उच्च न्यायालय के आदेश के परिणामस्वरूप घोड़ा मालिकों ने घोड़ों की चिकित्सीय जांच करवाने से इनकार कर दिया, उन्हें डर है कि घोड़ों की भयावह स्थिति का पता चल जाएगा
PETA इंडिया और CAPE फाउंडेशन के सहयोग से पश्चिम बंगाल सरकार के पशु संसाधन विकास विभाग द्वारा 19 से 21 अप्रैल तक आयोजित तीन दिवसीय पशु चिकित्सा स्वास्थ्य शिविर में घोड़े और घोड़ागाड़ी मालिकों ने भाग लेने व अपने पशुओं की जांच करवाने से इनकार कर दिया। इस तरह की अनिच्छा का प्रदर्शन व प्रतिरोध करना घोड़ागाड़ी मालिकों की ओर से निरंतर किया जाता है शायद उन्हें डर है कि इस तरह की गहन चिकित्सा जांच में उनके जानवरों की दयनीय स्वास्थ स्थिति सबको पता चल जाएगी। PETA इंडिया और CAPE फाउंडेशन द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में 5 अप्रैल 2022 को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक आदेश के बाद स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया था, याचिका में सवारी के लिए घोड़ों के क्रूर और अवैध इस्तेमाल और विक्टोरिया मेमोरियल के पास घोड़ागाड़ी ढुलाई पर रोक लगाने की मांग की गई थी। अदालत ने याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत घोड़ों की पीड़ा, गंभीर चोटों, कुपोषण और पैर की बीमारियों का सबूत प्रदान करती दो मूल्यांकन रिपोर्टों पर विचार किया था। पशु चिकित्सा स्वास्थ्य शिविर में भाग नहीं लेकर घोड़ा मालिक अपने जानवरों को सबसे बुनियादी और आवश्यक देखभाल से भी वंचित करते हैं और अपने अड़ियल रवैये से सरकार और अदालत दोनों के आदेशों की अवहेलना करते हैं।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (पीसीए) अधिनियम, 1960 के अनुसार, किसी भी जानवर के मालिक का कर्तव्य है कि वह जानवर की भलाई सुनिश्चित करने के लिए उपाय करे और पशु को पशु चिकित्सा देखभाल से वंचित रखना एक दंडनीय अपराध है। घोड़ागाड़ी के लिए घायल और कुपोषित घोड़ों का उपयोग करना भी पीसीए अधिनियम, 1960 का उल्लंघन है। सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, 22 जनवरी 2013 के एक आदेश के माध्यम से, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि “प्रत्येक घोड़ागाड़ी के मालिक की ज़िम्मेदारी है कि वह उसके घोड़ों द्वारा किए गए गोबर को हटाने के उपाय करे”। हालांकि, घोड़े के मालिकों द्वारा इस आदेश का कभी पालन नहीं किया गया।
PETA इंडिया द्वारा कोलकाता के घोड़े से चलने वाले क्रूर कैरिज उद्योग को बंद करने के प्रयासों में घायल या कुपोषित घोड़ों के पुनर्वास के लिए एक सेंक्चुरी स्थापित करना, कोलकाता पुलिस के साथ मिलकर इस दिशा में काम करना, घोड़ामालिकों के खिलाफ घोड़ों के साथ अत्याचार, मारपीट, व जबरन ढुलाई जैसे काम करवाने के खिलाफ प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करना, लंगड़े जानवरों से काम करवाने और पर्यटकों की सवारी के लिए घोड़ों के इस्तेमाल को समाप्त करने जैसी नीतियों के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करना जैसी गतिविधियां शामिल है। PETA इंडिया और CAPE फाउंडेशन की शिकायतों के बाद घोड़ा मालिकों के खिलाफ तीन प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।
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