असम माता सूअरों को कैद में रखने वाले पिंजरों के खिलाफ़ सर्क्युलर ज़ारी करने वाला 20 वां राज्य बना

Posted on by Shreya Manocha

PETA इंडिया द्वारा असम सरकार से माता सूअरों को कैद में रखने वाले पिंजरों के निर्माण, बिक्री एवं उपयोग पर रोक लगाने से संबंधित अपील के परिणामस्वरूप असम सरकार के पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग के निदेशक द्वारा सभी जिलों के संयुक्त निदेशकों और पशुपालन एवं पशु चिकित्सा अधिकारियों को एक सर्कुलर जारी किया गया है। इस सर्कुलर में PETA इंडिया के अनुरोध का उचित अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।

इस सर्क्युलर में, “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11(1)(e) का उल्लेख किया गया जिसके अंतर्गत किसी भी जानवर को जेस्टेशन और फेरोइंग क्रेट की तरह ऐसे तंग पिंजरों में कैद रखना जिनमे वह सही से हिल डुल तक न सके, वह अवैध है। इन सर्कुलर में लोहे से बने इस प्रकार के क्रूर पिंजरों में माता सूअरों और उनके बच्चों को करवट बदलने या खड़े होने में होने वाली परेशानी का भी उल्लेख किया गया। इसके अनुसार, इन पिंजरों में सूअरों को अपने मल-मूत्र के बीच खड़ा रहने के लिए मजबूर किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप उनके शरीर पर गंभीर घाव और संक्रमण होते है।

पशुओं को इस प्रकार से कैद करना अवैध है और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केंद्र द्वारा सुअरों के संबंध में जेस्टेशन एवं फेरोइंग क्रेट को अवैध घोषित किया गया है जिसका इस सर्कुलर में भी उल्लेख किया गया है। असम, देश में सूअरों की सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और अब यह उन बीस राज्यों की श्रेणी में शामिल है जिनके द्वारा सूअरों को लोहे के पिंजरों में कैद करने के खिलाफ़ निर्देश ज़ारी किया गया है। सर्कुलर जारी करने वाले अन्य राज्यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तेलंगाना, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।

जेस्टेशन क्रेट (गर्भवती सुअर को जकड़ने का तंग पिंजरा) जो केवल सुअरों की माप के होते हैं, इनका फर्श पक्का या कंक्रीट का बना होता है, इसमे जानवरों को करवट बदलने या खड़े होने अत्यधिक काष्ठ होता है। जेस्टेशन क्रेट का इस्तेमाल गर्भवती सुअरों को एक जगह रोके रखने के लिए किया जाता है, बच्चों को जन्म देने के लिए फेरोइंग क्रेट में भेज दिया जाता है जो एक तरह से जन्म देने का तंग पिंजरा होता है और इन्हें वहाँ तब तक रखा जाता है जब तक उनके नवजात बच्चों को उनसे अलग न कर दिया जाए। ये फेरोइंग क्रेट मूल रूप से जेस्टेशन क्रेट के समान होते हैं, बस इनमे सूअर के नवजात बच्चों के लिए साइड में छोटे खांचे बने रहते हैं।

जेस्टेशन और फेरोइंग क्रेट इतने छोटे व सँकरे होते हैं कि वे मादा सूअरों को उन सभी चीज़ों से वंचित कर देते हैं जो उनके लिए प्राकृतिक और महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि चारा खाना, अपने बच्चों के लिए घोंसला बनाना, अन्य सूअरों के साथ समूह में रहना, उनके शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए कीचड़ में लोट पोट होना। क्रेट मे बंद सूअरों को जबरन अपने ही मल-मूत्र में सने रहने के लिए मजबूर किया जाता है। अत्यधिक क्रूरता सह रहे सुअर तनाव और हताशा का शिकार होते हैं जिसके परिणामस्वरूप असामान्य व्यवहार करते हैं जैसे कि बाड़े की सलाखों को लगातार काटने का प्रयास या हवा को लगातार चबाने की कोशिश करते रहना।

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