कुत्तों की अवैध लड़ाइयों और हमलों के बढ़ते मामलों के बीच देश के 21 पशु संरक्षण समूहों ने पिट बुल जैसी प्रजातियों पर प्रस्तावित प्रतिबंध के समर्थन में पत्र भेजे

Posted on by Erika Goyal

देश के 21 पशु संरक्षण समूहों ने सरकार से एक संयुक्त एवं कई स्वतंत्र पत्रों के माध्यम से पिट बुल और इसी प्रकार के विदेशी प्रजाति के कुत्तों पर प्रतिबंध लगाने की अपील की है। आमतौर पर इस प्रकार की प्रजातियों के कुत्तों का प्रयोग डॉग फाईट (अवैध लड़ाइयों) के आयोजन हेतु किया जाता है। समर्थन करने वाले समूहों की सूची में PETA इंडिया, फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशन (FIAPO), समायू, फ़ौना पुलिस, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनिमल राइट्स, हेरिटेज एनिमल टास्क फोर्स, संस्थानम अभय दानम, पीपल फॉर कैटल इन इंडिया, शीतल छाया ट्रस्ट, बदलो रे, औषध दानम, ज्ञान दानम गुरुकुल, होली काउ फाउंडेशन, CAPE फाउंडेशन, कंपेशनेट लिविंग, एनिमल वेलफ़ैर ट्रस्ट एकाम्र, सेकर्ड अर्थ ट्रस्ट, कंपेशन फॉर एनिमल्स वेलफेयर एसोसिएशन, उम्मीद फॉर एनिमल्स फाउंडेशन, अर्थलिंग ट्रस्ट और और कंपेशन अनलिमिटेड प्लस एक्शन जैसे नाम शामिल हैं।

2 मई को, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे गए अपने परिपत्र पर सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित करी थी, जो मूल रूप से 12 मार्च को जारी किया गया था, जिसमें लगभग 23 विदेशी नस्लों पर प्रतिबंध लगाया गया था, जिनका प्रयोग कुत्तों की अवैध लड़ाइयों हेतु किया जाता है एवं जिन्हें भारी जंजीरों में कैद रखा जाता है। हाल ही में, इन कुत्तों द्वारा इन्सानों पर किए गए कई गंभीर एवं घातक हमलों की घटनाएँ सामने आई हैं। प्रस्तावित नीति में पिटबुल के साथ-साथ उन सभी प्रजातियों के कुत्तों को शामिल किया गया है जो भारत में आम नहीं हैं और इसमें अन्य निवारक उपाय भी शामिल हैं।

भारत में, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत कुत्तों को लड़ने के लिए उकसाना गैरकानूनी होने के बावजूद, देश के कुछ हिस्सों में संगठित कुत्तों की लड़ाई प्रचलित है, जिससे इन लड़ाइयों में इस्तेमाल होने वाले पिटबुल प्रजाति व उनके जैसे अन्य प्रजाति के कुत्ते सबसे अधिक दुर्व्यवहार से पीड़ित नस्ल हैं। पिट बुल को आम तौर पर डॉग फाईट (अवैध लड़ाई) में इस्तेमाल करने के लिए पाला जाता है या हमलावर कुत्तों के रूप में जंजीरों से बांधकर रखा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वह जीवन भर पीड़ा सहते हैं। कई कुत्ते दर्दनाक शारीरिक विकृति का सामना करते हैं जैसे कि उनके कान काट देना। यह इसलिए किया जाता है कि लड़ाई के दौरान विपक्षी कुत्ता उनको कान से पकड़ कर न हरा दे। इन कुत्तों को तब तक लड़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जब तक कि वे थक न जाएँ और कम से कम दोनों कुत्तों में से एक गंभीर रूप से घायल न हो जाए या मर न जाए। कुत्तों की लड़ाइयाँ गैरकानूनी होने के कारण डॉग फाईट में घायल हुए कुत्तों को समय रहते पशु चिकित्सकों के पास लेकर भी नहीं जाया जाता है।

भारत में, 80 मिलियन कुत्ते और बिल्लियाँ बेघर पशुओं के रूप में अपना जीवन सड़कों पर व्यतीत कर रहे हैं और पशु आश्रयों में भी अत्यधिक भीड़ है। इसी के साथ-साथ भारतीयों द्वारा पिटबुल और इससे संबंधित नस्लों का सबसे अधिक त्याग किया जाता है। ब्रीडर्स द्वारा खरीदारों को इस संदर्भ में अवगत नहीं कराया जाता है कि इस नस्ल के कुत्तों का UK में कुत्तों के चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से डॉगफाइट्स और हमले  हेतु प्रयोग करने के लिए वांछनीय विशेषताओं को बढ़ाने हेतु प्रजनन किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप यह बहुत ही आक्रामक होते हैं, इनके जबड़े असामान्य रूप से मजबूत होते हैं और इनकी मांसपेशियों अत्यंत ताकतवर होती हैं। ब्रिटेन में, वर्ष 1835 में कुत्तों की लड़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और पिट बुल और इसी तरह की नस्लों को अब वहां और कई अन्य देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन भारत में आज भी इन पशुओं का शोषण ज़ारी है।

15 साल की अवधि में, अमेरिका में कुत्तों से होने वाली मौतों में 66% (346) ऐसी मौतें थी जो पिटबुल प्रजाति के कारण हुई थी। जबकि 76% मौतें पिटबुल और रॉटवीलर के द्वारा हुई थी। भारत में पिट बुल और संबंधित नस्लों द्वारा हमलों की बहुत सी घटनाएं हो रही हैं। मई में, बड़ौत में एक 45 वर्षीय प्रांतीय रक्षक दल के जवान को पिट बुल ने गंभीर रूप से घायल कर दिया था और चेन्नई में दो रॉटवीलर द्वारा हमला किए जाने पर 5 वर्षीय लड़की गंभीर रूप से घायल हो गई थी। अप्रैल में, गाजियाबाद में एक 15 वर्षीय लड़के पर पड़ोसी के पिट बुल ने तब तक हमला किया, जब तक कि सामुदायिक कुत्तों ने उसे बचा नहीं लिया। मार्च में, गाजियाबाद में खेलते समय एक 10 वर्षीय लड़की पर पिटबुल ने हमला कर दिया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई। दिल्ली में, फरवरी में एक 7 वर्षीय लड़के को पिटबुल ने घायल कर दिया था और जनवरी में पिटबुल द्वारा हमला किए जाने के बाद 1 वर्षीय लड़की को 17 दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। एक और चर्चित मामले में लखनऊ में एक जिम मालिक के पिटबुल ने उसकी मां की जान ले ली।

PETA इंडिया चेतावनी देता है कि देश में अधिकांश प्रजनकों और पालतू पशुओं को बेचने वाली दुकानें अवैध हैं, क्योंकि वे राज्यकीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्डों के साथ पंजीकृत नहीं हैं। ‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005’ के तहत PETA समूह द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चला कि 21 राज्यों में केवल 236 प्रजनकों और 488 पालतू पशुओं को बेचने वाली दुकानें पंजीकृत थीं एवं 10 राज्यों में कोई भी पंजीकरण नहीं हुए थे, जो कि पशु क्रूरता निवारण (कुत्ता प्रजनन और विपणन) नियम, 2017 एवं पशु क्रूरता निवारण (पालतू पशु की दुकान) नियम, 2018 का स्पष्ट उल्लंघन है।

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