PETA इंडिया की दिल्ली मशीनीकरण परियोजना के माध्यम से 150वें पशु को बचाया गया और इस विशेष अवसर पर आम आदमी पार्टी की पार्षद शिवानी पांचाल एवं PETA इंडिया द्वारा लाभार्थी परिवारों को ई-रिक्शा की चाबियां सौंपी गयी
हाल ही में दिल्ली के नांगलोई स्थित असम टिम्बर मार्केट को पशु-मुक्त बनाने के बाद, PETA इंडिया द्वारा आज दिल्ली के शाहदरा स्थित लोनी रोड पर शहीद चन्द्रशेखर पार्क में आयोजित एक कार्यक्रम में 150 वें पशु को शोषणमुक्त कराके रेस्क्यू करने का जश्न मनाया गया। इस आयोजन के दौरान, आम आदमी पार्टी की पार्षद शिवानी पांचाल और PETA इंडिया की निदेशक पूर्वा जोशीपुरा द्वारा पशु गाड़ियों के 24 पुराने मालिकों को ई-रिक्शा की चाबियां सौंपीं गई। PETA इंडिया द्वारा अब तक बचाए गए सभी बैल, घोड़े और अन्य पशु वर्तमान में अपना जीवन अभयारण्यों में शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत कर रहे हैं। यह दयालु पहल पशु शोषण को समाप्त करने और बेहतर आजीविका को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं। दिल्ली में सैकड़ों बैल और घोड़ों को धीमी गति से चलने वाली गाड़ियाँ और ताँगे चलाने हेतु बाध्य किया जाता है जो कि यातायात, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक बड़ा ख़तरा है, जिसमें इन पशुओं के गोबर और तांगा चलाने वाले मृत पशुओं के शवों की उपस्थिति जैसी समस्याएँ भी शामिल हैं। जबकि दिल्ली नगर निगम द्वारा दिनांक 4 जनवरी 2010 को पारित प्रस्ताव संख्या 590, शहर में घोड़े द्वारा खींचे जाने वाले तांगों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है।
PETA इंडिया की दिल्ली मशीनीकरण परियोजना को “गिविंग इकोनॉमी चेंजमेकर्स अवार्ड” से नवाज़ा गया है और इस परियोजना के अंतर्गत भारी माल ढोने के लिए मजबूर किए जाने वाले बैल, गधे, टट्टू और घोड़ों जैसे शोषित पशुओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है एवं उनके मालिकों को आजीविका का एक बेहतर एवं गैर-पशु विकल्प उपलब्ध कराया जाता है। वर्ष 2018 से लेकर अब तक इस परियोजना के अंतर्गत दिल्ली में दर्जनों तांगों और बैलगाड़ियों को बैटरी से चलने वाले ई-रिक्शा से बदला गया है, बचाए गए पशुओं का पुनर्वास सुनिश्चित किया है, और लाभान्वित परिवारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाया गया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR-NRCE) के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने हाल ही में पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA), इंडिया द्वारा दिल्ली में तांगा चलाने के लिए अवैध रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों से एकत्र किए गए तीन सैम्प्ल्स ग्लैंडर्स नामक एक खतरनाक ज़ूनोटिक बीमारी के लिए पोसिटिव पाए गए हैं जो मनुष्यों हेतु भी जानलेवा साबित हो सकती है। ICAR-NRCE द्वारा दिल्ली के पशुपालन एवं डेयरी विभाग से इस बीमारी के अधिक प्रकोप को रोकने के लिए प्रभावित क्षेत्र में घोड़ों की आवाजाही को सख्ती से नियंत्रित करने और इनकी निगरानी करने का अनुरोध किया गया है। संस्था द्वारा इन तीन घोड़ों की संक्रामक बीमारी के संबंध में “पशुओं में संक्रामक और संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम, 2009” के अनुरूप कार्यवाही करने का अनुरोध भी किया गया है। इसके परिणामस्वरूप, पशुपालन और डेयरी विभाग के निदेशक ने भारत में ग्लैंडर्स के नियंत्रण और उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना, 2019 के अनुसार उपाय करने हेतु एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम को निर्देशित किया है।
घोड़ों और बैलों को अक्सर बीमार या घायल होने पर भी काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। गाड़ी मालिकों द्वारा पशुओं को ओवरलोडेड गाड़ियां खींचने हेतु मजबूर करने के लिए चाबुक, नाक की दर्दनाक रस्सियों और काँटेदार लगामों का उपयोग किया जाता है। इन पशुओं को पर्याप्त भोजन-पानी एवं तेज़ धूप से छाया जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जाता है और अक्सर अपनी मृत्यु तक काम करने के लिए मज़बूर किया जाता है। इन्हें घाव, फोड़े, मांसपेशियों और जोड़ों की बीमारियों, कैंसर, अंधापन एवं योक पित्त जैसी ख़तरनाक बीमारियों के लिए किसी प्रकार की पशु चिकित्सकीय देखभाल भी नहीं प्रदान की जाती है।