PETA इंडिया के अपील के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने जानवरों की कुर्बानी के लिए अवैध हत्याओं एवं क्रूरताओं पर कार्यवाही की मांग की, जबकि राज्य ने अन्य पशु कल्याण में सुधार किए
PETA इंडिया की याचिका और सरकारी निकाय “एनिमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया” के एक परिपत्र के बाद, सहायक पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय, छत्तीसगढ़ ने सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों एवं पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर धार्मिक त्यौहारों के दौरान दी जाने वाली पशु कुर्बानी हेतु जानवरों के अवैध परिवहन एवं हत्याओं संबंधी शिकायतों पर तत्काल कार्यवाही करने और जानवरों की कुर्बानी से संबन्धित सभी पशु संरक्षण क़ानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया है। इस दौरान पिछले हफ्ते PETA इंडिया ने घोषणा की थी कि सुअर पालन में गर्भ के दौरान माता सूअरों को कैद करने वाले पिंजरों – जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट्स के निर्माण, बिक्री एवं उपयोग पर रोक लगाने की अपनी अपील के बाद, छत्तीसगढ़ के पशु चिकित्सा सेवा निदेशालय ने इस संबंध में कार्यवाही की मांग की है।
भारत के सर्वोच्च्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि जानवरों को केवल आधिकारिक रूप से लाइसेन्स प्राप्त बूचड़खानों में ही वध किया जा सकता हैं और नगरपालिका अधिकारियों को इस तरह के निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना चाहिए। जानवरों की हत्याओं के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा जारी निर्देश भी प्रजातियों के अनुरूप उनको बेहोश करने जैसे उपकरणों से लैस केवल पंजीकृत या लाइसेन्स प्राप्त बूचड़खानों में ही वध किए जाने की अनुमति प्रदान करते हैं। 7 मई 2014 को, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराजा और अन्य मामले में सुनाये गए अपने ऐतिहासिक फैसले में राज्य एजेंसियों, संबन्धित संस्थानों एवं प्रवर्तन अधिकारियों को भी पशु संरक्षण कानून के पालन करने के निर्देश दिये हैं।
इस समय के दौरान जानवरों के परिवहन के संबंध में आमतौर पर अवैध तरीकों को अपनाया जाता है जैसे ट्रकों या वाहनों में ठूस ठूस कर जानवरों को भरा जाना जिससे उनका दम घुटता है व परिवहन के दौरान उनकी हड्डियाँ टूट जाती है। हत्या हेतु ले जाते समय हेतु मारते पीटते हुए कुर्बानी वाली जगह तक लाया जाता है और फिर तेज़ धारदार हथियार से गैर प्रशिक्षित कसाइयों द्वारा उन छोटे बच्चों के सामने इन जानवरों का गला रेंत कर उन्हें धीरे-धीरे तड़फ-तड़फ कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है जो बच्चे इन जानवरों को मरते हुए नहीं देखना चाहते।
सर्कुलर में इंगित किया गया कि इस प्रकार के पिंजरे “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11(1)(e) का उल्लंघन हैं जिसके अंतर्गत किसी भी जानवर को ऐसे तंग पिंजरों में कैद रखना जिनमे वह सही से हिल डुल तक न सके, वह अवैध है। ‘‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केंद्र द्वारा भी सूअरों के संबंध में यह पुष्टि की गयी है कि सुवरों को इस तरह से रखना अवैध हैं। आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ का नाम भी शामिल हो गया है जिनके द्वारा जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट के उपयोग पर रोक लगाने हेतु सर्कुलर जारी किए हैं।