केंद्र सरकार ने पशुपालन प्रक्रियाओं हेतु मानवीय तरीकों को अपनाए जाने के लिए नियमों को अधिसूचित किया
केंद्र सरकार ने “पशु क्रूरता निवारण (पशुपालन प्रक्रिया एवं अभ्यास) नियम 2020” के मसौदे को अधिसूचित किया है जिसके तहत पशुओं की नसबंधी से पूर्व उनको बेहोश किया जाना अनिवार्य है, बहुत-सी पुरानी और दर्दनाक प्रथाओं को बदला गया हैं जैसे जलते सरिये से शरीर पर मुहर अंकित करने की बजाए रेडियों फ्रिकवेंसी पहचान चिन्ह का इस्तेमाल करना, जानवरों के सींग उखाड़ने की बजाए सींग रहित जानवरों की ब्रीडिंग करना तथा देखभाल से संबन्धित मानवीय तरीको को अपनाना जैसे नाक के अंदर से नकेल बांधने की बजाय मोहरा (फेस हाल्टर) बांधना जो की बिना नकेल कसे केवल मुंह के ऊपरी हिस्से पर पहनाया जाता है, आँखों पर पट्टी बांधना व खाने के लिए गुड, मूँगफली केक या फिर हरी घास देना। नियमों में यह भी अधिसूचित किया गया है कि जानवर की मुक्ति किसी पंजीकृत पशु चिकित्सक की देखरेख में ‘विश्व पशु स्वास्थ संगठन’ तथा ‘कमेटी फॉर द पर्पस ऑफ कंट्रोल एंड सुपरविज़न ऑफ एक्सपेरिमेंट्स ऑन एनिमल्स” द्वारा निर्धारित किए गए तरीकों के अनुसार ही होनी चाहिए।
सरकार द्वारा “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960” के अंतर्गत जानवरों के लिए दर्दनाक पशुपालन प्रक्रियाओं के “निर्धारित तरीकों” को परिभाषित करने वाले यह नियम ‘भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड’, ‘पशुपालन एवं डेयरी विभाग’, तथा ‘पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमलस (PETA) इंडिया’ द्वारा दिये गए सुझावों एवं दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका के परिणाम स्वरूप अमल में लाये गए हैं।
“पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960” का सेक्शन 11 पशुओं के साथ क्रूरता भरे व्यवहार तथा उप सेक्शन 3 पशुओं की देखभाल के संबंध में हैं जिसमे कहा गया है कि पशुओं के सींग निकालना, पशुओं की नसबंदी करने, उनके शरीर पर मुहर अंकित करने व उनकी नकेल डालने की प्रक्रिया यदि निर्धारित नियमों व दिशानिर्देशों के तहत हो तो इन कृत्यों को क्रूर नहीं माना जाएगा।
मुक्ति का नियम है की जानवर को ‘सम्मान जनक मृत्यु’ मिले- जब कोई गंभीर पीड़ित जानवर को जिंदा रखना उसके साथ क्रूरता करने के समान हो तो उसे मुक्ति दे दी जानी चाहिए। ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960’ तथा “पशुओं में संक्रमण एवं संक्रामक रोगों के प्रसार पर रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम 2009” के अनुसार यह अनिवार्य है कि पशुओं में कोई महामारी फ़ैल जाने पर उस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए अत्यधिक तादात में पशुओं को एक साथ मार दिये जाने की जरूरत हो तो ऐसे में पशुओं को जीवन से मुक्ति दे दी जानी चाहिए और मुक्ति दिये जाने से पहले उस जानवर को बिना पीड़ा दिये बेहोश करना जरूरी है। इस हेतु वर्तमान में प्रचलित तरीके बेहद क्रूर हैं जैसे जानवरों को मारने के लिए उन्हें बेहोश किए बिना ऐसे रसायन से भरे टीके लगाए जाते है जिससे अत्यधिक पीड़ा के साथ उनका दिल व फेफड़े काम करना बंद कर देते, प्लास्टिक की थैलियों से मुँह ढ़क कर दम घोट कर मार दिया जाता है और उनके जिंदा रहते ही उन्हें उठाकर दफना या जला दिया जाता है। हाल ही में एवियन फ़्लू की आशंकाओं के चलते कुछ राज्यों में जानवरों को इन्हीं तरीकों से मुक्ति देने की घटनाएँ सामने आई हैं।