पूरी दुनिया में वीगन दूध की माँग तेजी से बढ़ रही है और भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए

Posted on by PETA

‘अमूल’ नामक भारतीय डेयरी कंपनी सिर्फ अपने व्यावसायिक फ़ायदों के चलते इस सच्चाई से जनता का ध्यान भटकाना चाहती है कि दुनियाभर में डेयरी-मुक्त दूध की माँग लगातार बढ़ रही है । लेकिन यह उनकी बड़ी भूल है जिसके चलते स्वयं अमूल और भारतीय किसानों के हाथ से एक बेहद महत्वपूर्ण अवसर निकल जाएगा और ग्राहकों की बदलती माँग और रुचि के अनुसार उन्हें उत्पाद दे पाने के मामले में वह असफल रहेगा।

PETA इंडिया ने वैश्विक स्तर की कंपनियों के साथ अपने अनुभवों के आधार पर अमूल को सुझाव दिया कि वह स्वादिष्ट वीगन दूध की बढ़ती लोकप्रियता को बिना घबराए स्वीकार करें और इस प्रकार के दूध का उत्पादन शुरू कर एक नैतिक और उद्योग-हितैषी निर्णय लें नहीं तो इस तरह का बदलाव अपनाने वाली अन्य डेयरी कंपनियों से अमूल को काफ़ी व्यावसायिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। हमने अमूल को कई मांस और डेयरी कंपनियों के उदाहरण प्रस्तुत कर, वीगन खाद्य पदार्थों में निवेश से होने वाले लाभ से अवगत कराकर एक बेहतरीन भविष्य की तस्वीर प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया।

अपने पत्र में PETA इंडिया ने बताया कि वीगन खाद्य और पेय पदार्थों की मांग इतनी ज़्यादा है कि Grand View Research ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि वर्ष 2028 तक डेयरी विकल्पों का वैश्विक व्यापार USD$52.58 बिलियन तक पहुंच जाएगा। Barclays नामक ब्रिटिश फाइनेंशियल सर्विसेज के विश्लेषकों के अनुसार, इस दशक के अंत तक वीगन खाद्य और पेय उत्पादों के बाज़ार में 1,000% से ज़्यादा की बढ़ौती संभव है और Franchise India Holdings Limited द्वारा चलाई जा रही एक वैबसाइट में वर्ष 2019 में प्रदर्शित एक लेख के अनुसार, भारत में पिछले एक दशक में वीगन जीवनशैली अपनाने वाले लोगों में लगभग 360% की बढ़ौती हुई है। भारतीय उद्योगों और किसानों के लिए वीगन पेय और खाद्य पदार्थों के उत्पादन का अवसर इतना बेहतरीन है कि Forbes में छपे एक लेख के अनुसार, भारत के पास “वैश्विक स्तर पर वीगन आर्थिक महाशक्ति” बनाने का स्वर्णिम अवसर है।

डेयरी उद्योग ही गोमांस उद्योग का सबसे बड़ा अपूतिकर्ता है और आज डेयरी उद्योग में प्रयोग की जाने वाली ज़्यादातर गायों और भैसों को फ़ैक्टरी जैसे वातावरण या तबेले में रखा जाता है। उनका कृत्रिम ढंग से (कार्मिकों द्वारा जबरन उनके गुप्तांग में हाथ व रोड के माध्यम से बैलों का वीर्य डालना) गर्भधारण कराया जाता है। अगर ऐसा ही किसी कुत्ते के साथ किया जाता तो इसे बलात्कार माना जाता

जन्म के तुरंत बाद बछड़ों को अपनी माताओं से अलग कर दिया जाता है जिससे उनके प्राकृतिक दूध को मनुष्यों को बेचा जा सके। आपने स्वयं अक्सर सड़क पर देखा होगा कि नर बछड़ों को भूखा मरने के लिए लावारिस छोड़ दिया जाता है क्योंकि वह डेयरी उद्योग के लिए दूध का उत्पादन नहीं कर सकते। इनमें से बहुत से नर बछड़ों को उनकी चमड़ी के लिए मौत के घाट उतार दिया जाता है जबकि मादा बछड़ों को अपनी माँ की तरह शोषणपूर्ण जीवन व्यतीत करने हेतु मज़बूर किया जाता है। इन्हें तब तब दूध देने के लिए मज़बूर किया जाता है जब तक इनका शरीर जवाब नहीं दे देता और इसके बाद इन्हें भी लावारिस छोड़ दिया जाता है या सस्ते मांस हेतु मौत के घाट उतार दिया जाता है। इनमें से कुछ जानवरों को भीड़ भरी गौशालाओं में रखा जाता है, जो स्वयं डेयरी के सामान होती हैं। वर्तमान में तबेला व्यवस्था भी अमूल तंत्र का एक हिस्सा है।     

 

डेयरी उद्योग की विवशता इतनी बढ़ गयी है कि राष्ट्रीय सहकारी डेयरी संघ ने उच्च न्यायलय में अर्ज़ी दायर कर मांग करी है कि केवल जानवरों द्वारा उत्पादित दूध को “दूध” कहलाने की मंजूरी मिले। जबकि वर्ष 2018 में, Smithsonian Magazine ने बताया कि भारत में पेड़-पौधों से उत्पादित नारियल के दूध आदि को “दूध” कहने की प्रथा सदियों पुरानी है और ऐसा कई देशों में होता आ रहा है। आम बोलचाल की भाषा में उन्हें बादाम का दूध  या नारियल का दूध  कहा जाता है।

PETA द्वारा अमूल को लिखे पत्र में यह भी बताया गया है कि Nestlé, Epigamia, Chobani, Danone, और Yoplait जैसी दुनियाभर की बड़ी डेयरी कंपनियाँ अब वीगन विकल्पों में निवेश कर रही हैं।