तमिलनाडु में जंजीरों से बंधी एक हथिनी की जलने के कारण हुई मृत्यु के बाद, PETA इंडिया सहित 10 अन्य पशु संरक्षण समूहों ने हाथियों के स्थान पर यांत्रिक साधनों या मूर्तियों के उपयोग का आवाहन किया
PETA इंडिया और तमिलनाडु एवं दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों सहित देशभर के 10 पशु संरक्षण समूहों ने तमिलनाडु के वन और हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती मंत्रियों को पत्र लिखकर उनसे बंधी हाथियों की प्रथा को समाप्त करने के लिए अनुरोध किया। यह कदम तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के कुंद्राकुडी में श्री शनमुघनाथर मंदिर की छत पर आग लगने के कारण सुब्बुलक्ष्मी नामक एक 54 वर्षीय बीमार हथिनी की आग से जलने के कारण हुई मृत्यु के बाद उठाया गया है।
इन सभी संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से यह मांग की गयी है कि संबंधित मामले में, ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972’ और ‘भारतीय न्याय संहिता, 2023’ की संबंधित धाराओं के अंतर्गत तात्कालिक रूप से एक FIR दर्ज़ करी जाएं। इन सभी समूहों का विचार है कि यह मामला कोई अकेली घटना नहीं है और सभी बंधी हाथियों को एक शोषणपूर्ण जीवन का सामना करना पड़ता है जिस कारण वह मानसिक निराशा के कारण अपने आसपास के लोगों पर हमला करते हैं या समय से पहले ही अपनी जान गवां देते हैं।
जब सुब्बुलक्ष्मी के छोटे से बाड़े की छत पर आग लगी थी तो वह भाग नहीं पायी थी क्योंकि उसे एक खंभे से जबरन बांधकर रखा गया था। इन सभी संगठनों के अनुसार, आग लगना एक दुर्घटना ज़रूर थी लेकिन इस हथिनी की मौत को पूरी तरह से टाला जा सकता था क्योंकि किसी भी मंदिर में जीवित हाथियों को कैद रखना बहुत गलत है।
इस पत्र पर साइन करने वाले संगठनों में पीपल फॉर कैटल इन इंडिया, चेन्नई; वन्यजीव बचाव एवं पुनर्वास केंद्र, कर्नाटक; हेरिटेज एनिमल टास्क फोर्स, केरल; पीपल फॉर एनिमल्स, गोवा; पशु अधिकारों पर अनुसंधान केंद्र; वॉकिंग आई फाउंडेशन फॉर एनिमल एडवोकेसी, केरल; पेटा इंडिया; और भारतीय पशु संरक्षण संगठन संघ जैसे प्रसिद्ध नाम शामिल हैं।
इस पत्र में उल्लेखित किया गया,
“मंदिर में बंधी बनाए गए अन्य हाथियों की तरह सुब्बुलक्ष्मी ने भी लगभग पाँच दशक यानी अपना पूरा जीवन जंजीरों में कैद होकर एक ही जगह पर बिताया है। और अंतत मनुष्यों के साथ उसके संबंध को परिभाषित करने वाली जंजीर ही उसकी मृत्यु का कारण बनी जिसके कारण वह भभकती आग से दूर भागकर अपनी जान भी नहीं बचा पाई।“
इन सभी पशु संरक्षण समूहों द्वारा यह भी खुलासा किया गया कि आज से बहुत साल पहले तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन से सुब्बुलक्ष्मी को उसके ख़राब शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एवं उसके रखरखाव में हो रही लापरवाही को ध्यान में रखते हुए और दयालु दर्शाते हुए उसे सेवानिवृत्त करने का अनुरोध किया गया था। उस समय उल्लेखित किया गया था कि सुब्बुलक्ष्मी एक वृद्ध हथिनी है जो मोटापे, पैरों की गलन और घायल पंजे जैसी कई गंभीर शारीरिक बीमारियों से पीड़ित है और उसके व्यवहार में भी कई मानसिक बीमारियों के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। इस सब के बावजूद, महावतों द्वारा सुब्बुलक्ष्मी को अंकुश द्वारा नियंत्रित किया जाता था। इसके ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद, इसे पूरे दिन कंक्रीट के फर्श पर खड़ा रहने के लिए बाध्य किया जाता था और लोगों से उसके आशीर्वाद के बदले दक्षिणा ली जाती थी।
