ब्रेकिंग: बेंगलुरु मूल निवासी और PETA फ्रांस की कार्यकर्ता ने डायर शो के दौरान पंखों के इस्तेमाल के विरोध में आवाज़ उठाई
पेरिस में डायर शो के दौरान, PETA फ्रांस की एक कार्यकर्ता और बेंगलुरु की मूल निवासी नताशा गार्नियर ने फैशन हाउस द्वारा पंखों के उपयोग के खिलाफ़ रनवे पर धावा बोल दिया। एक दौरान उन्होंने नकली पंखों से बनी एक पोशाक को पहना थी और उनकी पीठ खून से सनी हुई थी। साथ ही उनकी पीठ पर कुछ चोट के निशान भी थे और उन्होंने अपने हाथ में एक साइनबोर्ड पकड़ा था जिसपर लिखा था, “F*ck Feathers!” यह कार्रवाई लेडी गागा के पेरिस ओलंपिक में शुतुरमुर्ग के पंखों से बनी डायर पोशाक पहने हुए नज़र आने के बाद हुई है।
भारत में चमड़ा उद्योग के लिए इस्तेमाल होने वाले पशुओं को इतनी बड़ी संख्या में गाड़ियों में ठूंस-ठूंसकर भरा जाता है कि अक्सर रास्ते में ही इनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं। इतना कष्ट सहने के बावजूद भी जिन पशुओं की जान बच जाती है, बूचड़खाने में उन जिंदा पशुओं के कसाइयों द्वारा खुलेआम टुकड़े-टुकड़े किए जाते हैं और उनकी खाल उतारी जाती है। चमड़ा उत्पादन हमारे ग्रह के लिए अत्यंत हानिकारक है क्योंकि पशुओं की त्वचा को चमड़े में बदलने के लिए भारी मात्रा में जहरीले रसायनों का उपयोग किया जाता है जिसके कारण स्थानीय जलमार्ग व्यापक स्तर पर प्रदूषित होते है।
पशु कल्याण, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, वीगन फैशन ही भविष्य है। पिछले साल “विश्व फ़ैशन डे” (21 अगस्त) के उपलक्ष्य में, PETA इंडिया और लैक्मे फैशन वीक के अनुरोध पर 33 प्रमुख डिजाइनरों ने पशु एवं पर्यावरण संरक्षण के हित में चमड़े का त्याग किया था जिसमें गौरव गुप्ता, मसाबा गुप्ता, मोनिका और करिश्मा, अनीत अरोड़ा, राणा गिल, श्यामल और भूमिका, सोनाक्षी राज, सिद्धार्थ टाइटलर, रीना ढाका, विक्रम फडनीस, रॉकी स्टार, अत्सु सेखोज, देव आर निल, और अक्षत बंसल जैसे बड़े नाम शामिल हैं। वही अनीता डोंगरे और पूर्वी दोशी काफ़ी समय पहले से चमड़ा मुक्त हैं।
गार्नियर का जन्म बेंगलुरु में हुआ और वे मस्कट, ओमान में पाली-बढ़ी। वह माउंट कार्मेल कॉलेज में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी करने के लिए बेंगलुरु लौट आईं, जहां उन्होंने फ्रेंच, संचार और समाजशास्त्र में पढ़ाई की। वह अनुवाद में मास्टर डिग्री के लिए फ्रांस चली गईं और उन्होंने सैंडी नामक एक कुत्ते को गोद लेकर वीगन जीवनशैली अपनाने का निर्णय लिया। सैंडी को गोद लेकर गार्नियर को यह समझ आया कि मनुष्यों का दोस्त समझे जाने वाले पशुओं और भोजन को रूप में प्रयोग होने वाले पशुओं में कोई अंतर नहीं है। कुछ ही समय बाद वह एक पशु अधिकार कार्यकर्ता बन गईं और जब भी वह अपने परिवार से मिलने के लिए घर लौटती हैं तो बेंगलुरु में स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ काम करती हैं। गार्नियर के माता-पिता यशवंतपुरा में रहते हैं।
कृपया, कभी भी गाय, साँप, मगरमच्छ, सील, खरगोश या किसी अन्य पशु की चमड़ी न पहनें।
चमड़े का त्याग करने की प्रतिज्ञा करें