PETA इंडिया की शिकायत के बाद, कानपुर छापेमारी में 700 से अधिक तोतों एवं अन्य पक्षियों को बरामद किया गया और तीन व्यापारियों को गिरफ़्तार किया गया

Posted on by Erika Goyal

इस सप्ताह, PETA इंडिया की एक शिकायत पर कार्रवाई करते हुए और कोतवाली पुलिस स्टेशन के सहयोग से, उत्तर प्रदेश वन विभाग के कानपुर प्रभाग ने प्रभागीय वन अधिकारी श्रीमती दिव्या, IFS के नेतृत्व में छापेमारी करके कानपुर के परेड बाजार की दुकानों से 700 से अधिक पक्षियों को बरामद किया जिनमें लगभग 90 गुलाबी-छल्ले वाले तोते, 50 टुइयाँ तोते, 10 एलेक्जेंड्राइन तोते, 250 स्केली-ब्रेस्टेड मुनिया, 150 भारतीय सिल्वरबिल मुनिया, 110 लाल मुनिया, 50 तिरंगे रंग वाली मुनिया, और पहाड़ी मैना शामिल है। PETA इंडिया ने कानपुर के वन अधिकारियों के पास एक औपचारिक शिकायत दर्ज़ कराकर यह अनुरोध किया था कि इन पक्षियों को जब्त किया जाए एवं अवैध विक्रेताओं के खिलाफ़ मामला दर्ज़ किया जाए। संबंधित मामले में कोतवाली पुलिस स्टेशन द्वारा अपराधियों के खिलाफ़ वनजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972 की संबंधित धाराओं के तहत FIR दर्ज़ करने के उपरांत तीन कथित अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

अप्रैल में, कानपुर के वन अधिकारियों ने एक गन्ने के रस विक्रेता की दुकान पर बेहद छोटे और गंदे पिंजरों में रखे गए भारतीय रिंग-नेक्ड तोतों को बचाया था और PETA इंडिया की एक शिकायत के जवाब में पक्षियों के अवैध मालिक के खिलाफ एक प्रारंभिक अपराध रिपोर्ट दर्ज करी गयी था।

रेस्कयू के बाद, जिंदा बचे पशुओं को स्वास्थ्य जांच, उपचार एवं अस्थायी पुनर्वास हेतु भेजा गया है और इन्हें पूरी तरह ठीक होने के बाद प्रकृति में वापिस छोड़ दिया जाएगा। प्रकृति में जीवित रहने में असमर्थ प्रतीत होने वाले कुछ पक्षियों को स्थायी देखभाल के लिए अभयारण्य में भेजा जाएगा।

पहाड़ी मैना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) की अनुसूची I के तहत संरक्षित प्रजाति की श्रेणी में आते हैं। अनुसूची I के अंतर्गत किसी भी संरक्षित प्रजाति के पशु को खरीदना, बेचना या पालना अपराध है और इसके लिए तीन से सात साल की जेल की सजा और कम से कम 25,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। गुलाबी-छल्ले वाले तोते, टुइयाँ तोते, एलेक्जेंड्राइन तोते, स्केली-ब्रेस्टेड मुनिया, भारतीय सिल्वरबिल मुनिया, लाल मुनिया, तिरंगे रंग वाली मुनिया, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित प्रजाति की श्रेणी में आते हैं। संरक्षित प्रजाति के पशुओं को खरीदना, बेचना या पालना एक अपराध है और इसके लिए तीन साल की जेल की सजा और अधिकतम 1 लाख रुपये के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora (CITES) के तहत लुप्तप्राय वन्यजीवों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संरक्षण प्रदान किया गया है। CITES के अंतर्गत संरक्षित लुप्तप्राय प्रजातियाँ WPA, 1972 की अनुसूची IV के तहत संरक्षित हैं।

पक्षियों के अवैध व्यापार में, अनगिनत पक्षियों को उनके परिवारों से अलग कर दिया जाता है और हर उस चीज़ से वंचित कर दिया जाता है जो उनके लिए प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण है ताकि इन पक्षियों को “पालतू जीवों” के रूप में बेचा जा सके या फर्जी तौर पर, भाग्य-बताने वाले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। नन्हे-नन्हे पक्षियों को अक्सर उनके घोंसलों से जबरन उठा लिया जाता है जिस कारण अन्य पक्षी भी घबरा जाते हैं। इस दौरान पिंजरों से निकलने का प्रयास करते हुए कई पक्षी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और अपनी जान भी गवां देते हैं। पकड़े गए पक्षियों को छोटे-छोटे पिंजरों में बंद किया जाता है, एवं अनुमानित तौर पर इनमें से 60% पक्षी टूटे हुए पंख और पैर एवं प्यास या अत्यधिक घबराहट के कारण रास्ते में ही मर जाते हैं। इसके बाद भी जो पक्षी बचा जाते हैं उन्हें अंधेरे पिंजरों की कैद और अकेले जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है और वह कुपोषण, मानसिक बीमारियों एवं तनाव का सामना करते हैं और दुर्व्यवहार से पीड़ित होते हैं।

WPA, 1972, स्वदेशी प्रजाति के पक्षियों को पकड़ने, उन्हें पिंजरों में कैद करने और उनके व्यापार पर प्रतिबंध लगता है और इसका पालन ना करने पर कारावास की सज़ा, व जुर्माना अथवा दोनों होने का भी प्रावधान है। इसके अलावा पक्षियों को पिंजरों में बंद करना पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 का भी उलंघन है जो यह निर्धारित करता है कि किसी भी जानवर को किसी भी ऐसे पिंजरे में कैद करना गैर कानूनी है जहां उसे हिलने डुलने तक की पर्याप्त जगह ना हो, इसमे आसमान में उड़ने वाले पक्षियों के लिए उड़ान भी शामिल है।

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पशु क्रूरता के खिलाफ़ कुछ महत्वपूर्ण कदम