PETA की शिकायत के बाद आगरा वन प्रभाग और वाइल्डलाइफ SOS ने अवैध रूप से कैद किए गए एक लंगूर की जान बचाई

Posted on by Shreya Manocha

एक चिंतित नागरिक द्वारा यह जानकारी प्राप्त होने के बाद कि किसी बंदी ग्रे लंगूर, जिसे आमतौर पर ‘हनुमान लंगूर’ के रूप में जाना जाता है, को गर्दन के ज़रिये एक पेड़ से बांधकर रखा गया है, PETA इंडिया द्वारा तात्कालिक रूप से उत्तर प्रदेश के आगरा वन प्रभाग और वाइल्डलाइफ SOS के साथ मिलकर कार्य किया गया। इस कार्यवाही के उपरांत संबंधित लंगूर की जान बचाकर उसे वापिस उसके प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया गया। ग्रे लंगूर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित प्रजाति के पशु हैं, जिन्हें पकड़ने या “पालतू जानवर” के रूप में कैद करने पर तीन साल तक की जेल, 1 लाख रुपये तक के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। PETA इंडिया ने वन अधिकारियों से WPA की संबंधित धाराओं के तहत अपराधियों के खिलाफ़ मामला दर्ज करने का आह्वान किया है।

 

इस बचाव कार्य के बाद, लंगूर को उसके प्राकृतिक आवास में वापस छोड़ने से पहले सभी प्रकार की स्वास्थ्य जांच की गई। अपने प्राकृतिक आवास यानी जंगलों में लंगूर दर्जनों के समूहों में रहते हैं। वे अपना अधिकांश समय खेलने, सजने-संवरने और अन्य सामाजिक गतिविधियों में बिताते हैं। लंगूर परिवार के सदस्य हमेशा खतरे को भांपते रहते हैं और तुरंत अपने प्रियजनों की रक्षा के लिए दौड़ पड़ते हैं।

लोगों के घरों में “पालतू पशुओं” के रूप में रखे गए या नाच करवाने के लिए मजबूर किए जाने वाले बंदरों को अक्सर जंजीरों से बांध दिया जाता है या छोटे पिंजरों में कैद करके रखा जाता है। इंसानों के मनोरंजन के करतब सिखाने के लिए उन्हें आम तौर पर पिटाई और भोजन से वंचित करके, प्रताड़ित करके और डर के द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है, और वह स्वयं का बचाव न कर सकें इसलिए उनके दांत नोच लिए जाते हैं। 1998 में, केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि बंदरों और जंगली पशुओं की कई अन्य प्रजातियों को प्रदर्शन करने वाले पशुओं के रूप में प्रदर्शित या प्रशिक्षित नहीं किया जाना चाहिए।

संकट में फंसे पशुओं को बचाने के कुछ तरीके

पशु क्रूरता के खिलाफ़ कुछ महत्वपूर्ण उपाय