PETA साईन्स समूह के आर्थिक सहयोग से, पहला गैर पशु 3-D वायुकोशीय (3-D Lung Alveolar) मॉडल तैयार
PETA इंटरनेशनल साइंस कन्सोर्शियम लिमिटेड से मिली आर्थिक सहायता की मदद से मानवीय शरीर की तरह का एक पहला ऐसा मॉडल तैयार किया गया है जो की मानवीय शरीर में अंदरूनी श्वसन कोशिकाओं व फेफड़ों के अंदरूनी भागो पर रसायनों और अन्य पदार्थों के प्रभावों का अध्ययन कर सकेगा। अभी तक इस तरह के अध्ययन हेतु जानवरों का इस्तेमाल किया जाता था और इसके लिए अनेकों तरह के रसायन व अन्य जहरीले पदार्थों को जबरन सुंघाया जाता था। मानवीय शरीर व जानवरों के शरीर में बहुत अंतर होता है इसलिए इस तरह का मॉडल तैयार कर उस पर अध्ययन करने से अनगिनत जानवरों को इस तरह के पीड़ा दायी अध्ययन से निजात मिल सकेगी व वैज्ञानिकों को भी शोध के बेहतरीन परिणाम मिल सकेंगे।
PETA इंटरनेशनल साइंस कन्सोर्शियम लिमिटेड, जिसमें PETA इंडिया के वैज्ञानिक भी शामिल हैं, ने “मैट टेक लाइफ साइंसेज” को आर्थिक सहायता प्रदान कर “EpiAlveolar” नामक शोध तकनीक विकसित करने को कहा था जो की मानवीय शरीर में अंदरूनी श्वसन कोशिकाओं का अध्ययन करने के 3 डी तकनीक है। इस माडल के माध्यम से अंदरूनी टिश्यू को बाहर परीक्षण सामग्री के संपर्क में लाया जा सकता है और दूसरी तरफ़ से, यह रक्त जैसे तरल पदार्थ से पोषक तत्वों को प्राप्त करता है – ठीक उसी तरह जैसे कोई मानवीय फेफडा काम करता है ।
EpiAlveolar नामक इस नयी तकनीक के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पदार्थों के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है। अभी तक इस तरह के पदार्थों के अध्ययन हेतु पशुओं का इस्तेमाल किया जाता है जिस हेतु उन्हें छोटी और सीमित नलियों में कैद करके रखा जाता है व उनकी मौत होने तक कईं दिनों तक इस तरह के रसायनों को सूंघने के लिए मजबूर किया जाता है।
EpiAlveolar तकनीक के माध्यम नैनोमैटिरियल्स के प्रभावों को जाँचने हेतु किए गए परीक्षण पर ACS नैनो में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।
श्वसनीय विषाक्तता परीक्षण में जानवरों पर परीक्षण ना किए जाने की बड़ी पहल करते हुए, साइंस कंसोर्टियम ने अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं के लिए इनहेलेशन एक्सपोज़र उपकरणों को भी बनाया है जिसका इस्तेमाल सेल-आधारित मॉडल के साथ किया जा सकता है।
EpiAlveolar ™ का विकास साइंस कंसोर्टियम द्वारा दिये गए फंड से विकसित की गयी नवीनतम वैज्ञानिक तकनीक है। उदाहरण के लिए, समूह द्वारा वित्त पोषित अनुसंधान के परिणामस्वरूप पूरी तरह से मानव-व्युत्पन्न एंटीबॉडी का निर्माण होता है जो डिप्थीरिया का कारण बनने वाले विष को अवरुद्ध करने में सक्षम होता है। ये एंटीबॉडी डिप्थीरिया के साथ घोड़ों को इंजेक्शन लगाने और उनके शरीर से भारी मात्रा में रक्त निकालने की पुरानी तकनीक को समाप्त कर सकेगा।
घोड़ों, खच्चरों, और गधों से उनका खून प्राप्त करने के लिए उन पर अत्याचार किए जाते हैं जिसके चलते उनकी दुर्दशा हो जाती है। नीचे दिये गए लिंक की सहायता से आप उनकी स्थिति के बारे में जान सकते हैं व उनकी मदद कर सकते हैं :
शोषण सह रहे घोड़ों, खच्चरों, और गधों की मदद करेंमानवीय विज्ञान की क्रांति का हिस्सा बनें। यदि आपने अभी तक PETA इंडिया की सदस्यता नहीं ली है तो आज ही इसकी सदस्यता ग्रहण करें व जानवरों के लिए किए जा रहे महत्वपूर्ण काम में अपना बहुमूल्य समर्थन प्रदान करें।