PETA इंडिया की शिकायत के बाद मोती नगर में पालतू पशुओं की दुकान पर छापेमारी करके तोतों की जान बचाई गयी
PETA इंडिया की एक शिकायत पर कार्रवाई करते हुए, दिल्ली वन विभाग ने दिल्ली के न्यू मोती नगर स्थित मेन पटेल रोड पर पालतू पशुओं की एक अवैध दुकान से चार एलेक्जेंड्रिन तोतों की जान बचाई गयी। एक चिंतित नागरिक से सूचना मिलने के बाद, PETA इंडिया ने क्षेत्र में पालतू जानवरों की दुकानों की जांच की और बाद में दिल्ली वन विभाग को एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें अनुरोध किया गया कि इन पक्षियों को बचाया जाए और इस दुकान के मालिक के खिलाफ़ मामला दर्ज किया जाए।
इन पक्षियों को रेस्कयू के बाद, स्वास्थ्य जांच, उपचार एवं अस्थायी पुनर्वास हेतु भेजा गया है और इन्हें पूरी तरह ठीक होने के बाद प्रकृति में छोड़ दिया जाएगा। प्लम-हेडेड और एलेक्जेंड्राइन तोते वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) की अनुसूची II के तहत संरक्षित प्रजाति की श्रेणी में आते हैं। संरक्षित प्रजाति के पशुओं को खरीदना, बेचना या पालना एक अपराध है और इसके लिए तीन साल की जेल की सजा और अधिकतम 1 लाख रुपये के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora (CITES) के तहत लुप्तप्राय वन्यजीवों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संरक्षण प्रदान किया गया है। CITES के अंतर्गत संरक्षित लुप्तप्राय प्रजातियाँ WPA, 1972 की अनुसूची IV के तहत संरक्षित हैं।
पक्षियों के अवैध व्यापार में, अनगिनत पक्षियों को उनके परिवारों से अलग कर दिया जाता है और हर उस चीज़ से वंचित कर दिया जाता है जो उनके लिए प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण है ताकि इन पक्षियों को “पालतू जीवों” के रूप में बेचा जा सके या फर्जी तौर पर, भाग्य-बताने वाले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। नन्हे-नन्हे पक्षियों को अक्सर उनके घोंसलों से जबरन उठा लिया जाता है जिस कारण अन्य पक्षी भी घबरा जाते हैं। इस दौरान पिंजरों से निकलने का प्रयास करते हुए कई पक्षी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और अपनी जान भी गवां देते हैं। पकड़े गए पक्षियों को छोटे-छोटे पिंजरों में बंद किया जाता है, एवं अनुमानित तौर पर इनमें से 60% पक्षी टूटे हुए पंख और पैर एवं प्यास या अत्यधिक घबराहट के कारण रास्ते में ही मर जाते हैं। इसके बाद भी जो पक्षी बचा जाते हैं उन्हें अंधेरे पिंजरों की कैद और अकेले जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है और वह कुपोषण, मानसिक बीमारियों एवं तनाव का सामना करते हैं और दुर्व्यवहार से पीड़ित होते हैं।
WPA, 1972, स्वदेशी प्रजाति के पक्षियों को पकड़ने, उन्हें पिंजरों में कैद करने और उनके व्यापार पर प्रतिबंध लगता है और इसका पालन ना करने पर कारावास की सज़ा, व जुर्माना अथवा दोनों होने का भी प्रावधान है। इसके अलावा पक्षियों को पिंजरों में बंद करना पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 का भी उलंघन है जो यह निर्धारित करता है कि किसी भी जानवर को किसी भी ऐसे पिंजरे में कैद करना गैर कानूनी है जहां उसे हिलने डुलने तक की पर्याप्त जगह ना हो, इसमे आसमान में उड़ने वाले पक्षियों के लिए उड़ान भी शामिल है।
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