PETA इंडिया इन 5 तरीकों से हाथियों की मदद करता है

Posted on by Sudhakarrao Karnal

2019 तक, भारत में कैदी हाथियों की संख्या 2675 थी। इस संख्या में वह हजारों हाथी भी शामिल हैं जो कभी सर्कस में इस्तेमाल किए जाते थे या अभी भी सवारी या समारोहों, फिल्मों और अन्य प्रदर्शनों में उपयोग किए जाते हैं। इस हेतु छोटी उम्र के बच्चे हाथियों को जंगलों से उनकी माताओं से दर्दनाक रूप से छीन कर अलग कर दिया जाता है, और जब उनसे काम नहीं करवाया जा रहा होता तो उन्हें अक्सर जंजीरों से बांधकर एकांत जगहों में रखा जाता है और उन्हें नियंत्रित करने के लिए हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है। PETA इंडिया हाथियों के ऐसे दुरुपयोग को रोकने के लिए काम कर रहा है, और नीचे दिये गए वह पांच तरीके हैं जिनसे हम हाथियों की रक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो रहे हैं-

  • कई हाथियों को भीख मँगवाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इन जानवरों को तप्ति धूप में कंक्रीट की सड़कों पर चलने के लिए मजबूर किया जाता है और यह आम तौर पर कुपोषित होते हैं, भोजन के नाम पर यह लोगों से मिले थोड़े बहुत ऐसे खाने पर निर्भर रहते है जो शायद प्रकृतिक परिवेश में रहने वाले हाथी कभी नहीं खाएँगे। PETA इंडिया ने तीन सप्ताह के गहन अभियान के बाद लक्ष्मी को ऐसी दुर्दशा से बचाया, जिसे “भारत की सबसे कमजोर हथिनी” कहा जाता था। PETA इंडिया और स्थानीय कार्यकर्ताओं के प्रयासों के कारण मध्य प्रदेश वन विभाग ने उसे भीख मँगवाने वाले मालिक से जब्त कर लिया और अंततः उसे एक विशेष हाथी देखभाल केंद्र में भेजा गया जहाँ वह अब जंजीरों से मुक्त अन्य हाथियों की संगति में रहती है।

  • एक समय था जब एक ही सर्कस में दर्जनों हाथियों का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है! 2020 में, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत संचालित एक वैधानिक निकाय ने ग्रेट गोल्डन सर्कस की मान्यता को रद्द कर दिया, जो भारत में प्रदर्शन के लिए हाथियों का उपयोग करने वाला आखिरी सर्कस था। यह कार्यवाही PETA इंडिया द्वारा एक साल तक चलाये गए लंबे अभियान के बाद की गई। PETA इंडिया ने एक आधिकारिक निरीक्षण रिपोर्ट में अहम भूमिका निभाते हुए कैदी हाथियों के साथ होने विभिन्न क्रूरताओं को उजागर करने में मदद की थी जिसमे हाथियों प्रशिक्षित करने के लिए उनके साथ होने वाली वहशियत, महावतो द्वारा अपना आदेश मनवाने के लिए उनके मनोबल को तोड़ने हेतु उनपर कई कई दिनों तक लगातार अत्याचार, उन्हें असहज और भ्रमित करने वाले करतब दिखाने के लिए मजबूर करना, और उन्हें भीड़ भाड़ और शोरगुल वाले स्थान में लेजकर उनसे करतब करवाना शामिल था। भारतीय सर्कस में हाथियों को क्या सहना पड़ता था वह इस वीडियो में देखा जा सकता है-

  • फिल्मों में भी हाथियों का इस्तेमाल किया जाता है, यह शोषण का एक अन्य रूप है जिसे जानवरों पर नहीं किया जाना चाहिए। पर्दे पर क्षण भर के लिए इन्सानों के मनोरंजन के पीछे ये जानवर जीवन भर कष्ट सहते हैं। इसके अलावा, इन दिनों, फिल्म निर्माता जीवित जानवरों का उपयोग करने के बजाय एनिमेट्रॉनिक्स, सीजीआई (कंप्यूटर जनित इमेजरी), और दृश्य प्रभाव जैसी तकनीक का विकल्प चुन सकते हैं। यह बात पूजा भट्ट जानती हैं। इसलिए, PETA इंडिया की एक अपील के जवाब में, फिश आई नेटवर्क की निदेशक पूजा ने अपने कंपनी के निर्देशन में बनने वाले फिल्मों में जानवरों का कभी भी उपयोग नहीं करने का संकल्प लिया और ऐसा करने वाली वह देश की पहली फिल्म निर्देशक हैं।

