अंतर्राष्ट्रीय डायनासोर दिवस से पहले PETA इंडिया के समर्थकों ने ‘डायनासोर’ बनकर हैदराबाद निवासियों से वीगन जीवनशैली अपनाकर इस दुनिया को बचाने का आग्रह किया
‘अंतर्राष्ट्रीय डायनासोर दिवस’ (1 जून) से पहले, PETA इंडिया और ‘सिटीजन्स फॉर एनिमल्स’ समूह के सदस्यों ने डायनासोर की पोशाकें पहनकर एवं अपने हाथियों में “पृथ्वी पर जीवन को बचाएं। वीगन जीवनशैली अपनाएँ!” का साइन पकड़कर जनता को वीगन जीवनशैली अपनाकर जलवायु आपदा से निपटने में अपना सहयोग देने के लिए जागरूक किया।
मांस, अंडा, और डेयरी उत्पादन प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है और इसके परिणामस्वरूप महासागर मृत क्षेत्र, भूमि उपयोग से आवास विनाश और प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण है। यह दुनियाभर के मीठे पानी के एक तिहाई संसाधनों का उपयोग करता है और कुछ अनुमानों के अनुसार, इसके कारण दुनियाभर के परिवहन से होने वाले गैस उत्सर्जन से कही अधिक ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन होता है। Oxford University के शोध के अनुसार, वीगन जीवनशैली अपनाने वाला हर व्यक्ति अपने कार्बन फुटप्रिंट को 73% तक कम कर सकता है। वीगन जीवनशैली इस ग्रह पर अपने नकारात्मक प्रभाव को कम करने का सबसे सफल तरीका है।
वीगन भोजन से पशुओं को भी मदद मिलती है। जैसा कि PETA इंडिया ने अपने वीडियो एक्सपोज़ “ग्लास वॉल्स” में खुलासा किया है, अंडे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मुर्गियां इतने छोटे व तंग पिंजरों में कैद करके रखी जाती हैं कि वे एक पंख भी नहीं फैला पाती। गायों और भैंसों को इतनी बड़ी संख्या में वाहनों में ठूंस दिया जाता है कि कत्लखाने तक ले जाने से पहले अक्सर उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं, और मांस के लिए मारे जाने वाले जिंदा सूअरों के दिल में चुरा घोंप दिया जाता है। मछलियों को समुद्र से निकाल कर जिंदा तड़फने के लिए मछली पकड़ने वाली नावों के डेक पर फेंक दिया जाता है और सचेत अवस्था में होने के दौरान बिना किसी तरह की बेहोशी की दवा दिये उनके अंगों को काट दिया जाता है। नर चूजे आगे चलकर अंडे नहीं दे पाएगे इसलिए अंडा उद्योग में उन्हें बेकार मानकर जिंदा जमीन में दफन करके, जलाकर, पीसकर, कुचलकर या फिर मछलियों का चारा बनाकर र्दनाक तरीके से मौत के घाट उतार दिया जाता है और उसी तरह से डेयरी उद्योग में नर बछड़ों को बेकार मानकर उनकी माताओं से अलग करके उन्हें भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।