जयपुर से अवैध हाथी सवारी समाप्त कराने हेतु, PETA इंडिया राजस्थान उच्च न्यायालय पहुंचा।
PETA इंडिया ने राजस्थान उच्च न्यायालय में जयपुर से अवैध हाथी सवारी को समाप्त करने की याचिका दायर की
PETA इंडिया ने राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर बैंच के समक्ष एक याचिका दायर कर आमेर के किले व हाथीगांव से अवैध हाथीसवारी को समाप्त करने की मांग की है।
समूह की याचिका, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन संवैधानिक संस्था ‘भारतीए पशु कल्याण बोर्ड’ द्वारा अधिकृत निरीक्षकों की उस जांच रिपोर्ट का परिणाम है जिसमे कहा गया था कि जयपुर में एतिहासिक स्थलों पर सवारी में उपयोग किए जाने वाले हाथी द्रष्टिबाधित होने के साथ साथ टी.बी. से भी ग्रसित है जो कि मनुष्यों में भी संक्रमित हो सकता है।
PETA इंडिया ने वन्यजीव अपराध नियन्त्रण ब्यूरो (वाईल्ड लाईफ क्राइम ब्यूरो- डब्ल्यू.सी.सी.बी.) जो कि व्यवस्थित तरीकों से होने वाले वन्यजीव अपराधों से निपटने के लिये पर्यावरण, वन और जलवायू परिवर्तन मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक निकाय है, को जयपुर में बंदी बनाये गये हाथियों को गैरकानूनी तरीकों से पर्यटक सवारी में इस्तेमाल किये जाने पर सर्तक किया था। उसमें अधिकांश हाथियों के दांत कटे होने से हाथीदांत व्यापार की सम्भावनाओं का शक जाहिर किया था। PETA इंडिया की शिकायत का संज्ञान लेते हुए वन्यजीव अपराध नियन्त्रण ब्यूरो ने राजस्थान के मुख्य वन्यजीव वार्डन को तुरन्त मामले की जांच करने के आदेश दिये थे।
वहीं दूसरी तरफ PETA इंडिया के प्रतिनिधि ने हाल ही में राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव तथा वन एवं पर्यावरण, पर्यटन, कला और संस्कृति विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के साथ बैठक की जिसमे उनको पशु कल्याण बोर्ड द्वारा अप्रेल 2018 में जयपुर में बंदी हाथियों पर किये गये निरीक्षण की रिपोर्ट के मुख्य अंश पेश किये थे। रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि जयपुर में पर्यटक सवारी व अन्य पयर्टन कार्यो में इस्तेमाल किये जा रहे 91 हाथियों में से 10 टीबी से संक्रमित पाये गये थे। जवाब में, पुरातत्व और संग्रहालय विभाग जो कि आमेर के किले में हाथियों की सवारी को विनियमित करने के लिये जिम्मेदार है, ने आदेश दिया था कि टीबी संक्रमित हाथियों को सार्वजनिक सम्पर्क से तुरंत हटा दिया जाए।
भारतीय पशु कल्याण विभाग अपनी जाँच रिपोर्ट में जयपुर के पास आमेर के किले में 102 हाथियों को गैरकानूनी तरीकों से पर्यटक सवारी में इस्तेमाल होने व वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन होने का खुलासा किया था। इन उल्लंघनों में अन्य राज्यों से राजस्थान में हाथियों का गैरकानूनी हस्तांतरण व परिवहन तथा कई अवैध स्वामित्व प्रमाणपत्रों जैसी अवमाननायें शामिल हैं। राजस्थान वन विभाग द्वारा जारी किये गये 48 स्वामित्व प्रमाणपत्रों में हाथियों के ‘‘वर्तमान बाज़ार मूल्य’’ को संदर्भित किया गया है हालांकि हाथियों का वाणिज्यिक मूल्य लगाना कानूनन प्रतिबंधित है, प्रमाणपत्रों को अमान्य साबित करता है। 47 हाथियों के दांत काट दिये गये थे और हाथियों के संरक्षक ऐसा कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नही कर सके जो यह प्रमाणित करता हो की वन विभाग द्वारा उन्हे ऐसा करने की अनुमित प्रदान की गयी थी, जांचकताओं को इस निश्कर्ष पर पहुंचाता है कि यंहा अवैध हाथीदांत का व्यापार संभव है।
PETA इंडिया यह मानता है कि 47 हाथियों के अवैध रूप से काटे गये हाथीदातों का अनुमानित वजन लगभग 23.5 से 47 किलोग्राम है जो कि काफी बडे अपराध की सम्भावनाओं को उजागर करता है। हाल ही में वन्यजीव वार्डन के. कोमारिक्कल एलियास के मामले में अध्यादेश का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि हाथीदांत सकरार की सम्पत्ति है जो वन्यजीव संरक्षण कानून की धारा 39.1 के तहत भी घोषित किया गया है।
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है की अध्ययन किए गए सभी हाथी पैर की विभिन्न समस्याओं से पीड़ित पाये गए जिनमें अत्यधिक बढे हुए पैर के नाखून व पैरों की चोटिल तली मुख्य थे, बहुत से हाथियों का अजीबो-गरीब व्यावहार जैसे सर को एक ही तरह से बार बार घुमाना, गंभीर मनोवेज्ञानिक स्थिति का संकेतक है। जांच में समस्त हाथी 200 किलोग्राम से भारी सामान ढोते पाये गये थे जो कि पहाड़ी स्थानों जैसे आमेर का किला पर भार ढोने की कानूनन निर्धारित सीमा से बहुत अधिक है।
PETA इंडिया ने जून 2018 में पुरातत्व एवं संग्रहालय तथा वन विभाग राजस्थान को पत्र लिखकर अवैध हाथी सवारी पर तत्काल रोक लगाने के लिए कहा था क्यूंकि इन दोनों ही विभागों द्वारा अभी तक आमेर तथा हाथीगाँव में हाथी सवारी को स्वीकृति दी गयी थी। इसके जवाब में PETA इंडिया को “पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग” के अधीक्षक से एक पत्र प्राप्त हुआ था जिन्होने राजस्थान के मुख्य वन्यजीव वार्डन (CWLW) को नोटिस भेजकर कहा था कि हाथी सवारी की अनुमति देने से पहले विभाग को चिड़ियाघर से हाथी का स्वास्ठ प्रमाण पत्र तथा CWLW से अनापत्ति प्रमाण पत्र कि आवश्यकता है, CWLW को यह निर्धारित करना चाहिए कि हाथी सवारी की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। राजस्थान सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ PETA इंडिया की बैठकों के बाद वन विभाग ने पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग को आदेश दिया था कि टी.बी. संक्रमित हाथियों को सार्वजनिक सम्पर्क से तुरंत हटा दिया जाए।
हालांकि, राज्य के दोनों ही विभागों द्वारा अवैध हाथी सवारी को रोकने की असफल कार्यवाही ने समूह को अदालत का दरवाजा खटखटाने पे मजबूर किया ।
यह भारत के पवित्र वन्यजीवों की रक्षा करने और अमानवीय हाथी सवारी को समाप्त करने का समय है।
जयपुर से क्रूर हाथी-सवारी को समाप्त करने में मदद करें।