केरल उच्च न्यायालय ने PETA इंडिया कार्रवाई के माध्यम से बचाए गए पक्षियों की वापसी के लिए ग्रेट बॉम्बे सर्कस की याचिका खारिज की
केरल के माननीय उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन वी द्वारा हाल ही में जारी आदेश के माध्यम से, न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (जेएफसीएम), त्रिशूर के 11 मई 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली ग्रेट बॉम्बे सर्कस द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। उस आदेश में चार पक्षियों (तीन मकोय और एक कॉकटू) को जब्त करने का निर्देश दिया गया था, जिनका उपयोग सर्कस में प्रदर्शन के लिए किया जाता था, क्योंकि उनके पंखों को विकृत करने और उन्हें उड़ने से रोकने के लिए उनके खिलाफ क्रूरता का प्रथम दृष्टया मामला बनता था। आदेश में सर्कस को बचाव के बाद पक्षियों के आवास, उपचार और दिन-प्रतिदिन के रखरखाव की लागत वहन करने और परिवहन और देखभाल खर्च के लिए 5,00,000 रुपये का बांड भरने का भी निर्देश दिया गया। माननीय उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट के निष्कर्षों से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि पक्षियों को सर्कस की हिरासत में वापस करना उचित नहीं होगा क्योंकि सर्कस द्वारा पक्षियों के साथ क्रूरता की गई थी।
ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए, माननीय उच्च न्यायालय ने भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा और अन्य (2014) 7 SCC 547 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें जानवरों के लिए पांच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्रता पर जोर दिया गया था जिसमें (1) भूख, प्यास और कुपोषण से मुक्ति; (2) भय और संकट से मुक्ति; (3) शारीरिक और तापीय असुविधा से मुक्ति; (4) दर्द, चोट और बीमारी से मुक्ति; और (5) व्यवहार के सामान्य पैटर्न को व्यक्त करने की स्वतंत्रता शामिल है। माननीय उच्च न्यायालय ने माना कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत बनाए गए प्रदर्शनकारी पशु (पंजीकरण) नियम, 2001 के तहत पंजीकरण, सर्कस को जानवरों का उपचार सुनिश्चित किए बिना उन्हें प्रशिक्षित करने और प्रदर्शित करने का लाइसेंस नहीं देता है। पशु कल्याण के मान्यता प्राप्त मानकों के अनुरूप है। अदालत ने आगे कहा कि जानवरों के प्रति क्रूरता के लिए मालिक के खिलाफ शिकायत के आधार पर जब्त किए गए जानवरों के संबंध में, अदालत बंदी जानवरों के कल्याण को सुनिश्चित करने और उनकी देखभाल और रखरखाव के लिए पर्याप्त उपाय करने के लिए बाध्य है।
JFCM, त्रिशूर का आदेश PETA इंडिया की एक शिकायत के आधार पर पारित किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप सर्कस के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी, जिसमें पक्षियों को उड़ने से रोकने के लिए उनके पंखों को विकृत करना और उनका शोषण करना शामिल था। पक्षियों की अंतरिम हिरासत तिरुवनंतपुरम चिड़ियाघर को सौंपी गई थी।
PETA इंडिया द्वारा की गयी जाँचों एवं भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा किए गए अनेकों निरीक्षणों में यह साबित हुआ है कि जानवरों का इस्तेमाल करने वाले सर्कस स्वाभाविक रूप से क्रूर होते हैं, वह जानवरों को जंजीरों में बांधकर लगातार गंदे एवं बदबूदार तंग पिंजरों में कैद रखते हैं, उन्हें पशु चिकित्सा देखभाल और पर्याप्त भोजन, पानी और आश्रय से वंचित कर उन सब चीजों से वंचित रखते हैं जो प्रकर्तिक रूप से उनके लिए जरूरी एवं स्वाभाविक हैं। उन्हें मारपीट एवं हथियारों के डर से भ्रामक, असुविधाजनक और दर्दनाक करतब करने के लिए मजबूर किया जाता है। इन्ही यातनाओं एवं कष्ठभरे जीवन के चलते यह जानवर अत्यधिक तनाव और मानसिक रूप से पीड़ित होने के व्यवहार भी प्रदर्शित करते हैं।
हम सभी से आग्रह करते हैं कि वे ऐसे सर्कसों का त्याग करें जहाँ जीवित जानवरों का उपयोग किया जाता है और मनोरंजन के केवल गैर-पशु विकल्पों का समर्थन करें।
सर्कसों में पशु प्रयोग को समाप्त कराने में हमारी सहायता करें!