PETA इंडिया की शिकायत के परिणामस्वरूप और श्रीमती मेनका गांधी के समर्थन से दिल्ली में छापेमारी करके 1,000 से अधिक तोतों एवं अन्य पक्षियों का रेसक्यू किया गया

Posted on by Shreya Manocha

PETA इंडिया की एक शिकायत पर कार्रवाई करते हुए और जामा मस्जिद पुलिस स्टेशन के सहयोग से, दिल्ली वन विभाग के केंद्रीय प्रभाग ने जामा मस्जिद के पास स्थित कबूतर मार्केट की दुकानों से 1,000 पक्षियों को बरामद किया, जिनमें एलेक्ज़ेंड्राइन पैराकीट, फ़िंच और कई अन्य प्रजातियों के पक्षी शामिल हैं। इनमें से कई पक्षी छोटे-छोटे तंग पिंजरों में और कपड़े की थैलियों में ठूस-ठूसकर भरे हुए एवं मृत पाए गए। संबंधित मामले में, PETA इंडिया ने वन विभाग को एक शिकायत भेजकर अनुरोध किया था कि इन पक्षियों को जब्त किया जाए और इन अवैध दुकान मालिकों के खिलाफ़ मामला दर्ज किया जाए। जामा मस्जिद पुलिस स्टेशन कथित अपराधियों के खिलाफ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA) , 1972 की प्रासंगिक धाराओं के तहत FIR दर्ज़ करने की प्रक्रिया में है। PETA इंडिया द्वारा घटनास्थल पर दो बंद दुकानों को खोलने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों और श्रीमती मेनका गांधी का सहयोग प्राप्त किया गया था, जिसके अंदर छुपाये गए तोतों को बरामत किया गया।

मार्च 2022 में, PETA इंडिया की एक शिकायत के जवाब में, दिल्ली पुलिस ने कबूतर मार्केट में अवैध व्यापारियों से हजारों छोटे और बड़े पक्षियों को बरामद किया था। इन पक्षियों में रिंग-नेक्ड और प्लम-हेडेड तोते, सैकड़ों मुनिया, दो आम पहाड़ी मैना और एक कबूतर शामिल थे।

रेस्कयू के बाद, जिंदा बचे पशुओं को स्वास्थ्य जांच, उपचार एवं अस्थायी पुनर्वास हेतु भेजा गया है और इन्हें पूरी तरह ठीक होने के बाद प्रकृति में वापिस छोड़ दिया जाएगा। प्रकृति में जीवित रहने में असमर्थ प्रतीत होने वाले कुछ पक्षियों को स्थायी देखभाल के लिए अभयारण्य में भेजा जाएगा।

एलेक्जेंड्राइन तोते वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) की अनुसूची II के तहत संरक्षित प्रजाति की श्रेणी में आते हैं। संरक्षित प्रजाति के पशुओं को खरीदना, बेचना या पालना एक अपराध है और इसके लिए तीन साल की जेल की सजा और अधिकतम 1 लाख रुपये के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora (CITES) के तहत लुप्तप्राय वन्यजीवों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संरक्षण प्रदान किया गया है। CITES के अंतर्गत संरक्षित लुप्तप्राय प्रजातियाँ WPA, 1972 की अनुसूची IV के तहत संरक्षित हैं।

पक्षियों के अवैध व्यापार में, अनगिनत पक्षियों को उनके परिवारों से अलग कर दिया जाता है और हर उस चीज़ से वंचित कर दिया जाता है जो उनके लिए प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण है ताकि इन पक्षियों को “पालतू जीवों” के रूप में बेचा जा सके या फर्जी तौर पर, भाग्य-बताने वाले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। नन्हे-नन्हे पक्षियों को अक्सर उनके घोंसलों से जबरन उठा लिया जाता है जिस कारण अन्य पक्षी भी घबरा जाते हैं। इस दौरान पिंजरों से निकलने का प्रयास करते हुए कई पक्षी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और अपनी जान भी गवां देते हैं। पकड़े गए पक्षियों को छोटे-छोटे पिंजरों में बंद किया जाता है, एवं अनुमानित तौर पर इनमें से 60% पक्षी टूटे हुए पंख और पैर एवं प्यास या अत्यधिक घबराहट के कारण रास्ते में ही मर जाते हैं। इसके बाद भी जो पक्षी बचा जाते हैं उन्हें अंधेरे पिंजरों की कैद और अकेले जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है और वह कुपोषण, मानसिक बीमारियों एवं तनाव का सामना करते हैं और दुर्व्यवहार से पीड़ित होते हैं।

 

WPA, 1972, स्वदेशी प्रजाति के पक्षियों को पकड़ने, उन्हें पिंजरों में कैद करने और उनके व्यापार पर प्रतिबंध लगता है और इसका पालन ना करने पर कारावास की सज़ा, व जुर्माना अथवा दोनों होने का भी प्रावधान है। इसके अलावा पक्षियों को पिंजरों में बंद करना पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 का भी उलंघन है जो यह निर्धारित करता है कि किसी भी जानवर को किसी भी ऐसे पिंजरे में कैद करना गैर कानूनी है जहां उसे हिलने डुलने तक की पर्याप्त जगह ना हो, इसमे आसमान में उड़ने वाले पक्षियों के लिए उड़ान भी शामिल है।

पक्षियों को पिंजरे में कैद करने पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करें!