“World Day for the End of Speciesism” से पहले अमृतसर में एक कुत्ते को जलती आग पर भूनने का डेमो प्रदर्शन
World Day for the End of Speciesism (प्रजातिवाद के अंत हेतु वैश्विक दिवस – 27 अगस्त), से ठीक पहले PETA इंडिया और आश्रय चैरिटेबल ट्रस्ट के समर्थकों द्वारा अमृतसर में प्रतिकात्मक ढंग से एक कुत्ते को भूनकर दिखाने का डेमो प्रदर्शन करेंगे और इसके माध्यम से यह संदेश दिया जाएगा कि सभी जानवर मांस, खून और हड्डी से बने होते हैं और यह सब भी इंसानों की तरह दर्द एवं अन्य भावनाओं का एहसास कर सकते हैं। साथ ही, जानवरों के मांस का सेवन करने का अर्थ है ऐसे संवेदनशील प्राणियों के मृत शरीरों को खाना जो अपना जीवन को महत्व देते हैं और इस कुत्ते की तरह महज़ किसी के भोजन के लिए मरना नहीं चाहते।
प्रत्येक व्यक्ति जो वीगन जीवनशैली अपनाता है वह प्रतिवर्ष मांस अंडा और डेयरी उद्योगो में कष्ठ, पीड़ा एवं दर्दनाक मौत का शिकार होने वाले लगभग 200 जानवरों की जान बचाने जैसा पुण्य काम करता है। सचेत अवस्था में होने के बावजूद मुर्गियों के गले काटे दिये जाते हैं, जिंदा मछलियों को काट दिया जाता है या पानी से बाहर निकाल कर रख दिये जाने उनका दम घुट जाता है, सीने में चुरा घोंपकर सुवरों की हत्या कर दी जाती है वह दर्द में चीखते हैं और जन्म के कुछ ही समय बाद छोटे छोटे बछड़ों को उनकी माताओं से खींचकर अलग कर दिया जाता है। बूचड़खानों में जानवरों को पूरी तरह से सचेत अवस्था में होने के बावजूद उनको एक दूसरे के सामने ही काट दिया जाता है।
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वीगन जीवनशैली जीने वाले लोगों को हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर से पीड़ित होने की संभावना भी कम होती हैं जो भारत जैसे देश में यह सब आम स्वस्थ्य समस्याएँ हैं। इसके अलावा, पशु कृषि जल प्रदूषण, वनों की कटाई और भूमिक्षरण का एक प्रमुख कारण है, और संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से निपटने के लिए वीगन भोजन को अपनाने हेतु वैश्विक स्तर पर बड़े बदलाव की जरूरत है।
प्रजातिवाद क्या है?