2009” के अंतर्गत एवियन फ्लू जैसी बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए)
- पीसीए अधिनियम, 1960 की धारा 11(3)(डी) के तहत प्रयोग के लिए
- पीसीए अधिनियम, 1960 की धारा 11(3)(ई) के तहत भोजन के रूप में
- पीसीए अधिनियम, 1960 की धारा 13 के तहत किसी जानवर की इच्छामृत्यु करने हेतु जब उसे जीवित रखना क्रूर होगा
जाँच की गई कोई भी कंपनी इन मानदंडों के अंतर्गत मान्य नहीं है इसलिए अवैध है।
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 428 और 429 के तहत भी जानवरों को मारना एक संज्ञेय अपराध है। धारा 429 के प्रावधान के अनुसार, “अगर कोई भी व्यक्ति किसी जानवर को मारने, उसे ज़हर देने या शारीरिक रूप से चोट पहुँचाने के अपराध करता है तो उसके खिलाफ पचास रुपए से अधिक के जुर्माने, अधिकतम पाँच वर्षों के कारावास या दोनों का प्रावधान है।“ धारा 428 में भी जानवर के लिए समान दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं जिसके अंतर्गत कम से कम दस रुपए के जुर्माने, दो साल तक की जेल या दोनों का प्रावधान है।
प्रगति का रास्ता
PETA इंडिया के आग्रह पर, असम, बिहार, छत्तीसगढ़ और गोवा के पशुपालन विभागों ने देश में उपलब्धता के आधार पर ovo सेक्स-निर्धारण तकनीक का उपयोग करने हेतु प्रतिबद्ध दिखाई है। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, जम्मू, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार ने भी अवैध और क्रूर ढंग से चूजों की हत्या की प्रथा को समाप्त करने के निर्देश जारी किए हैं।
दुनिया भर की कंपनियां ovo सेक्सिंग तकनीक पर काम कर रही हैं और विभिन्न देश इसे अपनाने के लिए कदम उठा रहे हैं। फ्रांस और जर्मनी ने सबसे पहले इस तकनीक के पक्ष में नर चूजों की हत्या पर रोक लगाने के लिए तत्काल तिथियां निर्धारित की हैं। इसके अलावा, इटली में सबसे बड़े अंडा उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करने वाले Assovi नामक व्यापार संघ एवं अमेरिका में 90% से अधिक अंडा उत्पादन करने वाले United Egg नामक उत्पादकों ने भी नर चूजों की जान बचाने के लिए ovo सेक्सिंग तकनीक अपनाने का निर्णय लिया है।
PETA इंडिया भारत सरकार से देश में तात्कालिक रूप से ovo तकनीक अपनाने एवं अंडा उत्पादन उद्योग में इसे लागू करने का अनुरोध करता है जिससे जिंदा नर चूजों की जान की रक्षा की जा सके। हम भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड से बीमार चूजों के साथ मानवीय व्यवहार संबंधी एक लिखित मानक विकसित करने का भी अनुरोध करते हैं। PETA इंडिया यह भी सिफारिश करता है कि मांस एवं अंडा उद्योग में प्रयोग होने वाले जानवरों का मानवीय एवं वैध ढंग से परिवहन किया जाए और इन्हें पिंजरों से आज़ाद किया जाए जिससे वह एक-दूसरे को हताशा से चोटिल न करें।
वीगन जीवनशैली अपनाए!
जिंदा चूजों एवं अन्य जानवरों को शोषण से छुटकारा दिलाने का सबसे सही तरीका वीगन जीवनशैली अपनाना है एवं पशुओं से मिलने वाले भोजन का त्याग करना है। क्या आप भी प्रेरित महसूस कर रहे हैं? आज ही हमारी मुफ़्त वीगन स्टार्टर किट ऑर्डर करें।
आप भी मदद कर सकते हैं!
अपील
आदरणीय अधिकारीगण:
PETA इंडिया द्वारा भारतीय मांस एवं अंडा उद्योग की हैचरियों में की गयी नयी जांच [link] से एक बार फिर चौंकाने वाली सच्चाई का पर्दाफ़ाश हुआ है। जांचकर्ताओं की एक टीम ने अक्टूबर 2021 से मई 2022 तक आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश की विभिन्न हैचरियों का दौरा किया और इस जाँच में सामने आई घोर क्रूरता के परिणामस्वरूप सभी को मांस एवं अंडे का त्याग कर देना चाहिए।
अंडा उद्योग में चूजों को “बेकार” माना जाता है क्योंकि वे अंडे नहीं देते हैं। हैचरियाँ भी शारीरिक विकृतियों वाले ऐसे चूजों को अस्वीकार कर देती हैं जो कमजोर होते हैं या जो औसत आकार से छोटे होते हैं। PETA इंडिया के जांचकर्ताओं ने खुलासा किया कि कर्मियों द्वारा इन “बेकार” चूजों को इतने क्रूर तरीके से मारा जाता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
कर्मियों द्वारा बेकार माने गए चूजों को बड़े-बड़े गड्ढों में दम घुटने से मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, लंबे समय तक भूखा-प्यासा रखा जाता है और कूड़ा ढ़ोने वाले ट्रकों का प्रयोग करके कचरे के बड़े से ढेर में लावारिस मरने के लिए फेंक दिया जाता है। इन सजीव जानवरों को बड़ी-बड़ी बाल्टियों में डालकर उनपर पानी की धार छोड़ी जाती है जिस कारण सभी पक्षी जिंदा रहने के लिए संघर्ष करते हैं और शोर मचाते हैं। कुछ समय बाद यह सभी पक्षी चिल्लाते-चिल्लाते अपने प्राण त्याग देते हैं।
एक हैचरी में चूजों को एक जलते गड्ढे में फेंका गया और ऊपर से डीजल डालकर सभी सजीव जानवरों को जिंदा आग लगा दी गयी। कुछ ठेकेदारों ने चूजों को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया जिससे कुत्ते इन्हें जिंदा खा सके। इनमें से कई जीवित चूजों को तालाबों में फेंक दिया गया, जहाँ कैटफ़िश ने उनके टुकड़े-टुकड़े करके खाएँ। कई चूजों को मछ्ली फार्मों में बेच दिया गया जहाँ इन्हें बड़े ग्राइंडरों में पीसकर मछलियों को भोजन स्वरूप परोसा गया। ग्राइंडर के पास से कई चूजों ने अपनी जान बचाने के लिए छिपने या भागने की कोशिश की, लेकिन कर्मियों ने उन्हें पकड़कर कैटफ़िश से भरे तालाबों में फेंक दिया।
इन सभी जानवरों के साथ किए गया इस प्रकार का क्रूर शोषण भारतीय संविधान एवं विभिन्न कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है। हम आपसे उचित कार्यवाही का अनुरोध करते है। कृपया इस क्रूरता को रोकने हेतु कदम उठाएँ।
हमें अपना महत्वपूर्ण समय देने हेतु आपका बहुत-बहुत आभार।
आभार सहित,
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