PETA इंडिया की याचिका के परिणामस्वरूप कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से विक्टोरिया घोड़ों को बचाने हेतु नीति प्रस्तुत करने का निर्देश दिया
मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता में कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को दिनांक 28 फरवरी को होने वाली अगली सुनवाई से पहले विक्टोरिया मेमोरियल के पास पर्यटक गाड़ियों को ढोने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों को उनकी दयनीय स्थिति से छुटकारा दिलाने हेतु नीति प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। अदालत ने यह आदेश PETA इंडिया और CAPE फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिका के बाद जारी किया, जिसमें विक्टोरिया मेमोरियल के पास पर्यटक गाड़ियों को ढोने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों के प्रयोग पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने वर्णित किया कि राज्य सरकार ने याचिकाकर्ताओं से मुलाकात की और इस मुद्दे को पश्चिम बंगाल के गृह मंत्रालय को सौंपा गया था। अदालत ने याचिकाकर्ताओं और अन्य प्रभावित पक्षों को नीति पर अपने सुझाव राज्य सरकार के वकील ए बनर्जी को प्रस्तुत करने की अनुमति दी, जिनके द्वारा गृह मंत्रालय को अपने विचार सौंपे जाएंगे।
यह याचिका एक हालिया अध्ययन रिपोर्ट पर आधारित है जिसके अनुसार, शहर में सवारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सौ से अधिक घोड़े एनीमिक, कुपोषित और भूख से पीड़ित हैं और साथ ही कई जानवरों की हड्डियाँ टूटी हुई हैं और इन्हें अपने ही मल-मूत्र के बीच शहर के बेहद गंदे, जर्जर और अवैध रूप से कब्जे वाले परिसरों में कैद करके रखा गया है जिनमें फ्लाईओवर के नीचे का एक तंग क्षेत्र शामिल है। PETA इंडिया ने हाल ही में जाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (ट्रेफिक) को एक विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और अन्य पशु अभयारण्यों की मदद से कोलकाता पुलिस या अन्य कानून-प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा जब्त किए गए अयोग्य, गैर-लाइसेंसी और त्याग दिए गए घोड़ों के पुनर्वास की जिम्मेदारी लेने की पेशकश की गई थी।
अध्ययन रिपोर्ट में सड़कों पर सवारी करने वाले घोड़ों से हुई 10 अलग अलग सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों को संकलित कर बताया गया है कि यह पर्यटकों के लिए कितना खतरनाक है। याचिका के अनुसार, शहर में घोड़ागाड़ियों का प्रयोग पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, कोलकाता नगर निगम अधिनियम, 1980 और कलकत्ता हैकनी-कैरिज अधिनियम, 1919 के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2015 में PETA इंडिया और अन्य समूहों के प्रयासों के बाद घोड़ागाड़ियों पर रोक लगाई गयी, जिसके परिणामस्वरूप मुंबई में चलने वाली घोड़ागाड़ियों के मालिकों और ड्राइवरों ने घोड़ा गाड़ियों के विकल्पों के रूप में पर्यावरण अनुकूलित गाड़ियों की सफलतापूर्वक शुरुआत की।
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