पृथ्वी ग्रह की तरह शरीर को पेंट करके इस जोड़े ने अर्थ डे से पहले वीगन मील का आह्वान किया
PETA इंडिया के स्वयंसेवक – पृथ्वी के समान नीले और हरे रंग में रंगे एक पुरुष और एक महिला ने पुणे की सड़क पर राहगीरों को जागरूक किया कि भोजन के लिए जानवरों को पालन पोषण, प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है और यह जलवायु आपदा में योगदान करता है। दोनों ने अपने शरीर को पृथ्वी की तरह पेंट करके हाथ में तख्ती पकड़ी थी जिस पर संदेश लिखा था – “पृथ्वी बचाओ – वीगन बनने की कोशिश करो!” इस प्रदर्शन के माध्यम से उन्होने वीगन भोजन का चुनाव करके पर्यावरण की रक्षा के लिए लोगो को प्रोत्साहित किया।
मांस, अंडा और डेयरी उत्पादन प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं और इसके परिणामस्वरूप महासागर में बहुत से जीवों की मौतें, ज़मीनों पर जानवरों के पालन पोषण के चलते निवास स्थान का विनाश और प्रजातियों का विलुप्त होना जैसे कारण छुपे हैं। मांस के लिए पशु पालन पर दुनिया के एक तिहाई मीठे पानी के संसाधनों का उपयोग होता है और कुछ अनुमानों के अनुसार, दुनिया की सभी परिवहन प्रणालियों की तुलना में मांसाहार के चलते परिवहन का एक पूरा सिस्टम तैयार होता है जिस पर अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि वीगन जीवनशैली जीने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने भोजन से संबंधित कार्बन फुटप्रिंट को 73% तक कम करता है, जिससे यह ग्रह पर कार्बन फुटप्रिंट के नकारात्मक प्रभाव को कम करने का सबसे बड़ा तरीका बन जाता है।
वीगन जीवनशैली से मानव स्वास्थ्य को भी सीधा लाभ होता है। माना जाता है कि COVID-19 जीवित-पशु बाजार के माध्यम से मनुष्यों को संक्रमित हुआ था। इसी तरह, सार्स, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और अन्य बीमारियां भोजन के लिए जानवरों को कैद करने और मारने से मनुष्यों में पैदा हुई हैं या फैल गई हैं। और एकेडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स के अनुसार, वीगन लोगों को हृदय रोग, टाइप -2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कुछ प्रकार के कैंसर और मोटापे सहित खतरनाक स्वास्थ्य स्थितियों का खतरा कम होता है।
वीगन भोजन से पशुओं को भी मदद मिलती है। जैसा कि PETA इंडिया ने अपने वीडियो एक्सपोज़ “ग्लास वॉल्स” में खुलासा किया है, अंडे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मुर्गियां इतने छोटे व तंग पिंजरों में कैद करके रखी जाती हैं कि वे एक पंख भी नहीं फैला पाती। गायों और भैंसों को इतनी बड़ी संख्या में वाहनों में ठूंस दिया जाता है कि कत्लखाने तक ले जाने से पहले अक्सर उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं, और मांस के लिए मारे जाने वाले जिंदा सूअरों के दिल में चुरा घोंप दिया जाता है। मछलियों को समुद्र से निकाल कर जिंदा तड़फने के लिए मछली पकड़ने वाली नावों के डेक पर फेंक दिया जाता है और सचेत अवस्था में होने के दौरान बिना किसी तरह की बेहोशी की दवा दिये उनके अंगों को काट दिया जाता है। नर चूजे आगे चलकर अंडे नहीं दे पाएगे इसलिए अंडा उद्योग में उन्हें बेकार मानकर जिंदा जमीन में दफन करके, जलाकर, पीसकर, कुचलकर या फिर मछलियों का चारा बनाकर र्दनाक तरीके से मौत के घाट उतार दिया जाता है और उसी तरह से डेयरी उद्योग में नर बछड़ों को बेकार मानकर उनकी माताओं से अलग करके उन्हें भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।