पत्र में आगे बताया गया,
“यह इस मामले की सबसे बड़ी त्रासदी है कि सुब्बालक्ष्मी की पीड़ा पर किसी का ध्यान नहीं गया। सब इसे देख पा रहे थे लेकिन किसी ने भी इसके खिलाफ़ कदम नहीं उठाया जबकि पशु संगठनों द्वारा यह मुद्दा कई बार उठाया गया था। इस हथिनी को सभी प्रकार की पशु चिकित्सकीय सुविधाएँ एवं विशेषज्ञ युक्त किसी वन्यजीव अभयारण्य भेजने के बजाय उसे पुजारियों और भक्तों के लिए पूजा स्थल यानी मंदिर में ही रखने की जिद ही उसकी मौत का कारण बनी। यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि शारीरिक एवं मानसिक रूप से शोषित कोई भी जीव हमें आशीर्वाद की जगह केवल शाप ही देगा।“
पशु अधिकार संगठनों द्वारा मंदिरों में हाथियों के साथ होने वाली अन्य त्रासदियों का उदाहरण दिया, जिसमें जॉयमाला का उदाहरण भी शामिल है, जो अरुलमिगु नचियार (अंडाल) मंदिर, श्रीविल्लिपुथुर की हिरासत में है, और अपने संचालकों द्वारा कम से काम दो बार गंभीर पिटाई का शिकार हो चुकी है। मीडिया द्वारा जारी वीडियो फ़ुटेज से हमारे सामने आया कि पुडुचेरी के मनकुला विनायगर मंदिर में रखी गयी लक्ष्मी लंबे समय तक जंजीरों से बंधे रहने के कारण एक दिन टहलते समय अचानक गिर गई और इसने कुपोषण एवं अन्य गंभीर शारीरिक बीमारियों के कारण अपने प्राण गवां दिए। थिरुपरनकुंड्रम स्थित सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर में रखी गयी देवनाई नामक हथिनी को दिन के 22 घंटे जंजीरों में कैद रखा जाता था जिस कारण वह मानसिक तौर पर बहुत परेशानी प्रतीत होती थी और उसने अपने महावत को कुचलकर मार डाला।
PETA इंडिया हाथियों का उपयोग करने वाले सभी स्थानों और कार्यक्रमों को वास्तविक हाथियों की बजाय रोबाटिक हाथियों या अन्य विकल्पों को इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है। PETA इंडिया द्वारा पहले भी बहुत से मंदिरों को धार्मिक कर्मकांडों, उत्सवों, या किसी अन्य उद्देश्य के लिए जीवित हाथियों या अन्य पशुओं को इस्तेमाल ना करने की दयालु प्रतिज्ञा के बाद यांत्रिक हाथी दान किए गए हैं। इनमें अभिनेत्री पार्वती थिरुवोथु द्वारा समर्थित त्रिशूर के इरिंजडापिल्ली श्री कृष्ण मंदिर में इरिंजडापिल्ली रमन, अभिनेत्री प्रियामणि द्वारा समर्थित कोच्चि के थ्रीक्कयिल महादेव मंदिर में महादेवन; अभिनेता ऐंद्रिता रे और दिगंत मनचले द्वारा समर्थित मैसूर के जगद्गुरु श्री वीरसिम्हासन महासंस्थान मठ में शिवा और अभिनेत्री अदा शर्मा द्वारा समर्थित तिरुवनन्तपुरम के पौर्णमिकवु मंदिर में बालाधासन नामक हाथी शामिल हैं। चौथा, शंकर हरिहरन, गुडलुर में श्री शंकरन मंदिर में उपयोग किया जाता है, जिसे एक अन्य NGO द्वारा दान किया गया है।