  • कुछ बुजुर्ग हाथी, जिन्हें कभी शादियों या त्योहारों में इस्तेमाल किया जाता था, हाथी सवारी देने के लिए, या अन्य मानवीय उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता था, और एक दर्दनाक अंत के साथ उनका जीवन समाप्त हो जाता था। ऐसे ही एक हाथी जिंका नाम ‘गजराज’ था, ने सतारा के औंध में लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक श्री भवानी संग्रहालय और यामाई देवी मंदिर के पास 50 से अधिक वर्ष जंजीरों की कैद में बिताए। गजराज एक बूढ़ा हाथी था जिसकी रिहाई और पुनर्वास हेतु PETA इंडिया के नेतृत्व में एक वैश्विक #FreeGajraj अभियान चलाया गया था, जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2017 में गजराज को आखिरकार रिहा कर दिया गया व रिहा होने के बाद उसे महत्वपूर्ण पशु चिकित्सा उपचार प्राप्त करने के लिए मथुरा में वन्यजीव SOS हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र भेज दिया गया। 50 वर्षों की कैद के बाद उसे अन्य हाथी साथियों के बीच प्रकर्तिक परिवेश में जंजीरों से मुक्त जीवन यापन का अवसर मिला। गजराज को महाराष्ट्र वन विभाग के सहयोग से बचाया गया था।

 

  • मंदिरों में कई हाथी दशकों तक बिना किसी दूसरे साथी हाथी को देखे एकांत जीवन जीते हैं। राम प्रसाद एक ऐसा ही हाठे था जिसे पाली गांव के मंदिर में 23 साल तक एकांत कारावास में रखा गया था। जनवरी 2015 में खंडोबा यात्रा उत्सव परेड में राम प्रसाद का इस्तेमाल किया गया था। वहां हजारों लोग ढोल पीट रहे थे और कई लोग रंग-बिरंगे पाउडर फेंक रहे थे, जो उनकी आंखों में लग रहे थे जिससे राम प्रसाद इतना परेशान हो गया की वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। इसी घबराहट में उसने एक महिला को कुचल कर मार डाला और तीन अन्य लोगों को घायल कर दिया। इस घटना के बाद , इस डर से कि वह फिर से किसी को ना मार डाले, उसे अगले 10 महीनों तक जंजीरों में ऐसे जकड़ कर रखा गया की वह ठीक से अपना कदम तक नहीं हिला पाया। PETA इंडिया ने पशु कल्याण हेतु कार्यरत एक ऐसी संस्था “एनिमल राहत” की मदद की जो इस हाथी की रक्षा हेतु मंदिर के अधिकारियों से बातचीत कर रही थी और उन्होने मंदिर अधिकारियों को इस बात पर सहमत कर लिया की राम प्रसाद को जिस देखभाल की जरूरत है वह उसे मंदिर में नहीं मिल पा रही, मंदिर के अधिकारी इस बात से सहमत होकर राम प्रसाद को रिहा करने के लिए तैयार हो गए। सरकारी अधिकारियों ने तब राम प्रसाद को वहाँ से स्ठांतरित करने की मंजूरी दे दी थी, और अब, राम प्रसाद एक सेंक्चुरी में जुल्म और जंजीरों से मुक्त जीवन यापन कर रहा है।

आप भी हाथियों की मदद कर सकते हैं! कृपया अपील पर हस्ताक्षर करके अधिकारियों से यह अनुरोध करें कि वह प्रदर्शनों हेतु हाथियों के इस्तेमाल पर रोक लगाएँ।

अपील पर हस्ताक्षर करें