आपने क्या पहन रखा है? विश्व वीगन माह के दौरान, PETA इंडिया ने जनता को जागरूक किया कि चमड़ा पैरों के लिए गोमांस के सामान है

Posted on by Shreya Manocha

विश्व वीगन माह (नवंबर) के दौरान, PETA द्वारा देशभर के बाज़ारों में बड़े-बड़े होर्डिंग लगवाकर लोगों को चमड़े और गोमांस के बीच समानता का संदेश दिया जा रहा है। यह बिलबोर्ड उल्लेखित करते हैं कि जो लोग गोमांस नहीं खाते हैं उन्हें चमड़ा का भी त्याग करना चाहिए। इस अभियान का प्रमुख उपलक्ष्य खरीदारों को यह याद दिलाना है कि चमड़ा गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर और अन्य जानवरों से बनाया जाता है जो हमारी ही तरह अपना जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करना चाहते हैं।

भारत में चमड़े के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गायों और भैंसों को ट्रकों में इतना ठूंस-ठूंसकर भर दिया जाता है कि उनमें से कई जानवर दबकर, कुचलकर और दम घुटने के कारण अपनी जान गवां देते हैं। इन पहले से चोटिल पशुओं को बूचड़खानों के अंदर अक्सर खींच-खींचकर लाया जाता है और अन्य डरे-सहमे जानवरों के सामने गला काटकर इन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। भारत में गोमांस और चमड़े के लिए मारे जाने वाले मवेशी बड़े पैमाने पर डेयरी उद्योग से आते हैं। वे या तो नर बछड़े हैं, जो दूध नहीं दे सकते, या मादा बछड़े हैं जिनका दूध उत्पादन कम हो गया है। एक अनुमान के मुताबिक 20 लाख भारतीय मवेशियों की बांग्लादेश में तस्करी की जाती है, जहां उनकी खाल को भी चमड़े में बदल दिया जाता है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, भारत “गाय के बछड़े सहित गाय की खाल” का भी आयात करता है।

 

Global Fashion Agenda द्वारा Boston Consulting Group and Sustainable Apparel Coalition के साथ मिलकर प्रकाशित “Pulse of the Fashion Industry” नामक एक रिपोर्ट के अनुसार, चमड़ा फैशन में सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाली सामग्री है। यह इंसानों के लिए भी बेहद ख़तरनाक है। नरी कर्मचारी अक्सर कैंसर, त्वचा और श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बांग्लादेश के टैनिंग क्षेत्र में, 90% श्रमिक जहरीले रसायनों के संपर्क के परिणामस्वरूप 50 वर्ष की आयु से पहले मर जाते हैं। दुनिया का अधिकांश चमड़ा विकासशील देशों में उत्पादित होता है जहां पर्यावरण और श्रम कल्याण मानदंड पश्चिम देशों की तुलना में कम सजग माने जाते हैं।

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