PETA इंडिया द्वारा पिलिकुला चिड़ियाघर के दरवाजे पर कंबाला के आयोजन को रोकने के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गईं
हाल में PETA इंडिया द्वारा याचिकाएँ दायर करके कई कंबाला आयोजनों पर रोक लगवाई गयी है, जिसमें पिलिकुला जैविक उद्यान (चिड़ियाघर) के दरवाजे पर एक आगामी कम्बाला कार्यक्रम भी शामिल है, जिसके अंदर लगभग 1250 जानवर रहते हैं, जिनमें लुप्तप्राय और संरक्षित दोनों तरह के जानवर शामिल हैं। इस संबंध में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कल चिड़ियाघर के पास आयोजित होने वाले कम्बाला कार्यक्रम की वैधता से संबंधित अतिरिक्त तथ्य प्रस्तुत करने की अनुमति दी। भैंसों को होने वाले शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आघात के अलावा, चिड़ियाघर के जानवरों के पास ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव को लेकर गंभीर चिंताओं के कारण इस आयोजन पर आपत्ति जताई जा रही है। PETA इंडिया की याचिका 26 अक्टूबर 2024 से 19 अप्रैल 2025 तक कर्नाटक के विभिन्न स्थानों पर नियोजित कम्बाला कार्यक्रमों पर मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वीकार करी गयी है।
पिलिकुला जैविक उद्यान के निदेशक श्री जयप्रकाश भंडारी ने कहा है कि नियोजित कम्बाला कार्यक्रम पिलिकुला जैविक उद्यान के हेरिटेज खंड के पास होगा । उन्होंने चेतावनी दी है कि इस निकटता के कारण सैकड़ों भैंसों से चिड़ियाघर में वन्यजीवों में वायुजनित और अन्य बीमारियों के फैलने का गंभीर खतरा है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले कम्बाला कार्यक्रमों में तेज़ शोर के कारण चिड़ियाघर के जानवरों के व्यवहार में बहुत असहजता पाई गई थी। चिड़ियाघर के निदेशक ने कम्बाला संयोजक और पिलिकुला विकास प्राधिकरण से कार्यक्रम को रोकने के लिए औपचारिक अनुरोध किया है।
यह आयोजन पिलिकुला जैविक उद्यान के 100 मीटर के भीतर किया जा रहा है और कम्बाला ट्रैक के निर्माण से होने वाला ध्वनि प्रदूषण समेत अन्य प्रदूषण चिड़ियाघर के जानवरों और उनकी प्राकृतिक दिनचर्या पर गंभीर नकारात्मक परिणाम डाल सकता है। PETA इंडिया का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण जानवरों में गंभीर तनाव और भय पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप उनके भोजन, बच्चों के पालन-पोषण, सोने और संभोग व्यवहार में बदलाव आ सकता है। शोर का जानवरों पर शारीरिक प्रभाव भी हो सकता है, जैसे उनके दिल की धड़कन बढ़ जाना और घबराहट के कारण उनकी सांस लेने की प्रक्रिया में बदलाव महसूस किया जाता है। PETA इंडिया ने चेतावनी दी है कि पिंजरों और बाड़ों में फंसे जानवर भागने की कोशिश में खुद को घायल भी कर सकते हैं। चूंकि चिड़ियाघरों में कई शिकार होने वाली प्रजातियों के जानवर हैं, इसलिए शोर के कारण शिकारियों से होने वाले संभावित खतरे को सुनने में असमर्थ होने के कारण वे तनाव महसूस करते हैं।
बैल प्राकृतिक रूप से घबराए हुए और शिकार से डरने वाले पशु होते हैं और इसलिए बैलों की दौड़, लड़ाई या जल्लीकट्टू के दौरान इनका प्रयोग करने के दौरान इन्हें दर्द, घबराहट और भय पैदा करके भागने के लिए उकसाया जाता है। PETA इंडिया द्वारा कई वर्षों के दौरान इसके वीडियो साक्ष्य एकत्र किए गए हैं कि बैलों को जल्लीकट्टू के मैदान में जबरन घुसाने के लिए दरांती या नुकीली लाठियों या उपयोग किया जाता है, उनकी नाक की रस्सियों को बेरहमी से खींचा जाता है या उनकी पुंछ को दांतों से काटा जाता है।
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वर्ष 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा और अन्य मामले में एक विस्तृत और तर्कसंगत निर्णय पारित करते हुए, जल्लीकट्टू सहित सभी प्रकार के बैलों के प्रदर्शन को भारतीय संविधान और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के अंतर्गत पशुओं को प्रदान किए गए अधिकारों का उल्लंघन घोषित किया था। हालाँकि, यह निर्णय पारित होने के बाद, वर्ष 2017 की शुरुआत में, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने क्रमशः जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलों की दौड़ को अनुमति प्रदान करने के लिए अपने राज्यों के पशु संरक्षण कानूनों में संशोधन किया था। 18 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी इन राज्यों में इस प्रकार के आयोजनों को अनुमति प्रदान करी थी।
PETA इंडिया लंबे समय से प्रदर्शन हेतु बैलों के प्रयोग के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहा है।