PETA इंडिया की अपील के बाद गुजरात ने माता सूअरों को कैद में रखने वाले पिंजरों पर रोक लगाई

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13 July 2022

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अहमदाबाद – पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया द्वारा गुजरात में सूअर पालन हेतु जेस्टेशन एवं फैरोइंग क्रेट के प्रयोग पर रोक लगाने हेतु की गई अपील के बाद, गुजरात एनिमल वेलफ़ेयर बोर्ड ने एक सर्कुलर जारी कर पशुपालन विभाग के सचिव एवं सह निदेशक, सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स, जिला पंचायतों को निर्देश दिया है कि वह अपने क्षेत्र में सुअर पालन करने वाले किसानों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दें कि किसी भी फार्म पर इस तरह के अवैध क्रूर पिंजरों का उपयोग नहीं हो रहा है। इस सर्कुलर में जेस्टेशन एवं फैरोइंग क्रेट के निर्माण, बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए भी कहा गया है।

इस परिपत्र में विशेषतः इंगित किया गया कि इस प्रकार के पिंजरे “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11(1)(e) का उल्लंघन हैं जिसके अंतर्गत किसी भी जानवर को ऐसे तंग पिंजरों में कैद रखना जिनमे वह सही से हिल डुल तक न सके, वह अवैध है। ‘‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केंद्र द्वारा भी सूअरों के संबंध में यह पुष्टि की गयी है कि सुवरों को इस तरह से रखना अवैध हैं। PETA इंडिया की अपील के बाद गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, दिल्ली एवं राजस्थान सरकारों द्वारा पहले ही जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट के उपयोग पर रोक लगाने वाले सर्कुलर जारी किए जा चुके हैं। इसी तरह का एक सर्कुलर पहले पंजाब एवं मणिपुर सरकारों द्वारा भी जारी किया गया था।

गुजरात सरकार द्वारा इस सप्ताह ज़ारी परिपत्र की एक प्रति मांगे जाने पर उपलब्ध करवाई जाएगी। 

जेस्टेशन क्रेट (उर्फ गर्भवती सुअर को जकड़ने का तंग पिंजरा) जो केवल सुअर की माप के होते हैं, इनका फर्श पक्का या कंक्रीट का होता है, जिसमे जानवरों को करवट बदलने या खड़े होने में अत्यधिक कष्ट होता है। जेस्टेशन क्रेट का इस्तेमाल गर्भवती सूअरों को एक जगह रोके रखने के लिए किया जाता है, बच्चों को जन्म देने के लिए फैरोइंग क्रेट (जन्म देने का तंग पिंजरा) में भेज दिया जाता है और उन्हें वहाँ तब तक रखा जाता है जब तक कि उनके नवजात बच्चों को उनसे अलग न कर दिया जाये। ये फैरोइंग क्रेट मूल रूप से जेस्टेशन क्रेट के समान होते हैं, बस इनमे सूअर के नवजात बच्चों के लिए साइड में छोटे खांचे बने रहते हैं।

PETA इंडिया की एडवोकसी एसोसिएट फरहत उल ऐन ने कहा, “PETA इंडिया गुजरात सरकार द्वारा उठाए गए इस दयालु कदम की सरहाना करता है जिससे अनगिनत सूअरों को तंग पिंजरों से मुक्ति मिलेगी। अपने प्राकृतिक परिवेश में, सूअर सामाजिक, चंचल और सुरक्षात्मक जानवर होते हैं जिन्हें अपने बच्चों से बेहद प्यार होता है इसलिए इन सजीव प्राणियों को पिंजरों में बंदी बनाए जाने पर अथाह पीड़ा होती है। सूअरों को भारी भीड़भाड़ वाले वाहनों में बूचड़खानों में ले जाया जाता है, जहां उन्हें सिर पर हथौड़े से मारकर या सीने में छुरा घोंपकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। PETA इंडिया सभी को बताना चाहता है कि वे सुअरों व अन्य जानवरों का मांस ना खाकर उनकी पीड़ा को कम करने में योगदान कर सकते हैं क्यूंकी इस तरह के पिंजरों का इस्तेमाल मांस उद्योग द्वारा इन जानवरों के साथ किया जाने वाला एक जघन्य कार्य है”

जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट इतने छोटे व सँकरे होते हैं कि वे मादा सूअरों को उन सभी चीज़ों से वंचित कर देते हैं जो उनके लिए प्राकृतिक और महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि चारा खाना, अपने बच्चों के लिए घोंसला बनाना, अन्य सूअरों के साथ समूह में रहना, उनके शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए कीचड़ में लोट पोट होना। क्रेट मे बंद सूअरों को जबरन अपने ही मल-मूत्र में सने रहने के लिए मजबूर किया जाता है। अत्यधिक क्रूरता सह रहे सुअर तनाव और हताशा का शिकार होते हैं जिसके परिणामस्वरूप असामान्य व्यवहार करते हैं जैसे कि बाड़े की सलाखों को लगातार काटने का प्रयास या हवा को लगातार चबाने की कोशिश करते रहना ।

PETA इंडिया जो इस सिद्धांत के तहत काम करता है कि जानवर किसी भी तरह से हमारा दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं है, प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकि यह एक ऐसी धारणा है जिसमे इंसान इस दुनिया में स्वयं को सर्वोपरि मानकर बाकी अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार मानता हैं। सुअर समझदार जानवर होते हैं जिनका शोषण नहीं किया जाना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com पर जायें और हमें Twitter, Facebook, एवं Instagram पर फॉलो करें।

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