कलकत्ता उच्च न्यायालय: केंद्र सरकार ने पिटबुल जैसे विदेशी प्रजातियों के कुत्तों पर प्रतिबंध लगाने वाले सर्कुलर के संबंध में हितधारकों के विचार आमंत्रिक करने का आश्वासन दिया; PETA इंडिया के अनुसार, प्रतिबंध को कड़ा बनाने की आवश्यकता है
तन्मय दत्ता बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य में WPA 8632/2024 नामक एक याचिका में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 12 मार्च 2024 को जारी परिपत्र को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा किया, जिसमें लड़ाई और हमले के लिए प्रयोग एवं प्रजनन की जाने वाले 23 विदेशी प्रजातियों के कुत्तों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी, चूंकि केंद्र सरकार माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार इस मुद्दे पर हितधारकों से परामर्श कर रही है। इस संबंध में, PETA इंडिया ने सरकार के विदेशी नस्लों पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय को अपना समर्थन देते हुए एवं सहयोग प्रदान करने की मांग करते हुए एक विस्तृत आवेदन दायर किया था।
कोलकाता उच्च न्यायालय के समक्ष दायर आवेदन में PETA इंडिया ने उल्लेखित किया कि भारत में, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत कुत्तों को लड़ने के लिए उकसाना गैरकानूनी होने के बावजूद देश के कुछ हिस्सों में संगठित कुत्तों की लड़ाई प्रचलित है, जिससे इन लड़ाइयों में इस्तेमाल होने वाले पिटबुल प्रजाति व उनके जैसे अन्य प्रजाति के कुत्ते सबसे अधिक दुर्व्यवहार से पीड़ित नस्ल हैं। पिट बुल को आम तौर पर अवैध लड़ाई में इस्तेमाल करने के लिए पाला जाता है या हमलावर कुत्तों के रूप में जंजीरों से बांधकर रखा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वह जीवन भर पीड़ा सहते हैं। कई कुत्ते दर्दनाक शारीरिक विकृति का सामना करते हैं जैसे कि उनके कान काट देना। यह इसलिए किया जाता है कि लड़ाई के दौरान विपक्षी कुत्ता उनको कान से पकड़ कर न हरा दे। इन कुत्तों को तब तक लड़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जब तक कि वे थक न जाएँ और कम से कम दोनों कुत्तों में से जबतब एक गंभीर रूप से घायल न हो जाए या मर न जाए। कुत्तों की लड़ाइयाँ गैरकानूनी होने के कारण इन्हें समय रहते पशु चिकित्सकों के पास लेकर भी नहीं जाया जाता है।
The Truth About Dogfights from officialPETAIndia on Vimeo.
भारत में, 80 मिलियन कुत्ते और बिल्लियाँ अपना जीवन सड़कों पर व्यतीत कर रहे हैं और पशु आश्रयों में भी अत्यधिक भीड़ है। इसी के साथ-साथ भारतीयों द्वारा पिटबुल और इससे संबंधित नस्लों का सबसे अधिक त्याग किया जाता है। ब्रीडर्स द्वारा खरीदारों को इस संदर्भ में अवगत नहीं कराया जाता है कि इस नस्ल के कुत्तों का UK में कुत्तों के चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से डॉगफाइट्स और हमले हेतु प्रयोग करने के लिए वांछनीय विशेषताओं को बढ़ाने हेतु प्रजनन किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप यह बहुत ही आक्रामक होते हैं, इनके जबड़े असामान्य रूप से मजबूत होते हैं और इनकी मांसपेशियों अत्यंत ताकतवर होती हैं। ब्रिटेन में, वर्ष 1835 में कुत्तों की लड़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और पिट बुल और इसी तरह की नस्लों को अब वहां और कई अन्य देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन लेकिन भारत में आज भी इन पशुओं का शोषण ज़ारी है।
15 साल की अवधि में, अमेरिका में कुत्तों से होने वाली मौतों में 66% (346) ऐसी मौतें थी जो पिटबुल प्रजाति के कारण हुई थी। जबकि 76% मौतें पिटबुल और रॉटवीलर के द्वारा हुई थी। भारत में पिट बुल और संबंधित नस्लों द्वारा हमलों की बहुत सी घटनाएं हो रही हैं।
‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ के तहत PETA इंडिया द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में सभी पालतू जानवर की दुकानें और प्रजनक अपंजीकृत हैं एवं बिना लाइसेंस के काम करते हैं, जो कि पशु क्रूरता निवारण (कुत्ता प्रजनन और विपणन) नियम, 2017 और पशु क्रूरता निवारण (पालतू जानवर की दुकान) नियम, 2018 का स्पष्ट उल्लंघन है जिस कारण पूर्णतः अवैध हैं। यह उल्लेखनीय है कि PETA इंडिया द्वारा जिन 20 राज्यों से पेट व्यवसाय के बारे में जानकारी प्राप्त की गयी हैं, वहाँ केवल 230 प्रजनकों और 483 पालतू जानवरों की दुकानें पंजीकृत हैं। यह चिंताजनक तथ्य देश भर में पशु कल्याण नियमों को सख्ती से लागू करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।
संबंधित मामले में, अप्रैल में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को प्रतिबंध के संबंध में ड्राफ्ट नोटिफ़िकेशन या नियम प्रकाशित करने और प्रतिबंध को सुधारने या फिर से जारी करने से पहले सार्वजनिक टिप्पणियों को आमंत्रित करने और उन पर विचार करने का निर्देश दिया।कर्नाटक उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश पीठ ने केंद्र सरकार के परिपत्र को रद्द करने का आदेश पारित किया था। PETA इंडिया के अनुसार, इस आदेश में कई त्रुटियां हैं। सबसे स्पष्ट रूप से, यह सरकार को पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 के नियम 4 के तहत गठित पूर्ववर्ती विशेषज्ञ निगरानी समिति से परामर्श करने का निर्देश देता है, जो अब ABC नियम, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित हो गया है।