PETA इंडिया की तत्काल याचिका के बाद, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने बैलों की अवैध लड़ाइयों के संबंध में असम सरकार को फटकार लगाई

Posted on by Erika Goyal

असम राज्य में 25 जनवरी के बाद आयोजित होने वाले बैलों की कई अवैध लड़ाइयों का खुलासा करने वाली PETA इंडिया द्वारा हाल ही में दायर एक याचिका के जवाब में माननीय गौहाटी उच्च न्यायालय ने असम सरकार को फटकार लगाते हुए उल्लेखित किया कि, “अधिकारी मामले को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं” और इस प्रकार की अकर्मण्यता के संबंध में कोर्ट द्वारा गंभीर आपत्ति दर्ज़ करी गयी है। यह ध्यान देने योग्य है कि राज्य की मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के अनुसार, 25 जनवरी के बाद से असम में बैलों और बुलबुल की अवैध लड़ाइयों पर रोक लगाई गयी है। अदालत ने राज्य को अपना जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त दो सप्ताह का समय दिया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि अनुपालन में विफल रहने पर निर्णायक कार्रवाई की जाएगी। अपने पिछले अंतरिम आदेशों को जारी रखते हुए, अदालत ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि असम में किसी भी बैलों की अवैध लड़ाई का आयोजित न की जाए।

PETA इंडिया ने अदालत और जिला अधिकारियों को सूचित किया कि राज्य में फरवरी और हाल ही में 14 अप्रैल को बैलों की अवैध लड़ाइयों का आयोजन किया गया था। असम सरकार के बैल की लड़ाई को अनुमति प्रदान करने के निर्णय के बाद, PETA इंडिया ने गौहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर, इस प्रकार की क्रूर लड़ाइयों को फिर से प्रतिबंधित करने का अनुरोध किया है। मामले से संबंधित साक्ष्य के रूप में, PETA इंडिया ने इन लड़ाइयों की एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करी, जिससे पता चला कि इन लड़ाइयों के लिए डरे हुए एवं गंभीर रूप से घायल बैलों को लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

15 जनवरी को असम के हाजो में आयोजित बुलबुल की लड़ाई की जांच रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित पक्षी रेड-वेंटेड बुलबुल को जबरन कैद करके और भोजन का लालच देकर अवैध रूप से लड़ने के लिए उकसाया गया जो कि उनकी प्राकृतिक प्रवृत्ति के बिल्कुल खिलाफ़ है। रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि इन पक्षियों को लड़ाई से कई दिन पहले ही जबरन कैद कर लिया जाता है जबकि संरक्षित जंगली पक्षियों को पकड़ना इनके शिकार का ही एक रूप माना जाता है जो कि पूर्णत अवैध है।

Assam Buffalo Fight Investigation = from officialPETAIndia on Vimeo.

हाल ही में, PETA इंडिया की शिकायतों के बाद, असम के नागांव जिले के राहा कोरोइगुड़ी और कासोमारी में आयोजित बैलों की अवैध लड़ाई के दौरान बैलों के खिलाफ होने वाली क्रूरता के जघन्य कृत्यों के जवाब में राहा पुलिस और नागांव सदर पुलिस द्वारा दो FIR दर्ज की गईं हैं। इस आयोजन का वीडियो यूट्यूब पर भी अपलोड किया गया था। इन संबंध में, आयोजकों, प्रतिभागियों और पशु मालिकों के खिलाफ बैलों की अवैध लड़ाइयों का आयोजन एवं संचालन करने, बैलों को पीटकर उनके साथ अत्यधिक क्रूरता करने और बैलों के सींग खींचकर उन्हें उत्तेजित करने एवं मानव जीवन को खतरे में डालने हेतु FIR दर्ज की गई है।

कथित तौर पर, पक्षियों को उत्तेजित करने के लिए उन्हें आमतौर पर भांग का नशा दिया जाता है और अन्य नशीली जड़ी-बूटियाँ, केले, काली मिर्च, लौंग और दालचीनी खिलाई जाती हैं, फिर लड़ाई से पहले उन्हें कम से कम एक रात के लिए भूखा रखा जाता है। लड़ाई के दौरान, भूखे पक्षियों के सामने केले का एक टुकड़ा लटका दिया जाता है, जो उन्हें एक-दूसरे पर हमला करने के लिए उकसाता है। प्रत्येक लड़ाई लगभग पांच से 10 मिनट तक चली, और संचालकों ने थके हुए पक्षियों पर बार-बार हवा मारकर उन्हें लड़ाई जारी रखने के लिए मजबूर किया।

Bulbul Bird Fighting Investigation from officialPETAIndia on Vimeo.

 PETA इंडिया द्वारा उच्च न्यायालय में दर्ज़ याचिका में उल्लेखित किया गया है कि बैल और बुलबुल की लड़ाई भारतीय संविधान के साथ-साथ, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960; और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा  के फैसले का भी स्पष्ट उल्लंघन है। PETA इंडिया यह भी उल्लेखित करता है कि इस तरह की लड़ाइयाँ स्वाभाविक रूप से क्रूर होती हैं और इसमें भाग लेने के लिए मजबूर जानवरों को अथाह दर्द और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह लड़ाइयाँ अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों का खंडन करती हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार के आयोजनों को जारी रखना एक प्रतिगामी कदम है जो मानव और पशु अधिकारों में लगभग एक दशक की प्रगति को नष्ट कर देगा।

बैलों की क्रूर लड़ाइयों पर रोक लगाने में हमारी सहायता करें!

बुलबुलों को लड़ने के लिए मजबूर होने के बचाएं!