बड़ी जीत! PETA इंडिया की अपील के बाद, मोरीगांव में बैलों की अवैध लड़ाई पर रोक लगाई गयी
PETA इंडिया द्वारा असम के मोरीगांव में जिला प्रशासन और पुलिस अधीक्षक से की गयी अपील के परिणामस्वरूप, 25 फरवरी को चिकाबोरी में होने वाली बैलों की अवैध लड़ाई पर रोक लगाई गयी।
गौहाटी उच्च न्यायालय द्वारा PETA इंडिया की याचिका के जवाब में, असम राज्य में किसी भी तरह की बैल की लड़ाई (मोह-जूज) को रोकने का निर्देश दिया गया। अपने आदेश में माननीय न्यायमूर्ति मनीष चौधरी ने उल्लेखित किया कि 25 जनवरी 2024 के बाद असम में आयोजित कोई भी बैल की लड़ाई प्रथम दृष्टया अवैध है, क्योंकि वे असम सरकार द्वारा मोह-जुज के संबंध में जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) के अंतर्गत दी गयी समय सीमा का स्पष्ट उल्लंघन हैं। अपनी अपील में PETA इंडिया द्वारा उल्लेखित किया गया कि इस प्रकार की क्रूर लड़ाई का आयोजन माननीय गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन एवं इसलिए इस पर रोक लगाना अनिवार्य है।
हाल ही में, PETA इंडिया की शिकायतों के बाद, असम के नागांव जिले के राहा कोरोइगुड़ी और कासोमारी में आयोजित बैलों की अवैध लड़ाई के दौरान बैलों के खिलाफ होने वाली क्रूरता के जघन्य कृत्यों के जवाब में राहा पुलिस और नागांव सदर पुलिस द्वारा दो FIR दर्ज की गईं हैं। इस आयोजन का वीडियो यूट्यूब पर भी अपलोड किया गया था। इन संबंध में, आयोजकों, प्रतिभागियों और पशु मालिकों के खिलाफ बैलों की अवैध लड़ाइयों का आयोजन एवं संचालन करने, बैलों को पीटकर उनके साथ अत्यधिक क्रूरता करने और बैलों के सींग खींचकर उन्हें उत्तेजित करने एवं मानव जीवन को खतरे में डालने हेतु FIR दर्ज की गई है।
असम सरकार के बैल की लड़ाई को अनुमति प्रदान करने के निर्णय के बाद, PETA इंडिया ने गौहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर, इस प्रकार की क्रूर लड़ाइयों को फिर से प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया है। मामले से संबंधित साक्ष्य के रूप में, PETA इंडिया ने इन लड़ाइयों की एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करी, जिससे पता चला कि इन लड़ाइयों के लिए डरे हुए एवं गंभीर रूप से घायल बैलों को लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।
16 जनवरी को असम के मोरीगांव जिले के अहातगुरी में हुई बैलों की लड़ाई की जांच से पता चला कि बैलों को लड़ने के लिए उकसाने हेतु, इनके मालिकों ने इन्हें बहुत मारा-पीटा, लाठी चुभाई, और इनकी नाक की रस्सी को बड़ी ही बेरहमी से खींचा गया, जिससे इनकी नथुनी फट गयी और उससे खून बहने लगा। यहाँ तक कि लड़ाई के दौरान भी कुछ मालिकों और संचालकों ने बैलों को और अधिक परेशान करने के लिए उन्हें लकड़ी के डंडों से मारा और नंगे हाथों से पीटा। इन सब से उत्तेजित होकर, बैलों ने अपने-अपने सींग आपस में फंसा लिए और लड़ने लगे जिससे उनकी गर्दन, कान, चेहरे और माथे पर बहुत से खूनी घाव हो गए एवं कई बैलों के पूरे शरीर पर चोटें आईं। यह लड़ाई तब तक जारी रही जब तक कि दो बैलों में से कोई एक अपनी हिम्मत पूरी तरह से हार न गया।
इनके मालिकों और संचालकों ने बैलों की संवेदनशील नाक में रस्सियाँ डालकर उन्हें घसीटा। इस झटके के कारण कुछ पशुओं की नाक से खून बहने लगा और कई बैलों ने दर्द से राहत पाने के प्रयास में बार-बार अपनी नाक को चाटा। लड़ाई के दौरान इन सभी पशुओं के लिए, किसी प्रकार की छाया, भोजन-पानी या पशुचिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गयी, जो असम सरकार द्वारा बैलों की लड़ाई के लिए जारी मानक संचालन प्रक्रियाओं का स्पष्ट उल्लंघन है।
कुछ बैल मालिकों ने जानवरों को दर्शक स्टैंड में एक अलग और अव्यवस्थित लड़ाई में भाग लेने के लिए मज़बूर किया गया, जबकि आधिकारिक लड़ाई मैदान में आयोजित की गई थी। इन अवैध लड़ाइयों से बैलों द्वारा दर्शकों को घायल करने या कुचलने का खतरा बढ़ जाता है।
PETA इंडिया द्वारा उच्च न्यायालय में दर्ज़ याचिका में उल्लेखित किया गया है कि बैल और बुलबुल की लड़ाई भारतीय संविधान के साथ-साथ, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा के फैसले का भी स्पष्ट उल्लंघन है। PETA इंडिया यह भी उल्लेखित करता है कि इस तरह की लड़ाइयाँ स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं और इसमें भाग लेने के लिए मजबूर जानवरों को अथाह दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह लड़ाइयाँ अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का खंडन करती हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार के आयोजनों को जारी रखना एक प्रतिगामी कदम है जो मानव और पशु अधिकारों में लगभग एक दशक की प्रगति को नष्ट कर देगा।
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