कोलकाता में मैदान से भागते समय घोड़े की मौत, पशु संसाधन विकास विभाग पर लापरवाही का आरोप, PETA इंडिया की शिकायत के बाद FIR दर्ज़ की गयी
कोलकाता पुलिस ने PETA इंडिया की शिकायत के आधार पर, पशु क्रूरता के एक नए मामले में FIR दर्ज़ की है। इस मामले में एक दो वर्षीय घोड़े को लंबे समय तक भूखा-प्यासा रखने की जानकारी मिली है और मजबूरन मैदान का बाढ़ा लांगते समय इसके पेट में गहरी चोट लग गयी जिससे इसकी आंते बाहर निकाल गयी। पुलिस द्वारा यह FIR भारतीय दंड संहिता की धारा 289 (किसी जानवर के साथ लापरवाही से व्यवहार करने के लिए जिससे मानव जीवन को खतरा हो, क्योंकि घोड़े ने पैदल चलने वालों और यातायात के लिए खतरा पैदा किया था) एवं 429 (किसी जानवर को अपंग करने के लिए, इस मामले में उपेक्षा) एवं पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 के अंतर्गत दर्ज़ की गयी है।
अपनी शिकायत की अर्ज़ी में PETA इंडिया द्वारा स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया गया कि घोड़े को लगी भयानक चोट के बारे जानकारी मिलने के तुरंत बाद, CAPE फाउंडेशन की प्रमुख राधिका बोस ने पश्चिम बंगाल पशु संसाधन विकास विभाग (ARDD) और पुलिस से संपर्क किया और उनकी तत्काल सहायता मांगी थी। इसके बाद, अधिकारियों ने निर्देश दिया कि घोड़े को बेलगाचिया पशु चिकित्सालय ले जाया जाए, क्योंकि ARDA का कोई भी पशुचिकित्सक मौके पर घोड़े का इलाज करने के लिए आगे नहीं आया था। तदनुसार, घोड़े को बिना कोई शामक दिए एक ट्रक पर लादकर अस्पताल ले जाया गया (जो घटना स्थल से लगभग 10 किलोमीटर दूर है), जिससे उसकी हालत और बिगड़ गई और उसे अत्यधिक पीड़ा हुई।
राधिका बोस द्वारा डॉ. अमित लोनारकर नामक पशुचिकित्सक से तत्काल सहायता का अनुरोध किया था, जिनके सहायता के उपरांत इस घोड़े को PETA इंडिया के संरक्षण में रखा गया। पशु संरक्षण अधिकारियों द्वारा निर्देशित किए गए अस्पताल में किसी प्रकार के सर्जिकल उपकरण, सिवनी सामग्री, एनेस्थेटिक या दर्द निवारक दवाएं उपलब्ध नहीं थी और यह घोड़े की गंभीर अवस्था को संभालने में सक्षम नहीं था।
डॉ. अमित लोनारकर को यह घोड़ा बहुत ही गंभीर स्थिति में मिला था यहाँ इसका मलाशय और आंतें फट गई थीं, और घोड़े के शरीर के बहार लटक रही थीं। पशु चिकित्सा देखभाल में देरी के कारण घोड़े का लगातार भारी मात्रा में खून बह रहा था। इसके अलावा, उसकी निकाली हुई आंतें दूषित हो गई थीं, क्योंकि उसे मैदान में जमीन पर पड़ा हुआ छोड़ दिया गया था, जिससे इसकी आंतों में मल भर गया था।
मैदान पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में, मालिक की सहमति से और PCA अधिनियम, 1960 की धारा 13 के अनुसार लोनारकर ने दयालु इच्छामृत्यु के माध्यम से घोड़े को उसकी पीड़ा से राहत दिलाई।
मई में, कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यह घोषणा की गयी थी कि कलकत्ता में पर्यटकों को सवारी कराने के लिए बीमार और अयोग्य घोड़ों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इस दयालु आदेश के परिणामस्वरूप अब इन कमज़ोर जानवरों को विक्टोरिया मेमोरियल पर गाड़ी ढोने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा। कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 11 अप्रैल 2023 को पारित आदेश के अनुरूप, एक चिकित्सा निरीक्षण शिविर का आयोजन किया गया था जिसमें पश्चिम बंगाल के पशु संसाधन विकास विभाग (ARDD) द्वारा इन घोड़ों को “अयोग्य” पाया गया था।
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कोलकाता में पर्यटकों की गाड़ियों को खींचने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़ों की दुर्दशा देखने या उनकी स्थिति के बारे में सामग्री की समीक्षा करने के बाद, 150 से अधिक पशु चिकित्सकों ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक अपील भेजी, जिसमें अनुरोध किया गया कि उनकी सरकार जानवरों की खराब सेहत और बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखकर घोड़ागाड़ियों के इस्तेमाल पर रोक लगा दे।
कोलकाता में घोड़ों को सख़्त सड़कों पर जबरन भारी भार ढोने के लिए बाध्य किया जाता है जिस कारण उन्हें जीवनभर की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामान करना पड़ता है जिसमें पैर और पीट की परेशानी एवं लंगड़ापन शामिल है। पशु चिकित्सकों ने PETA इंडिया और CAPE फाउंडेशन के तीन गहन शोधों का भी अध्यन्न किया, जिसमें कोलकाता में पर्यटकों की सवारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले 100 से अधिक घोड़े रक्तहीन, कुपोषित और लंबे समय से भूखे पाए गए। इनमें से कई घोड़ों की हड्डियाँ टूटी हुई थी और यह बेज़ुबान प्राणी शहर के गंदे, जर्जर, और अवैध रूप से कब्जे वाले परिसर में अपने स्वयं के माल-मूत्र के बीच रहने के लिए मजबूर थे।
PETA इंडिया ने कोलकाता में इन घोड़ों से जुड़ी कई सड़क दुर्घटनाओं की एक फैक्टशीट तैयार की है, जिसमें पर्यटकों को खींचने के लिए इनका इस्तेमाल करने के खतरों को दर्शाया गया है। इस तरह की दुर्घटनाओं से जानवरों को दर्द और पीड़ा होती है और यात्रियों के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा होता है। इसके अलावा, गाड़ी की सवारी के लिए घायल और कुपोषित घोड़ों का उपयोग करना भारतीय दंड संहिता, 1860 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 का उल्लंघन करता है।
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