भारत में कुत्ते के मांस के सेवन को वैध्यता मिलने के बाद, PETA इंडिया ने विश्व मांस मुक्त दिवस के उपलक्ष्य में देशभर में वीगन समर्थन वाले बिलबोर्ड लगवाए
गुवाहाटी उच्च न्यायालय की कोहिमा पीठ के नागालैंड में कुत्ते के मांस की बिक्री और खपत को वैध्यता प्रदान करने वाले निर्णय पर जनता के आक्रोश के बाद, PETA इंडिया ने दिल्ली एवं मुंबई में मांसाहारियों के प्रजातिवाद (कुछ प्रजातियों के पक्ष में पूर्वाग्रह) के खिलाफ बिलबोर्ड लगवाए हैं। इस बिलबोर्ड में एक जानवर को कुत्ते के शरीर और मुर्गे के सिर के साथ दिखाया गया है, और जनता को वीगन जीवनशैली अपनाने हेतु प्रोत्साहित करते हुए यह प्रश्न किया गया, “यदि आप कुत्ते को नहीं खाएंगे, तो चिकन क्यों खाएं?”। यह बिलबोर्ड हर साल 15 जून को मनाए जाने वाले ‘विश्व मांस मुक्त दिवस’ से ठीक पहले लगवाए गए हैं और इनका उद्देश्य जनता को यह याद दिलाना है कि कुत्ते और मुर्गी दोनों को डर एवं दर्द का एहसास होता है एवं यह निर्दोष प्राणी भी अपना जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करना चाहते हैं।
भोजन के लिए पशुओं का उपयोग बड़े पैमाने पर पीड़ा का कारण बनता है। कुत्तों को जबरन कैद किया जाता है, अंडे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मुर्गियां इतने छोटे व तंग पिंजरों में कैद करके रखी जाती हैं कि वे एक पंख भी नहीं फैला पाती। मछलियों को समुद्र से निकाल कर जिंदा तड़फने के लिए मछली पकड़ने वाली नावों के डेक पर फेंक दिया जाता है और सचेत अवस्था में होने के दौरान बिना किसी तरह की बेहोशी की दवा दिये उनके अंगों को काट दिया जाता है। नर चूजे आगे चलकर अंडे नहीं दे पाएगे इसलिए अंडा उद्योग में उन्हें बेकार मानकर मौत के घाट उतार दिया जाता है और उसी तरह से डेयरी उद्योग में नर बछड़ों को बेकार मानकर उनकी माताओं से अलग करके उन्हें भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
इसके अलावा, मांस और अन्य पशु-व्युत्पन्न खाद्य पदार्थ के सेवन को हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह, कैंसर और मोटापे जैसी गंभीर बीमारियों से जोड़कर देखा गया है, जबकि भोजन के लिए जानवरों को पालना और मारना SARS, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला, HIV और संभवतः कोविड-19 सहित कई जूनोटिक रोगों से जुड़ा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि जलवायु आपदा के सबसे बुरे प्रभावों से निपटने के लिए वीगन जीवनशैली की ओर एक वैश्विक बदलाव आवश्यक है।
PETA इंडिया द्वारा बिलबोर्ड लगवाकर जनता को यह संदेश दिया गया है कि जिन्हें कुत्ते के मांस को खाने के विचार से घिन आती हैं उन्हें अन्य पशुओं के मांस का सेवन समान्य क्यों लगता है।