PETA इंडिया की याचिका के परिणामस्वरूप गौहाटी उच्च न्यायालय ने असम सरकार को बैलों की अनधिकृत लड़ाई रोकने का निर्देश दिया

Posted on by Erika Goyal

आज, गौहाटी उच्च न्यायालय द्वारा PETA इंडिया की याचिका के जवाब में, असम राज्य में किसी भी तरह की बैल की लड़ाई (मोह-जूज) को रोकने का निर्देश दिया गया। अपने आदेश में माननीय न्यायमूर्ति मनीष चौधरी ने उल्लेखित किया कि 25 जनवरी 2024 के बाद असम में आयोजित कोई भी बैल की लड़ाई प्रथम दृष्टया अवैध है, क्योंकि वे असम सरकार द्वारा मोह-जुज के संबंध में जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) के अंतर्गत दी गयी समय सीमा का स्पष्ट उल्लंघन हैं। विशेष रूप से, नागांव जिले के अधिकारियों को PETA  इंडिया द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर इस सप्ताह के अंत में होने वाली बैल की लड़ाई पर रोक लगाने का निर्देश दिया गया है। राज्य सरकार द्वारा इस प्रकार के आयोजनों को अनुमति दिए जाने को असंवैधानिक घोषित किए जाने के संबंध में PETA इंडिया की याचिका पर कार्यवाही देय है लेकिन कोर्ट ने अंतरिम तौर पर सरकार द्वारा प्रसारित SOP को सख्ती से लागू करने का आदेश दिया है। इसके अलावा, अदालत ने राज्य सरकार को मंगलवार, 6 फरवरी तक कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

असम सरकार के बैल की लड़ाई को अनुमति प्रदान करने के निर्णय के बाद, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने गौहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर, इस प्रकार की क्रूर लड़ाइयों को फिर से प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया है। मामले से संबंधित साक्ष्य के रूप में, PETA इंडिया ने इन लड़ाइयों की एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करी, जिससे पता चला कि इन लड़ाइयों के लिए डरे हुए एवं गंभीर रूप से घायल बैलों को लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

 

16 जनवरी को असम के मोरीगांव जिले के अहातगुरी में हुई बैलों की लड़ाई की जांच से पता चला कि बैलों को लड़ने के लिए उकसाने हेतु, इनके मालिकों ने इन्हें बहुत मारा-पीटा, लाठी चुभाई, और इनकी नाक की रस्सी को बड़ी ही बेरहमी से खींचा गया, जिससे इनकी नथुनी फट गयी और उससे खून बहने लगा। यहाँ तक कि लड़ाई के दौरान भी कुछ मालिकों और संचालकों ने बैलों को और अधिक परेशान करने के लिए उन्हें लकड़ी के डंडों से मारा और नंगे हाथों से पीटा। इन सब से उत्तेजित होकर, बैलों ने अपने-अपने सींग आपस में फंसा लिए और लड़ने लगे जिससे उनकी गर्दन, कान, चेहरे और माथे पर बहुत से खूनी घाव हो गए एवं कई बैलों के पूरे शरीर पर चोटें आईं। यह लड़ाई तब तक जारी रही जब तक कि दो बैलों में से कोई एक अपनी हिम्मत पूरी तरह से हार न गया।

इनके मालिकों और संचालकों ने बैलों की संवेदनशील नाक में रस्सियाँ डालकर उन्हें घसीटा। इस झटके के कारण कुछ पशुओं की नाक से खून बहने लगा और कई बैलों ने दर्द से राहत पाने के प्रयास में बार-बार अपनी नाक को चाटा। लड़ाई के दौरान इन सभी पशुओं के लिए, किसी प्रकार की छाया, भोजन-पानी या पशुचिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गयी, जो असम सरकार द्वारा बैलों की लड़ाई के लिए जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं का स्पष्ट उल्लंघन है।

कुछ बैल मालिकों ने जानवरों को दर्शक स्टैंड में एक अलग और अव्यवस्थित लड़ाई में भाग लेने के लिए मज़बूर किया गया, जबकि आधिकारिक लड़ाई मैदान में आयोजित की गई थी। इन अवैध लड़ाइयों से बैलों द्वारा दर्शकों को घायल करने या कुचलने का खतरा बढ़ जाता है।

PETA इंडिया द्वारा उच्च न्यायालय में दर्ज़ याचिका में उल्लेखित किया गया है कि बैल और बुलबुल की लड़ाई भारतीय संविधान के साथ-साथ, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा  के फैसले का भी स्पष्ट उल्लंघन है। PETA इंडिया यह भी उल्लेखित करता है कि इस तरह की लड़ाइयाँ स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं और इसमें भाग लेने के लिए मजबूर जानवरों को अथाह दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह लड़ाइयाँ अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का खंडन करती हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार के आयोजनों को जारी रखना एक प्रतिगामी कदम है जो मानव और पशु अधिकारों में लगभग एक दशक की प्रगति को नष्ट कर देगा।

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