झारग्राम: PETA इंडिया के हस्तक्षेप के बाद, जलते भाले से हाथी की हत्या करने के मामले में दर्ज़ FIR में हथियारों के अवैध उपयोग और पशु क्रूरता के खिलाफ़ मज़बूत दंड प्रावधानों को जोड़ा गया

Posted on by Shreya Manocha

एक गर्भवती एशियाई हथिनी जो कि ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972’ की अनुसूची I के अंतर्गत संरक्षित प्रजाति के पशुओं की सूची में आती है, की जलते भाले से करी गयी निर्मम हत्या के मामले में, PETA इंडिया ने हस्तक्षेप करके यह सुनिश्चित किया कि मामले के खिलाफ़ दर्ज़ FIR में सभी प्रासंगिक प्रावधानों को जोड़ा जाएं जिससे सभी दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाई जा सके। PETA इंडिया द्वारा संबंधित मामले में 16 अगस्त को दर्ज़ करी गयी FIR में सभी प्रासंगिक प्रावधानों को जोड़ने के लिए कार्य किया गया और इस दिशा में, पश्चिम बंगाल के मुख्य वन्यजीव वार्डन को एक पत्र भेजकर उनसे मुलाकात करी गयी थी। समूह द्वारा अनुरोध किया गया था कि FIR में दर्ज़ अन्य सभी प्रावधानों के साथ-साथ भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 325 और पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 की धारा 11(1) को भी जोड़ा जाएं और घटना के दौरान हथियारों और गोला-बारूद के अवैध उपयोग की भी जांच करी जाएं जिससे ‘शस्त्र अधिनियम, 1959’ के उल्लंघन का पता लगाया जा सके।

इस मामले के शुरुआती दौर में, एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ FIR की गई थी, जो कथित तौर पर एक हुला पार्टी (अवैध रूप से हाथी पकड़ने वालो का समूह) सदस्य था, जिसने हाथियों के झुंड के खिलाफ जलते भाले या मशालों का इस्तेमाल किया था। यह शिकायत वन रेंज अधिकारी द्वारा WPA,1972 की धारा 9 और 51 के तहत दर्ज की गई थी। PETA इंडिया के हस्तक्षेप के बाद, इस FIR में BNS, 2023 की धारा 325, और PCA अधिनियम, 1960 की धारा 11(1) को भी FIR से जोड़ दिया गया है। झारग्राम के पुलिस अधीक्षक ने PETA इंडिया को सूचित किया कि जांच के दौरान एकत्र किए गए हथियारों के अवैध उपयोग के प्रथम दृष्टया साक्ष्य के आधार पर, शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 27 (1) को FIR में जोड़ा गया है, दो आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया और वर्तमान में, अदालत में उनकी जमानत याचिका दो बार खारिज होने के बाद वे जेल में हैं। शस्त्र अधिनियम, 1959 की इस धारा को जोड़ने से, जो एक गैर-जमानती अपराध है, आरोपी के लिए जमानत प्राप्त करना और भी कठिन हो जाता है।

‘शस्त्र अधिनियम, 1959’ की धारा 27(1) में हथियारों के अवैध निर्माण और उपयोग के खिलाफ़ कम से कम तीन साल की जेल की सजा जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने का प्रावधान है। WPA, 1972 की धारा 9 संरक्षित जंगली जानवरों के शिकार पर रोक लगाती है। हाथी जैसी अनुसूची I के अंतर्गत नामित प्रजाति के पशुओं को मारने के खिलाफ़ कम से कम तीन साल की जेल की सजा, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, और कम से कम 25,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। BNS, 2023 की धारा 325 के अंतर्गत किसी भी पशु को शारीरिक क्षति पहुंचाना या जान से मारना एक संज्ञेय अपराध है जिसके खिलाफ़ पांच साल तक की जेल की सजा, जुर्माने या दोनों का प्रावधान है। इसके अलावा PCA धिनियम, 1960 की धारा 11(1) उन कृत्यों को परिभाषित करती है जिन्हें पशुओं के प्रति क्रूरता के रूप में परिभाषित किया जाता है और जिनके खिलाफ़ दंड प्रावधानों का निर्धारण किया गया है। इस अधिनियम की धारा 11(1)(l) के अंतर्गत विशेष रूप से,  किसी भो पशु को मारना या उसका अंग-भंग करना एक संज्ञेय अपराध है। इन कानूनों को सुदृढ़ करते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 1 अगस्त 2018 के अपने आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि हाथियों को भगाने के लिए किसी भी स्पाइक, आग के गोले या इसी तरह के तरीकों का उपयोग नहीं किया जा सकता है और राज्यों को ऐसे उपकरणों को हटाना होगा और उनका उपयोग तुरंत बंद करना होगा।

एशियाई हाथी लुप्तप्राय होने के साथ-साथ वन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। वे प्राकृतिक रूप से बीज फैलाने में भी अपना अहम योगदान देते हैं,  जो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने और अपनी गतिविधियों के प्रभाव से जंगलों को तंत्र को बनाए रखने में मदद करते हैं।

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