बेंगलुरु में कुत्ते के मांस के खिलाफ़ जनता के आक्रोश ने PETA इंडिया को प्रो-वीगन बिलबोर्ड लगाने के लिए प्रेरित किया
हाल ही में जयपुर से बेंगलुरु के एक रेलवे स्टेशन पर पहुंचाए गए लगभग 2700 किलोग्राम के कुत्ते के मांस की संदिग्ध खेप पर सार्वजनिक आक्रोश के बाद, PETA इंडिया ने बेंगलुरु में मांसाहारियों के प्रजातिवाद (कुछ प्रजातियों के पक्ष में पूर्वाग्रह) के खिलाफ बिलबोर्ड लगवाए हैं। इस बिलबोर्ड में एक जानवर को कुत्ते के शरीर और मुर्गे के सिर के साथ दिखाया गया है, और जनता को वीगन जीवनशैली अपनाने हेतु प्रोत्साहित करते हुए यह प्रश्न किया गया, “यदि आप कुत्ते को नहीं खाएंगे, तो चिकन क्यों खाएं?”। इनका उद्देश्य जनता को यह याद दिलाना है कि कुत्ते और मुर्गी दोनों को डर एवं दर्द का एहसास होता है एवं यह निर्दोष प्राणी भी अपना जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करना चाहते हैं।
भोजन के लिए पशुओं का उपयोग बड़े पैमाने पर पीड़ा का कारण बनता है। कुत्तों को जबरन कैद किया जाता है, अंडे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मुर्गियां इतने छोटे व तंग पिंजरों में कैद करके रखी जाती हैं कि वे एक पंख भी नहीं फैला पाती। मछलियों को समुद्र से निकाल कर जिंदा तड़फने के लिए मछली पकड़ने वाली नावों के डेक पर फेंक दिया जाता है और सचेत अवस्था में होने के दौरान बिना किसी तरह की बेहोशी की दवा दिये उनके अंगों को काट दिया जाता है। नर चूजे आगे चलकर अंडे नहीं दे पाएगे इसलिए अंडा उद्योग में उन्हें बेकार मानकर मौत के घाट उतार दिया जाता है और उसी तरह से डेयरी उद्योग में नर बछड़ों को बेकार मानकर उनकी माताओं से अलग करके उन्हें भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
इसके अलावा, मांस और अन्य पशु-व्युत्पन्न खाद्य पदार्थ के सेवन को हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह, कैंसर और मोटापे जैसी गंभीर बीमारियों से जोड़कर देखा गया है, जबकि भोजन के लिए जानवरों को पालना और मारना SARS, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला, HIV और संभवतः कोविड-19 सहित कई जूनोटिक रोगों से जुड़ा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि जलवायु आपदा के सबसे बुरे प्रभावों से निपटने के लिए वीगन जीवनशैली की ओर एक वैश्विक बदलाव आवश्यक है।
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