3.5 मीटर लंबी ‘पशुओं’ की पोशाक पहनकर PETA इंडिया के समर्थकों ने जनता से पशुओं के हित में सही निर्णय लेकर वीगन जीवनशैली अपनाने का आग्रह किया

Posted on by Shreya Manocha

चेन्नई में PETA इंडिया के समर्थकों ने पशुओं के हित में आवाज़ उठाते हुए, लोगों को प्रजातिवाद के खिलाफ़ जागरूक किया। इस रोमांचक प्रदर्शन हेतु समर्थकों द्वारा 3.5 मीटर लंबी पोशाक पहनी गयी एवं मुर्गी एवं गाय के मुखौटे पहनकर लोगों को पशुओं की दर्द एवं पीड़ा का एहसास कराया। इस प्रदर्शन का मुख्त उद्देश्य जनता को वीगन जीवनशैली अपनाने हेतु प्रेरित करना था।

प्रजातिवाद, लिंगवाद, नस्लवाद और भेदभाव के अन्य रूपों की तरह एक त्रुटिपूर्ण विचारधारा है, जिसमे मनुष्य इस संसार में स्वयं को सर्वोपरि मानकर अन्य समस्त प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। यह एक गलत धारणा है कि इस दुनिया में कोई एक प्रजाति किसी दूसरी प्रजाति की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। हमारे समाज में इस गन्दी विचारधारा का गहरा असर दिखाई देता है और इसके परिणामस्वरूप बहुत से नकारात्मक परिणाम हमारे सामने आते हैं। आज यह जानने और समझने का सही वक्त है कि सभी जीव दर्द, पीड़ा, व प्यार महसूस कर सकते हैं और उनके साथ सम्मान और करुणा के साथ व्यवहार करना आवश्यक है। हम प्रजातिवाद को अस्वीकार कर सभी जानवरों के प्रति निष्ठा और सम्मान भरा व्यवहार कर सकते हैं, और इसके लिए सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि जानवरों को मानव शोषण से मुक्त रहने का अधिकार है।

PETA इंडिया उल्लेखित करता है कि भोजन हेतु मौत के घाट उतारे जाने वाले पशुओं को अत्यंत पीड़ा का सामना करना पड़ता है जैसा कि “Glass Walls” नामक बेहद चर्चित वीडियो में देखा जा सकता है जिसमें डेयरी उद्योग की वास्तविक क्रूरता का पर्दाफाश किया गया है। फ़ैक्टरी फ़ार्मों पर मुर्गियों को हज़ारों की संख्या में भीड़-भाड़ वाले शेडों में पैक किया जाता है, जहां उन्हें जमा कचरे के बीच अमोनिया की दुर्गंध में जबरन खड़ा होने के लिए बाध्य किया जाता है। उन्हें हर उस चीज़ से वंचित कर दिया जाता है जो उनके लिए प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण है। भोजन के लिए मारी जाने वाली मुर्गियों और अन्य जानवरों को वाहनों में भरकर इतनी अधिक संख्या में बूचड़खानों में ले जाया जाता है कि कई जानवरों की हड्डियाँ टूट जाती हैं, दम घुट जाता है, या रास्ते में ही मृत्यु हो जाती हैं। बूचड़खानों में मजदूर अक्सर बकरियों, भेड़ों और अन्य जानवरों का गला कम धार वाले ब्लेडों से काट देते हैं। साथ ही, मछली पकड़ने वाली नौकाओं के डेक पर जीवित रहते हुए भी मछलियाँ का गला चीर दिया जाता हैं।

Nature नामक एक पत्रिका द्वारा किए गए शोध के अनुसार, अगर पूरा विश्व मुख्यतः पेड़-पौधों पर आधारित भोजनशैली अपना लें तो भोजन तंत्र से होने वाले ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन को आधा किया जा सकता है। वीगन जीवनशैली अपनाने वाला हर व्यक्ति अपने कार्बन फुटप्रिंट को 73% तक कम कर सकता हैं और हर वर्ष 200 जानवरों की जान बचा सकता हैं।