स्वतंत्रता दिवस पर पिंजरे में बंद ‘पक्षी’ ने भोपाल निवासियों से आग्रह किया कि ‘पक्षियों को आज़ाद उड़ने दें’

Posted on by Shreya Manocha

स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के अवसर पर, PETA इंडिया ने इस संदेश को बढ़ावा देने के लिए एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया कि पक्षियों को उड़ने की आजादी से वंचित करना क्रूरता है। इस हेतु, एक स्वयंसेवक पिंजरे में बंद पक्षी के रूप में खड़ा हुआ था और साथ में यह संदेश लिखा था कि “पक्षी पिंजरों में कैद करने के लिए नहीं हैं” उन्हें आज़ाद उड़ने दो।”

प्रकृति में, पक्षी सामाजिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं, जैसे रेत स्नान करना, लुका-छिपी खेलना, नृत्य करना, अपने साथियों के साथ घोंसले बनाना और अपने बच्चों का पालन-पोषण करना। लेकिन जब उन्हें पिंजरे में बंद कर दिया जाता है, तो यही जीवंत जीव उदास और अकेले हो जाते हैं। और निराशा के चलते खुद के अंग काट लेते हैं। कैद में रखे पक्षी कभी उड़ न जाएं इसलिए कुछ क्रूर लोग इन पक्षियों के पंख कतर देते हैं, फिर भी पक्षियों के लिए उड़ना उतना ही स्वाभाविक और महत्वपूर्ण है जितना कि मनुष्यों के लिए चलना। पक्षियों को प्रकृति में पकड़ लिया जाता है, छोटे पिंजरों में पैक किया जाता है, और फिर बिक्री के लिए भेज दिया जाता है, और कई पक्षी परिवहन के दौरान चोटिल व घायल होते हैं, आमतौर पर उनके पंख या पैर टूट जाते हैं, निर्जलीकरण, भुखमरी या तनाव से मौत का शिकार हो जाते हैं। जो कुछ पक्षी इस दर्दनाक परिवहन से बच जाते हैं उन्हें कैद में अंधकारमय जीवन का सामना करना पड़ता है, वे कुपोषण, अकेलेपन, अवसाद और तनाव से पीड़ित होते हैं।

वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WPA), देशी पक्षियों को पकड़ने, शिकार करने और व्यापार करने पर प्रतिबंध लगाता है और इसका पालन न करने पर कारावास, जुर्माना या फिर दोनों की सजा हो सकती हैं। “वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora -CITES)” के तहत लुप्तप्राय वन्यजीवों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संरक्षित किया जाता है। CITES के तहत संरक्षित गैर-देशी लुप्तप्राय प्रजातियों को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची IV के तहत भी संरक्षित किया गया है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पक्षियों के लिए उड़ना उनका मौलिक अधिकार है जो भारत के संविधान और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत संरक्षित है। कैद सुनिश्चित करने और उड़ान को रोकने के लिए पक्षियों के पंख काटना, अंग-भंग करना और अपंगता के समान है, जो पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के साथ-साथ भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत संज्ञेय अपराध हैं।