PETA इंडिया की शिकायत के बाद, करीमनगर वन प्रभाग ने हनुमान लंगूर को दो साल तक पिंजरे में बंद रखने वाले अपराधी के खिलाफ़ मामला दर्ज़ किया
PETA इंडिया को यह जानकारी मिली थी कि एक भूरे रंग के लंगूर, जिसे आमतौर पर हनुमान लंगूर के नाम से जाना जाता है, को दो साल से अधिक समय से एक पिंजरे के अंदर जंजीर से बंधकर रखा गया है। इसके बाद, हमने तात्कालिक रूप से तेलंगाना वन विभाग के करीमनगर वन प्रभाग के साथ मिलकर अपराधियों के खिलाफ़ POR दर्ज़ कराई। यह POR वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972 की धारा 2(5), 2(16)(बी), 9, 39, 50 और 54 के तहत दर्ज किया गया है। इस कार्यवाही के उपरांत संबंधित लंगूर की जान बचाकर उसे वापिस उसके प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया गया। ग्रे लंगूर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित प्रजाति के पशु हैं, जिन्हें पकड़ने या “पालतू जानवर” के रूप में कैद करने पर तीन साल तक की जेल, 1 लाख रुपये तक के जुर्माने या दोनों का प्रावधान है।
अपने प्राकृतिक आवास यानी जंगलों में लंगूर दर्जनों के समूहों में रहते हैं। वे अपना अधिकांश समय खेलने, सजने-संवरने और अन्य सामाजिक गतिविधियों में बिताते हैं। लंगूर परिवार के सदस्य हमेशा खतरे को भांपते रहते हैं और तुरंत अपने प्रियजनों की रक्षा के लिए दौड़ पड़ते हैं।
लोगों के घरों में “पालतू पशुओं” के रूप में रखे गए या नाच करवाने के लिए मजबूर किए जाने वाले बंदरों को अक्सर जंजीरों से बांध दिया जाता है या छोटे पिंजरों में कैद करके रखा जाता है। इंसानों के मनोरंजन के करतब सिखाने के लिए उन्हें आम तौर पर पिटाई और भोजन से वंचित करके, प्रताड़ित करके और डर के द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है, और वह स्वयं का बचाव न कर सकें इसलिए उनके दांत नोच लिए जाते हैं। 1998 में, केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि बंदरों और जंगली पशुओं की कई अन्य प्रजातियों को प्रदर्शन करने वाले पशुओं के रूप में प्रदर्शित या प्रशिक्षित नहीं किया जाना चाहिए।
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