दिल्ली में सार्वजनिक स्वास्थ्य को ख़तरे में डालते हुए ग्लैंडर्स के प्रकोप के खिलाफ़ लगभग छह महीने बाद कार्यवाही हुई, PETA इंडिया ने 2010 में तांगों पर लगाई गयी रोक को तुरंत लागू करने की मांग की
PETA इंडिया की लगभग छह महीने की गहन कार्यवाही के बाद, आखिरकार दिल्ली में ग्लैंडर्स पोसिटिव पाएं गए तीन घोड़ों के संबंध में कार्यवाही की गई लेकिन अभी भी ‘नेशनल एक्शन प्लान फॉर कंट्रोल एंड ऐरेडिकेशन ऑफ ग्लैंडर्स इन इंडिया’ (NAPCEGI), 2019, की अन्य सिफारिशें को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है। आज से लगभग छह महीने पहले, ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने दिल्ली के तीन घोड़ों की खून की जांच के बाद उन्हें ग्लैंडर्स से पीड़ित पाया था जो कि एक खतरनाक ज़ूनोटिक बीमारी है और इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। दिल्ली में अवैध रूप से तांगा चलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इन तीनों घोड़ों के खून के सेंपल PETA इंडिया ने ही इकट्ठा किए थे। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस क्षेत्र के अन्य घोड़ों की जांच अब यानी छह महीने बाद शुरू हुई है जो कि NAPCEGI, 2019 में दिए गए प्रोटोकॉल का स्पष्ट उल्लंघन है।
NAPCEGI, 2019, प्रोटोकॉल के अनुसार, ग्लैंडर्स के फैलाव को रोकने के लिए बीमारी से संक्रमित घोड़ों को तत्कालिक रूप से कोरनटाईन करके उन्हें मानवीय रूप से इच्छामृत्यु देना आवश्यक है; जहां संक्रमित पशु पाया गया है उसके न्यूनतम 5 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले सभी घोड़ों का बार-बार परीक्षण किया जाना अनिवार्य है और पहला परीक्षण घटना के तीन सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए; और इस क्षेत्र के अंदर-बाहर घोड़ों की आवाजाही प्रतिबंधित होनी चाहिए। इन दिशानिर्देशों के बावजूद, संक्रमित घोड़ों को दिनांक 31 अगस्त तक जनता के बीच रहने दिया गया जो कि सामुदायिक स्वास्थ्य एवं पशु कल्याण दोनों के लिए ख़तरनाक है। इस इलाके के तांगा मालिकों का कहना है कि दिनांक 1 अक्टूबर के आसपास तक उनके पशुओं का कोई परीक्षण नहीं किया गया था।
ग्लैंडर्स मामलों के संबंध में ‘दिल्ली पशुपालन और डेयरी विभाग’ (DAHD) की यह कार्यवाई 28 अगस्त को PETA इंडिया और दिल्ली के ‘पर्यावरण, वन और वन्यजीव विकास’ एवं सामान्य प्रशासन विभाग के कैबिनेट मंत्री श्री गोपाल राय जी के बीच एक बैठक के बाद हुई, जिसमें उनसे NAPCEGI, 2019, प्रोटोकॉल लागू कराने का अनुरोध किया गया था। PETA इंडिया को उपलब्ध कराए गए वीडियो फुटेज में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि दिनांक 31 अगस्त को ग्लैंडर्स से संक्रमित पाए गए घोड़ों को इच्छामृत्यु के लिए ले जाते समय, DAHD और दिल्ली पशु क्रूरता निवारण सोसाइटी के कार्यकर्ताओं ने पशुओं को मारा-पीटा और उन्हें छोटे गेट वाले एक वाहन में जबरदस्ती घुसने के लिए बाध्य किया। इस दौरान यहाँ मौजूद कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने कोई सुरक्षा कवच नहीं पहना था, जिससे उनके द्वारा यह संक्रमण फैलने का ख़तरा और भी बढ़ जाता है।
‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005’ के तहत मिली जानकारी से पता चला है कि भले ही NAPCEGI, 2019 के अनुसार, ग्लैंडर्स से पीड़ित किसी भी घोड़े के 5 किलोमीटर के न्यूनतम दायरे में सभी घोड़ों की ग्लैंडर्स जांच कराना अनिवार्य है लेकिन 12 अगस्त तक, केवल रंगपुरी और दिल्ली के रेसकोर्स में रहने वाले विशेष अवसरों पर उपयोग होने वाले घोड़ों का ही परीक्षण किया जा रहा था। इससे ग्लैंडर्स से पीड़ित होने की सबसे अधिक संभावना रखने वाले यानी तांगा चलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों के संक्रमित होने का ख़तरा और भी बढ़ जाता है।
दिनांक 20 सितंबर को, PETA इंडिया ने एक बार फिर श्री गोपाल राय जी से मुलाक़ात करके उनसे दिल्ली में घोड़े द्वारा खींचे जाने वाले तांगों पर वर्ष 2010 में लगाए गए प्रतिबंध को लागू कराने के लिए उचित कार्यवाही करने का अनुरोध किया था। हालाँकि, 14 साल बाद आज भी यह प्रतिबंध लागू नहीं किया गया है जिससे दिल्ली पर ग्लैंडर्स जैसे ख़तरनाक बीमारी का ख़तरा बना हुआ है। PETA इंडिया द्वारा ग्लैंडर्स से पीड़ित पाएं गए पशुओं की अनुचित देखभाल और लापरवाही की आधिकारिक जांच करने का अनुरोध भी किया गया है जिसने पशुओं एवं इंसानों दोनों के स्वास्थ्य को ख़तरे में डाल दिया। हमारे अनुसार, तागों पर लगाए गए प्रतिबंध का ठीक समय पर अमल करके बीमारी के इस प्रकोप और घोड़ों के साथ हुई मार-पीट दोनों को रोका जा सकता था।
तांगों पर रोक लगाकर इंसानों में ग्लैंडर्स फैलने के ख़तरे के साथ-साथ घोड़ों की पीड़ा को भी समाप्त किया जा सकता है। तांगा चलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों को पर्याप्त भोजन, पानी और धूप से छाया जैसी मूलभूल ज़रूरतों से वंचित रखा जाता है। इन पशुओं को गंभीर चोटों, सूजे पैरों और बीमारियों से पीड़ित होने के बावजूद अपनी क्षमता से ज्यादा भार ढोने के लिए मज़बूर किया जाता है। दिल्ली में घोड़ों के लिए कोई स्थायी अस्तबल नहीं है जिस कारण उन्हें फुटपाथ और पार्क जैसे सार्वजनिक स्थानों या रिहायशी इलाकों में रखा जाता है जिससे इस बीमारी के फैलने का ख़तरा और भी बढ़ जाता है। बहुत कम स्पीड में चलने वाले तांगे यातायात के लिए भी खतरा है।
PETA इंडिया ने अपनी दिल्ली मशीनीकरण परियोजना के माध्यम से 150 से अधिक घोड़े और बैल मालिकों को बैटरी चालित ई-रिक्शा अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है जिससे उनकी रोज़ी-रोटी को कोई नुकसान न हो एवं पशुओं को भी अपने आगे का जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत करने के लिए सेंचुरी में भेजा जा सके।