दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को पिटबुल जैसी विदेशी प्रजातियों पर प्रतिबंध लगाने वाले परिपत्र पर सार्वजनिक टिप्पणियाँ आमंत्रित करने का निर्देश दिया; PETA इंडिया के अनुसार, प्रतिबंध को और कड़ा बनाना आवश्यक है
16 अप्रैल 2024 को, केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि वह 12 मार्च 2024 को जारी परिपत्र (जिसमें लड़ाई और हमले के लिए प्रयोग होने वाले और पाले जाने वाले 23 विदेशी प्रजातियों के कुत्तों पर प्रतिबंध लगाया गया है) के कार्यान्वयन को स्थगित कर देगी, और हितधारको से परामर्श को आमंत्रिक करेंगी। जवाब में, दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ जिसमें माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश और माननीय न्यायाधीश मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा शामिल थे, ने सिकंदर सिंह ठाकुर और अन्य बनाम भारतीय संघ और अन्य संबंधित मामले में, सरकार को प्रतिबंध के संबंध में ड्राफ्ट नोटिफ़िकेशन या नियम प्रकाशित करने और प्रतिबंध को सुधारने या फिर से जारी करने से पहले सार्वजनिक टिप्पणियों को आमंत्रित करने और उन पर विचार करने का निर्देश दिया। PETA इंडिया ने सरकार के विदेशी नस्लों पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय को अपना समर्थन देते हुए एवं सहयोग प्रदान करने की मांग करते हुए एक विस्तृत आवेदन दायर किया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर आवेदन में PETA इंडिया ने उल्लेखित किया कि भारत में, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत कुत्तों को लड़ने के लिए उकसाना गैरकानूनी होने के बावजूद देश के कुछ हिस्सों में संगठित कुत्तों की लड़ाई प्रचलित है, जिससे इन लड़ाइयों में इस्तेमाल होने वाले पिटबुल प्रजाति व उनके जैसे अन्य प्रजाति के कुत्ते सबसे अधिक दुर्व्यवहार से पीड़ित नस्ल हैं। पिट बुल को आम तौर पर अवैध लड़ाई में इस्तेमाल करने के लिए पाला जाता है या हमलावर कुत्तों के रूप में जंजीरों से बांधकर रखा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वह जीवन भर पीड़ा सहते हैं। कई कुत्ते दर्दनाक शारीरिक विकृति का सामना करते हैं जैसे कि उनके कान काट देना। यह इसलिए किया जाता है कि लड़ाई के दौरान विपक्षी कुत्ता उनको कान से पकड़ कर न हरा दे। इन कुत्तों को तब तक लड़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जब तक कि वे थक न जाएँ और कम से कम दोनों कुत्तों में से जबतब एक गंभीर रूप से घायल न हो जाए या मर न जाए। कुत्तों की लड़ाइयाँ गैरकानूनी होने के कारण इन्हें समय रहते पशु चिकित्सकों के पास लेकर भी नहीं जाया जाता है।
इससे पहले, कर्नाटक उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश पीठ ने केंद्र सरकार के परिपत्र को रद्द करने का आदेश पारित किया था। PETA इंडिया के अनुसार, इस आदेश में कई त्रुटियां हैं। सबसे स्पष्ट रूप से, यह सरकार को पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 के नियम 4 के तहत गठित पूर्ववर्ती विशेषज्ञ निगरानी समिति से परामर्श करने का निर्देश देता है, जो अब ABC नियम, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित हो गया है।
भारत में, 80 मिलियन कुत्ते और बिल्लियाँ अपना जीवन सड़कों पर व्यतीत कर रहे हैं और पशु आश्रयों में भी अत्यधिक भीड़ है। इसी के साथ-साथ भारतीयों द्वारा पिटबुल और इससे संबंधित नस्लों का सबसे अधिक त्याग किया जाता है। ब्रीडर्स द्वारा खरीदारों को इस संदर्भ में अवगत नहीं कराया जाता है कि इस नस्ल के कुत्तों का UK में कुत्तों के चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से डॉगफाइट्स और हमले हेतु प्रयोग करने के लिए वांछनीय विशेषताओं को बढ़ाने हेतु प्रजनन किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप यह बहुत ही आक्रामक होते हैं, इनके जबड़े असामान्य रूप से मजबूत होते हैं और इनकी मांसपेशियों अत्यंत ताकतवर होती हैं। ब्रिटेन में, वर्ष 1835 में कुत्तों की लड़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और पिट बुल और इसी तरह की नस्लों को अब वहां और कई अन्य देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन लेकिन भारत में आज भी इन पशुओं का शोषण ज़ारी है।
15 साल की अवधि में, अमेरिका में कुत्तों से होने वाली मौतों में 66% (346) ऐसी मौतें थी जो पिटबुल प्रजाति के कारण हुई थी। जबकि 76% मौतें पिटबुल और रॉटवीलर के द्वारा हुई थी। भारत में पिट बुल और संबंधित नस्लों द्वारा हमलों की बहुत सी घटनाएं हो रही हैं। ठीक एक महीने पहले, दिल्ली में एक पिट बुल द्वारा काटे जाने के बाद एक बच्ची को 17 दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उसका पैर तीन जगहों से टूट गया था। इसके अलावा कुछ हफ़्ते पहले, एक व्यक्ति ने राजधानी में अपने पड़ोसी पर हमला करने के लिए अपने पिटबुल को उकसाया था। एक सप्ताह पहले गाजियाबाद में एक पिटबुल ने दस साल के बच्चे को गंभीर रूप से घायल कर दिया था। वहीं दिसंबर में हरिद्वार में एक 70 वर्षीय महिला को पिट बुल ने गंभीर रूप से घायल कर दिया था। एक चर्चित मामले में लखनऊ में एक जिम मालिक के पिटबुल ने उसकी ही मां की जान ले ली थी।
पशुओं को ख़रीदने के बजाय उन्हें हमेशा गोद लें!