PETA इंडिया की अपील के बाद, छत्तीसगढ़ सरकार ने माता सूअरों को कैद में रखने वाले पिंजरों के खिलाफ़ कार्रवाई की माँग की
PETA इंडिया द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार को सूअर पालन हेतु जेस्टेशन एवं फेरोइंग क्रेट के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर रोक लगाने के संबंध में की गई अपील के बाद छत्तीसगढ़ के पशु चिकित्सा सेवा निदेशालय ने एक सर्कुलर जारी कर इस दिशा में कार्रवाई करने की मांग की है।
इस पत्र में “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11(1)(e) का उल्लेख किया गया जिसके अंतर्गत किसी भी जानवर को ऐसे तंग पिंजरों में कैद रखना जिनमे वह सही से हिल डुल तक न सके, वह अवैध है। “भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शूकर राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केंद्र द्वारा सुअरों के संबंध में यह पुष्टि की गयी है कि जेस्टेशन एवं फेरोइंग क्रेट का प्रयोग अवैध है”। PETA इंडिया की अपील बाद, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, राजस्थान और उत्तराखंड सरकारों द्वारा पहले ही जेस्टेशन और फैरोइंग क्रेट के उपयोग पर रोक लगाने वाले सर्कुलर जारी किए जा चुके हैं। इसी तरह का एक सर्कुलर पहले पंजाब और मणिपुर सरकार द्वारा भी जारी किया गया था।
जेस्टेशन क्रेट (गर्भवती सुअर को जकड़ने का तंग पिंजरा) जो केवल सुअरों की माप के होते हैं, इनका फर्श पक्का या कंक्रीट का बना होता है, इसमे जानवरों को करवट बदलने या खड़े होने अत्यधिक काष्ठ होता है। जेस्टेशन क्रेट का इस्तेमाल गर्भवती सुअरों को एक जगह रोके रखने के लिए किया जाता है, बच्चों को जन्म देने के लिए फेरोइंग क्रेट में भेज दिया जाता है जो एक तरह से जन्म देने का तंग पिंजरा होता है और इन्हें वहाँ तब तक रखा जाता है जब तक उनके नवजात बच्चों को उनसे अलग न कर दिया जाए। ये फेरोइंग क्रेट मूल रूप से जेस्टेशन क्रेट के समान होते हैं, बस इनमे सूअर के नवजात बच्चों के लिए साइड में छोटे खांचे बने रहते हैं।
जेस्टेशन और फेरोइंग क्रेट इतने छोटे व सँकरे होते हैं कि वे मादा सूअरों को उन सभी चीज़ों से वंचित कर देते हैं जो उनके लिए प्राकृतिक और महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि चारा खाना, अपने बच्चों के लिए घोंसला बनाना, अन्य सूअरों के साथ समूह में रहना, उनके शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए कीचड़ में लोट पोट होना। क्रेट मे बंद सूअरों को जबरन अपने ही मल-मूत्र में सने रहने के लिए मजबूर किया जाता है। अत्यधिक क्रूरता सह रहे सुअर तनाव और हताशा का शिकार होते हैं जिसके परिणामस्वरूप असामान्य व्यवहार करते हैं जैसे कि बाड़े की सलाखों को लगातार काटने का प्रयास या हवा को लगातार चबाने की कोशिश करते रहना।