PETA इंडिया ने ‘यूनाइटेड नेशन्स चाइल्ड राइट कमिटी’ की सिफारिश के आधार पर बच्चों को जल्लीकट्टू और पशु बलि में भाग लेने से बचाने का आग्रह लिया

Posted on by Surjeet Singh

इस वर्ष बढ़ती मानव और बैल मृत्यु दर तथा मदुरई में जल्लीकट्टू के दौरान बी. नवीन कुमार नामक एक 22 वर्षीय युवक की मौत के बाद, पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने “केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री” श्रीमती अन्नपूर्णा देवी जी को एक पत्र लिखकर उनसे “जल्लीकट्टू के आयोजनों में दर्शक या प्रतिभागी के रूप में बच्चों को जान के खतरे से बचाने” का अनुरोध किया है। इस पत्र में, “बच्चों को पशु बलि जैसी हिंसातमक प्रक्रिया और पशुओं को ‘मनोरंजन’ के रूप में प्रयोग करने वाली गतिविधियों से भी दूर रखने का अनुरोध किया गया है जिसमें पशु सर्कस, पशु दौड़ और पशुओं की अवैध लड़ाइयों जैसे क्रूर आयोजन शामिल हैं।“ वर्ष 2017 में जब से तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को पुनः अनुमति दी गई है, तब से कम से कम 134 इंसानों एवं बच्चों और 45 बैलों ने अपनी जान गंवाई है। 16 जनवरी को केवल एक दिन में जल्लीकट्टू के आयोजनों में छह दर्शकों सहित सात लोगों की मौत हो गई और पिछले कुछ दिनों में तीन बैल भी मर चुके हैं।

PETA इंडिया के पत्र में मंत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी जी से बाल अधिकार समिति द्वारा प्रकाशित जलवायु परिवर्तन पर विशेष फोकस के साथ बच्चों के अधिकार और पर्यावरण पर सामान्य टिप्पणी संख्या 26 (2023) जिसमें कहा गया है कि “बच्चों को सभी प्रकार की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक हिंसा और जोखिम से बचाया जाना चाहिए जिसमें घरेलू हिंसा और विशेषकर पशुओं के खिलाफ़ हिंसा शामिल है।“  को लागू कराने के लिए अपना नेतृत्व प्रदान करने का अनुरोध किया गया है। ‘बाल अधिकार समिति’ के पास, यूनाइटेड नेशन कन्वेन्शन ऑन राइट्स ऑफ द चाइल्ड (UNCRC) का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है, जो विभिन्न देशों द्वारा हस्ताक्षरित एक कानूनी समझौता है जिसमें हर बच्चे के मौलिक अधिकारों को रेखांकित किया गया है। भारत द्वारा 11 दिसंबर 1992 को बाल श्रम के संबंध में केवल कुछ व्यावहारिक मुद्दों पर आपत्तियों के साथ सभी आर्टिकलस पर सैद्धांतिक रूप अपनी सहमति दर्ज कराई गई थी।

 

PETA इंडिया ने अपने पत्र में लिखा, “सभी पशु इंसानों की तरह संवेदनशील प्राणी होते हैं, जिन्हें हमारी ही तरह दर्द, डर और पीड़ा का एहसास होता है और इन्हें इतनी क्रूरता के साथ मरते देखना एक बेहद दर्दनाक क्षण है। इसका मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चों के ऊपर बहुत डरावना प्रभाव पड़ता है जिनके अंदर स्वाभाविक रूप से पशुओं के प्रति सहानुभूति होती है। ऐसे भयानक अनुभवों के कारण, बच्चों के अंदर अंजान डर, घबराहट, मानसिक आघात या हिंसा के प्रति असंवेदनशीलता जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।“

इस पत्र में यह भी बताया गया की, “खेल के दौरान मौजूद रहने के कारण, बच्चों को भी गंभीर चोट लग सकती हैं और यह उनकी जान के लिए भी बड़ा खतरा है। सभी तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट जाहिर है कि यह बच्चा बैलों की अवैध दौड़ के दौरान करी गई संवेदनहीन हिंसा और खुलेआम पशुओं की मौत देखने के कारण भयानक सदमे में होगा। हाल के वर्षों में विभिन्न जल्लीकट्टू आयोजनों में गंभीर चोटों के पीड़ितों में एक 12 वर्षीय और एक 14 वर्षीय बच्चा भी शामिल है।“ PETA इंडिया के पत्र के अनुसार, “वर्ष 2012 में एलोनोरा गुलोन द्वारा Animal Cruelty, Antisocial Behaviour, and Aggression: More than a Link नामक अध्ययन के अनुसार, बच्चों द्वारा कम उम्र में पशु हिंसा का अनुभव करना, आगे चलकर स्वयं हिंसक गतिविधियों में लिप्त होने का प्रमुख कारण है।

Forensic Research & Criminology International Journal में प्रकाशित एक लेख में, पशु क्रूरता और इंसानों के प्रति हिंसा, जिसमें घरेलू हिंसा और बाल हिंसा शामिल है, के बीच कई संबंधों को तथ्यात्मक रूप से उल्लेखित किया गया है। इसके अनुसार, “पशु शोषणकारियों में समानतः Antisocial Personality Disorder के लक्षण पाएं जाते हैं और इनकी आपराधिक प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है। जो लोग पशु क्रूरता में शामिल होते हैं, उनके अन्य अपराध करने की संभावना 3 गुना अधिक होती है, जिसमें हत्या, बलात्कार, डकैती, हमला, उत्पीड़न, धमकी और नशीली दवाओं/मादक द्रव्यों का सेवन शामिल है।“

जल्लीकट्टू के दौरान, लोग बैलों का पीछा करने और उन्हें डराने-धमकाने के लिए इकट्ठा होते हैं, जिस दौरान इन निर्दोष पशुओं की नाक में रस्सियाँ डाली जाती हैं और इन्हें बेहद पीड़ादायक हाथियारों से मारा-पीटा जाता है। इस दौरान, यह सभी बैल डरकर इधर-उधर भागने लगते हैं जिससे कई बार यह चोटिल होकर खुद की हड्डियाँ तोड़ लेते हैं,  या अपनी जान गँवा देते हैं, और भागने की कोशिश में अन्य प्रतिभागियों और दर्शकों को भी घायल कर देते हैं।

हर साल धार्मिक अवसरों के दौरान अप्रशिक्षित लोगों द्वारा खुलेआम अस्वच्छ परिस्थितियों में बलि के लिए बकरियों, भैंसों, ऊंटों और अन्य सहित हजारों पशुओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है। ये कृत्य अक्सर धार्मिक स्थलों या सड़कों पर भारी भीड़ के सामने होते हैं, जिसमें छोटी उम्र के बच्चे भी शामिल होते हैं। इन पशुओं को मारने के लिए बहुत से क्रूर तरीकों को अपनाया जाता है जिसमें, पशुओं का सिर काटना, गर्दन मरोड़ना, तेज उपकरणों से वार करना, कुचलना, काटना और गला काटना जैसी प्रथाएं शामिल हैं वो भी पशुओं की सचेत अवस्था के दौरान, जिससे उन्हें अत्यधिक पीड़ा होती है।

साथ ही, पशु सर्कसों द्वारा पशुओं को हथियारों के बल पर डरा-धमकाकर और अन्य तरह से शोषित करके प्रदर्शन करने के लिए मजबूर किया जाता है। वही अवैध पशु लड़ाइयों के दौरान, कुत्ते, मुर्गे सहित अन्य पशुओं को अपनी अंतिम सांस तक लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

पशुओं पर होने वाली क्रूरता का विरोध कैसे करें