PETA इंडिया की याचिका के बाद गौहाटी उच्च न्यायालय द्वारा असम के नगांव में बैलों की अनधिकृत लड़ाई पर रोक लगा दी गयी

Posted on by Erika Goyal

PETA इंडिया द्वारा एक अंतरिम आवेदन दर्ज़ होने के बाद, गौहाटी उच्च न्यायालय ने निर्देश जारी किए कि संबंधित अधिकारी असम में जानवरों की लड़ाई के संचालन को नियंत्रित करने वाली मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का सख्ती से कार्यान्वयन सुनिश्चित करें जिसमें बैलों की लड़ाई केवल 15 से 25 जनवरी के बीच और बुलबुल की लड़ाई केवल माघ बिहू के अवसर पर आयोजित करने की अनुमति शामिल हैं। इस निर्देश के परिणामस्वरूप, राज्य में सभी अनधिकृत लड़ाइयों पर रोक लग गयी है। इसके साथ-साथ असम सरकार को बैल एवं बुलबुल की लड़ाई को अनुमति प्रदान करने और इस संबंध में जारी SOP को चुनौती देने वाली PETA इंडिया की रिट याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश भी दिया गया है।

इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन के माध्यम से, PETA उल्लेखित किया कि असम में जानवरों की अनधिकृत लड़ाइयाँ बहुत आम हैं जिसमें 4 और 5 फरवरी को नागांव जिले के हाथीगढ़ में होने वाला एक आयोजन शामिल है। संबंधित मामले में, गौहाटी उच्च न्यायालय ने तुरंत संज्ञान लिया एवं 1 फरवरी के एक आदेश ज़ारी किया एवं जिला प्रशासन को कार्रवाई करने का निर्देश दिया। इसके परिणामस्वरूप, जिला आयुक्त को बैलों की अनधिकृत लड़ाई को रोकने का आदेश दिया गया। इन आदेशों के अनुपालन में, पुलिस अधिकारियों ने होने वाले आयोजनों को रोका और सभी प्रचार पोस्टर तुरंत हटा दिए गए।

 

असम सरकार के बैल की लड़ाई को अनुमति प्रदान करने के निर्णय के बाद, PETA इंडिया ने गौहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर, बैल और बुलबुल की क्रूर लड़ाइयों को फिर से प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया है। मामले से संबंधित साक्ष्य के रूप में, PETA इंडिया ने इन लड़ाइयों की एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करी, जिससे पता चला कि इन लड़ाइयों के लिए डरे हुए एवं गंभीर रूप से घायल बैलों को लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

16 जनवरी को असम के मोरीगांव जिले के अहातगुरी में हुई बैलों की लड़ाई की जांच से पता चला कि बैलों को लड़ने के लिए उकसाने हेतु, इनके मालिकों ने इन्हें बहुत मारा-पीटा, लाठी चुभाई, और इनकी नाक की रस्सी को बड़ी ही बेरहमी से खींचा गया, जिससे इनकी नथुनी फट गयी और उससे खून बहने लगा। यहाँ तक कि लड़ाई के दौरान भी कुछ मालिकों और संचालकों ने बैलों को और अधिक परेशान करने के लिए उन्हें लकड़ी के डंडों से मारा और नंगे हाथों से पीटा। इन सब से उत्तेजित होकर, बैलों ने अपने-अपने सींग आपस में फंसा लिए और लड़ने लगे जिससे उनकी गर्दन, कान, चेहरे और माथे पर बहुत से खूनी घाव हो गए एवं कई बैलों के पूरे शरीर पर चोटें आईं। यह लड़ाई तब तक जारी रही जब तक कि दो बैलों में से कोई एक अपनी हिम्मत पूरी तरह से हार न गया।

इनके मालिकों और संचालकों ने बैलों की संवेदनशील नाक में रस्सियाँ डालकर उन्हें घसीटा। इस झटके के कारण कुछ पशुओं की नाक से खून बहने लगा और कई बैलों ने दर्द से राहत पाने के प्रयास में बार-बार अपनी नाक को चाटा। लड़ाई के दौरान इन सभी पशुओं के लिए, किसी प्रकार की छाया, भोजन-पानी या पशुचिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गयी, जो असम सरकार द्वारा बैलों की लड़ाई के लिए जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं का स्पष्ट उल्लंघन है।

 

कुछ बैल मालिकों ने जानवरों को दर्शक स्टैंड में एक अलग और अव्यवस्थित लड़ाई में भाग लेने के लिए मज़बूर किया गया, जबकि आधिकारिक लड़ाई मैदान में आयोजित की गई थी। इन अवैध लड़ाइयों से बैलों द्वारा दर्शकों को घायल करने या कुचलने का खतरा बढ़ जाता है।

PETA इंडिया द्वारा उच्च न्यायालय में दर्ज़ याचिका में उल्लेखित किया गया है कि बैल और बुलबुल की लड़ाई भारतीय संविधान के साथ-साथ, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा  के फैसले का भी स्पष्ट उल्लंघन है। PETA इंडिया यह भी उल्लेखित करता है कि इस तरह की लड़ाइयाँ स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं और इसमें भाग लेने के लिए मजबूर जानवरों को अथाह दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह लड़ाइयाँ अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का खंडन करती हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार के आयोजनों को जारी रखना एक प्रतिगामी कदम है जो मानव और पशु अधिकारों में लगभग एक दशक की प्रगति को नष्ट कर देगा।

बैलों की क्रूर एवं अवैध लड़ाइयों को रोकने में हमारी सहायता करें

बुलबुल की क्रूर एवं अवैध लड़ाइयों को रोकने में हमारी सहायता करें